उमर खालिद पर हमला मोदी सरकार और गोदी मीडिया द्वारा छात्रों, शिक्षकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, असहमति जाहिर करने वाले लोगों और पत्रकारों के खिलाफ निर्देशित फेक न्यूज (झूठी खबरों), नफरत भरे भाषण और हत्यारी हिंसा के लिये भड़काये जाने वाले निरंतर प्रचार का ही नतीजा है.

उमर खालिद, जिन्होंने अभी हाल में ही जेएनयू में अपनी पी.एचडी. की थीसिस जमा की है, एक कार्यकर्ता हैं जिनको 9 फरवरी 2016 के बाद से जेएनयू के अन्य छात्रों समेत गोदी मीडिया की चैनलों द्वारा राष्ट्र-विरोधी की भूमिका में रंगकर दिखाया जाने लगा था. जी-न्यूज ऐसे वीडियो लगातार दिखलाता रहा जो बाद में नकली साबित हुए. इस वीडियो में खालिद दावा कर रहे हैं कि उन्होंने खुद एवं जेएनयू के अन्य छात्रों ने मिलकर भारत-विरोधी नारे लगाये. जबकि अन्य छात्रों को भी इस किस्म के प्रचार का शिकार बनाया गया था, वहीं नफरत भड़काने वालों ने उमर को खास तौर पर मुस्लिम होने के नाते विद्वेषपूर्ण ढंग से अपने इस्लाम-विरोधी झूठा लांछन लगाने के लिये चुनकर निशाना बनाया. न्यूज-एक्स ने एक ऐसी खबर दिखाई जिसमें दावा किया गया था कि उमर खालिद जैश-ए-मोहम्मद का समर्थक है. यह जहरीला कुप्रचार अभियान फैलाते हुए इस चैनल के एंकरों और वीडियो क्लिपों को आज भी ऑनलाइन देखा जा सकता है. और यहां तक कि भारत के केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने एक पैरोडी एकाउंट (ट्विटर पर की गई टीका-टिप्पणी) के बल पर दावा कर दिया कि उमर खालिद जैसे जेएनयू के छात्रों को लश्कर-ए-तोइबा के प्रधान हाफिज सईद का समर्थन हासिल है. इंडिया टुडे चैनल के एक जाने-माने एंकर ने भी इसी पैरोडी एकाउंट का हवाला देकर उसे जेएनयू छात्रों को लश्कर-ए-तोइबा द्वारा दिये जा रहे “समर्थन” के सबूत के बतौर हाजिर किया.

फरवरी 2016 से लेकर अब तक बीते दो वर्षों में टाइम्स नाउ और रिपब्लिक जैसे चैनलों ने जेएनयू के छात्रों एवं वामपंथी एवं जनवादी कार्यकर्ताओं को अनगिनत बार “टुकड़े-टुकड़े गैंग” कहकर अपना निशाना बनाया है (जिसका आधार एक नकली वीडियो है जिसमें दावा किया गया है कि जेएनयू के छात्रों को भारत के टुकड़े-टुकड़े करने का आह्वान करते हुए नारे लगाते देखा गया है). रिपब्लिक चैनल ने तो यहां तक कि भाकपा(माले) के एक पोलितब्यूरो सदस्य और ऐपवा नेता को “लश्कर-ए-तोइबा” का वकील बना दिया है.

हाल ही में जेएनयू के प्रशासन ने उमर खालिद समेत जेएनयू के कुछेक छात्रों को 9 फरवरी 2016 की “राष्ट्र-विरोधी” गतिविधियों के चलते सजा देने की कोशिश की, जिसके चलते गोदी मीडिया के चैनलों द्वारा विद्वेषपूर्ण ढंग से चहकते हुए निंदा प्रचार का एक और चक्र चलाया गया. दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेएनयू के प्रशासन को इसके लिये फटकार लगाई और उनको जेएनयू के किसी भी छात्र को सजा देने से रोक दिया. न्यायालय में यह दिखाया गया कि इस घटना की हुई मैजिस्ट्रेट द्वारा जांच में भी किसी जेएनयू छात्र द्वारा किये गये किसी आपराधिक कृत्य का कोई सबूत नहीं है, और कोई सबूत न मिलने के कारण दिल्ली पुलिस पिछले दो वर्षों में जेएनयू के किसी छात्र के खिलाफ कोई चार्जशीट तक नहीं दायर कर सकी है.

इससे पहले खालिद ने अपनी जान के खतरे के बारे में शिकायत भी दर्ज कराई है. अनवरत चल रहे नफरत प्रचार और झूठी खबरों के इस माहौल का ही नतीजा है कि उमर खालिद पर हमले की यह खौफनाक घटना हुई है जिसमें दिन दहाड़े दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब के सामने पिस्तौलधारियों ने उमर पर गोलियां बरसाईं, और स्वतंत्रता दिवस के पूर्व दिल्ली में तैनात की गई फ्कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था” और “आतंकी खतरे की चेतावनी” जारी किये जाने के बावजूद हमलावर आराम से बिना किसी बाधा के भाग निकले!

जैसी कि उम्मीद थी, नई दिल्ली से भाजपा की सांसद मीनाक्षी लेखी ने एक ओर तो न्याय की रक्षा के नाम पर जबानी जमाखर्च किया और यह दावा करते हुए कि हमलावरों की पहचान की जायेगी और उन्हें बख्शा नहीं जायेगा, मगर इसके साथ ही पीड़ित को दोष देने का खेल शुरू करते हुए दावा किया कि उमर पर हमला “सनसनीखेज” और “ड्रामेबाजी” है. इसी बीच सोशल मीडिया पर भाजपा के आईटी सेल की फौज ने दावा किया है कि यह घटना “सजाई गई” थी, और साथ ही हमले का जश्न भी मनाया और उमर एवं उनके जैसे अन्य लोगों को मौत के घाट उतारने का आह्वान भी किया. ठीक इसी तरह से भाजपा के आईटी सेल के ट्विटर हैंडलों ने, जिनका समर्थन खुद प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट के मंत्रीगण करते हैं, गौरी लंकेश की हत्या पर भी जश्न मनाया था.

