भोजपुर जनवादी संघर्षों की जमीन है. राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक गैरबराबरी के खिलाफ जनसंघर्षों का यहां का इतिहास बेमिसाल रहा है. संघर्ष के विविध रूप यहां की परिवर्तनकामी जनता की चेतना के अनिवार्य हिस्सा रहे हैं. आजादी के बाद नक्सलबाड़ी विद्रोह और नवनिर्मित वामपंथी पार्टी भाकपा(माले) के कामरेडों के भीषण शासकीय दमन के बाद भोजपुर की जमीन पर उस इंकलाबी स्वप्न को पुनर्जीवन मिला. यहां भी जगदीश मास्टर, रामेश्वर यादव, भाकपा(माले) के दूसरे महासचिव कामरेड सुब्रत दत्त उर्फ जौहर, डा. निर्मल, बूटन मुसहर समेत कई कामरेडों ने संघर्ष के दौरान शहादत दी.