वर्ष - 28
अंक - 47
09-11-2019

एआईकेएससीसी के आह्वान पर गत 4 नवम्बर 2019 को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (रीजनल कांप्रीहेन्सिव इकनाॅमिक पार्टनरशिप या आरसीईपी) में भारत के शामिल होने के इरादे के विरोध में समूचे देश में किसान संगठनों द्वारा विरोध मार्च किया गया. उसी दिन आरसीईपी के शिखर सम्मेलन में भाग लेने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी थाईलैण्ड की राजधानी बैंकाॅक गये थे.

दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक दिवसीय धरना दिया गया और आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई. धरना स्थल पर सभा को अखिल भारतीय किसान सभा के हन्नान मौला, स्वराज्य अभियान के योगेन्द्र यादव, अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रेम सिंह गहलावत, अभीक साह, अयाकन्नू, कृष्णा प्रसाद, दिनेश अबरोल, अफसर जाफरी, रंजा सेन गुप्ता, संजीव आदि नेताओं ने सम्बोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार को किसानों के हित में आरसीईपी से बाहर आ जाना चाहिए.

राजस्थान के झुंझुनू जिले की बुहाना तहसील में अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव कामरेड रामचंद्र कुलहरि के नेतृत्व में विरोध मार्च हुआ और आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई. मार्च में अखिल भारतीय किसान महासभा के जिला अध्यक्ष ओम प्रकाश झारोडा, प्रेम सिंह नेहरा, एडवोकेट मुकेश चौधरी, एडवोकेट करण सिंह, हरि सिंह वेदी, रामेश्वर मैनाना, ताराचन्द्र नानवास, पातुराम पालोता, मेहरचन्द कुलहरि आदि किसान नेताओं ने सम्बोधित किया.

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आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव कामरेड डी हरिनाथ और अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के अन्य नेताओं के नेतृत्व में विरोध मार्च और आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई.

उड़ीसा के पुरी जिला मुख्यालय पर अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव कामरेड अशोक प्रधान और समिति के अन्य नेताओं के नेतृत्व में विरोध मार्च और आरसीईपी का प्रतियां जलाई गई.

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पंजाब के पटियाला में अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव कामरेड पुरुषोत्तम शर्मा और मानसा में अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड रुल्दू सिंह के नेतृत्व में विरोध मार्च और आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई. पश्चिमी बंगाल के नदिया, कृष्णनगर और कोलकाता में विरोध मार्च और आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई. कोलकाता के विरोध मार्च का नेतृत्व अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कामरेड कार्तिक पाल, किसान महासभा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य जयतु देशमुख और स्वराज अभियान के नेतागण कर रहे थे.

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिला मुख्यालय में अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव कामरेड ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा के नेतृत्व में विरोध मार्च और आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई. प्रयागराज में अखिल भारतीय किसान महासभा के सुभाष पटेल, गांधी ग्रामीण मंच के डा. बीएल शर्मा, एआईकेएमएस के राम कैलाश कुशवाहा, सुरेश निषाद, एसयूसीआई के राजेन्द्र सिंह, एलआईसी वर्कर्स यूनियन के अविनाश मिश्रा, पीयूसीएल के ओडी सिंह, पीयूडीआर के आनन्द मालवीय, आदि नेताओं के नेतृत्व में पीडी टण्डन पार्क से सुभाष चौराहा तक विरोध मार्च और आरसीईपी का प्रतियां जलाई गई. जालौन में अखिल भारतीय किसान महासभा के नेता राजीव कुशवाहा, प्रभुदयाल पाल, राम सिंह चौधरी की ओर से राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजकर, आरसीईपी को रद्द करने की मांग किया.

