स्वतंत्रता सेनानी बद्री अहीर का जन्मदिवस मनाया गया

विगत 10 जून 2023 को महान स्वतंत्रता सेनानी और दक्षिण अफ्रीका व चंपारण सत्याग्रह में महात्मा गांधी के सहयोगी रहे बद्री अहीर को उनके जन्मदिन पर उनके पैतृक गांव हेतमपुर में याद किया गया.

भाकपा(माले) द्वारा आयोजित जन्मदिवस समारोह में सबसे पहले उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कर दो मिनट मौन की मौन श्रद्धांजलि दी गई. किसान नेता विनोद कुशवाहा के संचालन में आयोजित सभा में बद्री अहीर के प्रपोत्र प्रमोद बद्री ने तमाम लोगों का स्वागत किया और कहा कि सरकारें आजादी की लड़ाई में सर्वस्व न्यौछावर करने वाले लोगों को भूल गई हैं.

कामरेड तोता चौधरी स्मृति सभा

विगत 4 जून 2023 को पटना में शहरी गरीबों के लोकप्रिय व संघर्षशील नेता और लगातार दो बार वार्ड पार्षद रह चुके दिवंगत तोता चौधरी की स्मृति में सभा का आयोजन हुआ. कंकड़बाग के अशोक नगर में आयोजित सभा में भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य सहित पार्टी के कई वरिष्ठ नेता, स्थानीय कार्यकर्ता और बड़ी संख्या में इलाके की जनता शामिल हुई.

सभा की अध्यक्षता वरिष्ठ पार्टी नेता का. केडी यादव ने और संचालन रणविजय कुमार ने किया. मौके पर राज्य सचिव कुणाल, पार्टी नेता राजाराम सिंह, अमर, गोपाल रविदास, सरोज चौबे आदि उपस्थित थे.

का. दीपंकर भट्टाचार्य को मातृशोक

भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य की मां बानी भट्टाचार्य का लगभग 91 साल की उम्र में विगत 5 जून की रात कोलकाता में निधन हो गया. वे लंबे अरसे से बीमार चल रही थीं. कोविड-19 महामारी की लगातार लहरों के बावजूद वे स्वस्थ और सुरक्षित रहीं, लेकिन हाल ही में वृद्धावस्था की समस्यायें जोर पकड़ने लगी थीं. जनवरी से अब तक उन्हें तीन बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था.

रणजीत गुहा (1923 - 2023)

काॅलेज और सड़क

श्रीकाकुलम और अन्य इलाकों में जब किसान विद्रोह उफान पर था, तभी समर सेन द्वारा संपादित ‘फ्रंटयर’ के जनवरी 1971 अंक में ‘जुल्म और संस्कृति पर’ (ऑन टार्चर एंड कल्चर) शीर्षक से एक लेख छपा था, जिसे बाद में इसके बंगाली  संस्करण ‘सीमांत’ में ‘निपिरन ओ संस्कृति’ शीर्षक से फिर छापा गया. इस लेख में नक्सलियों और आम लोगों पर राज्य के दमन का विस्तृत विश्लेषण करते हुए जन-प्रतिरोध को जायज ठहराया  गया था.

कामरेड प्रोफेसर अरविंद कुमार सिंह का दूसरा स्मृति दिवस मनाया गया

विगत 10 मई 2023 को कामरेड प्रोफेसर अरविंद कुमार सिंह की दूसरे स्मृति दिवस के मौके पर धनरूआ प्रखंड के बारा गांव में श्रद्धांजलि सभा संपन्न हुई.

कामरेड केदार प्रसाद को लाल सलाम!

प. चंपारण जिले के वरिष्ठ भाकपा(माले) नेता और भाकपा(माले) प. चंपारण जिला कमिटी के पूर्व सदस्य कामरेड केदार प्रसाद (उम्र - 74 वर्ष) का आज सुबह करीब सात बजे नेपाल के जीतपुर में हार्ट अटैक से निधन हो गया है. वे सन 1980 -81में भूमिगत दौर में पार्टी से जुड़े थे. संयुक्त चंपारण में गरीब-भूमिहीन किसानों और खेत मजदूरों के आंदोलन को संगठित करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. वे जब से पार्टी से जुड़े तब से पूर्णकालिक कार्यकर्ता के बतौर काम करते रहे.

कामरेड लक्ष्मणभाई पाटनवाडिया का दूसरा स्मृति दिवस

विगत 4 मई, 2023 को गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में वरिष्ठ कम्युनिस्ट तथा ट्रेड यूनियन नेता कामरेड लक्ष्मणभाई पाटनवाडिया के दूसरी स्मृति दिवस पर भाकपा(माले) की गुजरात राज्य कमेटी द्वारा एक श्रद्धांजलि तथा विमर्श सभा की आयोजन किया गया. अहमदाबाद की मणिनगर की शारदा बेन निवाड़ी सभागृह में आयोजित इस सभा में गुजरात के विभिन्न जिलों से आये हुए भाकपा(माले) के नेताओं व कार्यकर्ताओं के अलावा अलग-अलग बामपंथी, समाजवादी तथा लोकतांत्रिक पार्टियों व संगठनों के नेता उपस्थित रहे.

शहीद का. जगदेव शर्मा का 23वां शहादत दिवस मनाया गया

विगत 4 मई 2023 को पलामू जिले के विषयपुर गांव (छतरपुर) में पार्टी नेता शहीद कामरेड जगदेव शर्मा का 23वां शहादत दिवस मनाया गया. उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण करने और उनकी याद में 1 मिनट की मौन श्रद्धांजलि देने के बाद ‘का. जगदेव शर्मा अमर रहे’, ‘शहीद तेरे अरमानों को मंजिल तक पहुंचाएंगे’, ‘सामंतवाद हो बर्बाद’, ‘लोकतंत्र बचाओ-देश बचाओ’ के नारों से गांव गूंज उठा.

का. शुकदेव गोप का 11वां स्मृति दिवस

रामगढ़ जिले के मांडू प्रखंड स्थित कंजगी गांव में विगत 2 मई 2023 को का. शुकदेव गोप की 10वीं स्मृति सभा आयोजित हुई. वे इसी गांव के निवासी थे. का. कुलदीप बेदिया द्वारा झंडोत्तोलन के बाद शहीद बेदी पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनको एक मिनट की मौन श्रद्धांजलि दी गई.

पेशावर विद्रोह के नायक कामरेड चंद्र सिंह गढ़वाली को इंकलाबी सलाम

23 अप्रैल 1930 की घटना इस देश की आजादी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी. इस दिन पेशावर में चंद्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में गढ़वाली फौज ने देश की आजादी के लिए लड़ने वाले निहत्थे पठानों पर गोली चलाने से इन्कार कर दिया था. यह देश की आजादी की लड़ाई और आज के लिहाज से भी कहें तो एक राष्ट्रीय महत्व की घटना थी. लेकिन यह अफसोसजनक है कि चूंकि इस घटना को अंजाम देने वाली गढ़वाली फौज और उनके अगुवा चंद्र सिंह गढ़वाली थे, इसलिए इसका राष्ट्रीय प्रभाव और महत्व स्वीकारने और महसूस करने के बजाय इसे गढ़वाल के लोगों के लिए गर्व करने के मौके जैसे रूप में सीमित कर दिया गया है.