यहां यह भी याद रखना चाहिये कि महज चंद दिनों पहले महाराष्ट्र के एंटी-टेररिस्ट स्क्वाड (एटीएस) ने सनातन संस्था के एक आतंकी सेल का खुलासा किया था - छुपे-रुस्तम काम करने वाली यह सनातन संस्था एक आतंकवादी संगठन है जो कई बम विस्पफोटों और हत्याओं में शामिल रहा है - इनमें तर्कवादी बुद्धिजीवी दाभोलकर, कम्युनिस्ट लेखक पानसरे, प्रोफेसर कलबुर्गी और पत्रकार गौरी लंकेश के नाम प्रमुख हैं. एटीएस ने तलाशी में बमों और विस्पफोटकों का जखीरा पाया और सनातन संस्था के तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया, इस आरोप में कि वे समूचे महाराष्ट्र में आतंकी हमलों की एक शृंखला को अंजाम देने की योजना बना रहे थे. इनमें से एक व्यक्ति श्री शिवप्रतिष्ठान हिंदुस्तान से भी जुड़ा है, जिस संगठन का नेतृत्व संभाजी भिडे के हाथ में है. संभाजी भिडे भीमा-कोरेगांव की घटना के बाद हुई दलित-विरोधी हिंसा के अभियान का एक प्रमुख रचनाकार था.

नरेन्द्र मोदी ने जून 2013 में गोआ में सनातन संस्था और हिंदू जनजागृति समिति के द्वारा आयोजित अखिल भारतीय हिंदू कन्वेंशन के लिये एक संदेश भेजा था, जिसमें उन्होंने इन आतंकवादी संगठनों को “राष्ट्रवाद, देशभक्ति और वफादारी की परम्परा” से प्रेरित संगठन बताया था. ऐसा उन्होंने इसलिये किया क्योंकि उनके संगठन आरएसएस और उनकी पार्टी भाजपा की नजरों में संघी आतंकवादी ही “राष्ट्रवादी” हैं, क्योंकि वे राष्ट्र के बतौर एकमात्र हिंदू राष्ट्र को ही स्वीकार करते हैं. आरएसएस और भाजपा उन आतंकवादियों का समर्थन करते हैं जो बंटवारे के अधूरे रह गये कार्यभार को पूरा करने और भारज को एक ऐसे फ्हिंदू राष्ट्र” में बदलने का प्रयास करते हैं, जहां मुसलमानों को बराबर के नागरिक नहीं रहने दिया जायेगा. 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रचार अभियान के दौरान मोदी ने सार्वजनिक रूप से संभाजी भिडे को अपना गुरु और प्रतिपालक मानते हुए उनका अभिनंदन किया था.

भारत में मीडिया यह मांग करने में नाकाम रहा है कि खुद प्रधानमंत्री के वैचारिक सहयोगियों और मित्रों द्वारा किये जा रहे इस किस्म के आतंकवाद पर मोदी सरकार कुछ तो टिप्पणी करे. जो टीवी चैनल जेएनयू के छात्रों और वामपंथी कार्यकर्ताओं पर “टुकड़े-टुकड़े गैंग” का ठप्पा लगाते हैं वे इन संघी आतंकी संगठनों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहते, जबकि ये संगठन वास्तव में फिर से बंटवारा करने और भारत को दो हिस्सों में विभाजित करने पर आमादा हैं. वही मीडिया और मोदी सरकार तब भी खामोशी अख्तियार किये रहते हैं जब आरक्षण-विरोधी संगठन देश की राजधानी में और पुणे में भारत के संविधान की प्रतियों को खुलेआम जला देते हैं. कोई संदेह नहीं कि उनकी यह चुप्पी इस तथ्य के कारण है कि आरएसएस और भाजपा वास्तव में अम्बेडकर द्वारा रचित संविधान को बदलकर उसकी जगह मनुस्मृति को लाना चाहते हैं, जिस मनुस्मृति को अम्बेडकर ने जला दिया था. यही कारण है कि जिन मनुवादियों ने संविधान की प्रतियां जलाईं और दलितों एवं अम्बेडकर को जातिसूचक गालियां देते हुए नारे लगाये, उन पर भारत के टुकड़े-टुकड़े करने का इल्जाम नहीं लगाया जा रहा है!

स्वतंत्रता दिवस के महज चंद दिन पहले संसद मार्ग पर संविधान को जलाना और कांस्टिट्यूशन क्लब के बाहर उमर खालिद की हत्या का प्रयास, ये घटनाएं किसी “हाशिये के समूह” का काम नहीं हैं - ये भारत के फासीवादियों द्वारा स्पष्ट भाषा में दिये जा रहे संदेश हैं कि अब लोकतंत्र और संविधान उनकी गोलियों के निशाने पर हैं. भारत की जनता के लिये अब इससे बड़ा और ज्यादा जरूरी अन्य कोई कार्यभार नहीं हो सकता, उपनिवेशवाद-विरोधी स्वतंत्रता संग्राम की महान विरासत को सलाम पेश करने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता, कि हम इन फासीवादी ताकतों को करारी शिकस्त दें, जिन्होंने स्वाधीनता संग्राम के साथ गद्दारी की और आज भारत को फिर से विभाजित करना और उस पर शासन करना चाहते हैं.