प्रमोशन में आरक्षण के मसले पर उच्चतम न्यायालय ने जो फैसला दिया, वह सामाजिक न्याय के प्रति सत्ताधारियों और अदालत के रुख को लेकर नए सिरे से सवाल खड़े करता है. उच्चतम नयायालय के फैसले की जो पंक्तियां चर्चा में हैं, हेडलाइन बन रही हैं, वे हैं – प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है. लेकिन फैसले को देखें तो बात इतनी भर नहीं है, बल्कि इससे बढ़कर है. इस मामले में केंद्र और उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने जो रुख अपनाया है, वह अपने कृत्य पर झूठ का आवरण ओढ़ाने की कोशिश है.