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बिहार की राजधानी पटना में अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य सहसचिव क्रमशः उमेश सिंह और राजेन्द्र पटेल, किसान महासभा के जिला सचिव कृपा नारायण सिंह, राज्य पार्षद क्रमशः मधेश्वर शर्मा और राजेश गुप्ता, अखिल भारतीय किसान सभा, जमाल रोड के पटना जिला सचिव सोने लाल, मनोज चन्द्रवंशी और अग्रगामी किसान सभा फारवर्ड ब्लाक के टीएन आजाद आदि नेताओं ने विरोध मार्च और आरसीईपी की प्रतियां जलाने का नेतृत्व किया. विरोध मार्च बुद्ध स्मृति पार्क से नारा लगाते हुए स्टेशन गोलम्बर पर आकर समाप्त हुआ और यही पर आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई.

किसान महासभा के राज्य अध्यक्ष विशेश्वर प्रसाद यादव ने वैशाली जिला के मुख्यालय हाजीपुर में विरोध मार्च का नेतृत्व किया. रोहतास के विक्रमगंज में पूर्व विधायक अरुण सिंह,के नेतृत्व में विरोध मार्च हुआ और आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई. जहानाबाद में अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य सचिव रामाधार सिंह, भोजपुर के पीरो में अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य उपाध्यक्ष व पूर्व विधायक चन्द्रदीप सिंह के नेतृत्व में विरोध मार्च और आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई. भोजपुर जिले के जगदीशपुर, बक्सर के धनसोई और सोनवर्षा में भी विरोध मार्च कर आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई.

कैमूर जिला मुख्यालय भभुआ में पर अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य कार्यकारिणी सदस्य बबन सिंह और माले के जिला सचिव कामरेड विजय सिंह यादव और पश्चिमी चंपारण जिला मुख्यालय बेतिया में किसान महासभा के जिला संयोजक सुनिल कुमार राव,के नेतृत्व में विरोध मार्च किया गया और नरेन्द्र मोदी का पुतला दहन किया गया.

किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवसागर शर्मा के नेतृत्व में नवादा जिला मुख्यालय पर विरोध मार्च हुआ और प्रजातंत्र चौक पर आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई. शेखपुरा में पटेल चौक से अम्बेडकर चौक तक विरोध मार्च और आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई, बिहारशरीफ में किसान महासभा के जिला सचिव पालबिहारी लाल के नेतृत्व में विरोध मार्च निकाला गया और आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई.

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मुजफ्फरपुर में अखिल भारतीय किसान महासभा के नेता परशुराम पाठक के नेतृत्व में विरोध मार्च निकाला गया और आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई, सीतामढ़ी के मेहसौल चैक से कारगिल चौक तक विरोध मार्च निकाला गया और आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई. उत्तर बिहार, सीतामढ़ी किसान सभा, और जय किसान आंदोलन शामिल था, अरवल जिला के कलेर में अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य कार्यकारिणी के सदस्य राजेश्वरी यादव और भाकपा माले के राज्य कमेटी सदस्य रविन्द्र यादव के नेतृत्व में विरोध मार्च निकालकर आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई.

एआईकेएससीसी के आह्वान पर इस दिन उसके विभिन्न घटक संगठनों ने तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, असम आदि राज्यों के विभिन्न स्थानों पर विरोध मार्च और आरसीईपी की प्रतियां जलाई गई.

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इस विरोध प्रदर्शन के दौरान एआईकेएससीसी ने निम्नलिखित मांगें पेश की हैं:

  1. आरसीईपी पर राज्य विधानसभाओं और संसद में खुले तौर पर बहस कराओ.
  2. ऐसा कोई व्यापक बहुपक्षीय व्यापार समझौता नहीं करो जो किसानों और घरेलू बाजार को तबाह करे. जिन खेतिहर फसलों और मालों का भारत में पर्याप्त मात्रा में उत्पादन होता है उनके आयात पर रोक लगाओ. केवल आवश्यकता के आधार पर विदेशी व्यापार हो.

अखिल भारतीय किसान महासभा के अध्यक्ष रुल्दू सिंह ने इसे मोदी सरकार की साम्राज्यवाद-परस्त और किसान-विरोधी नीतियों के खिलाफ भारतीय किसानों की विजय बताया है. राष्ट्रीय महासचिव राजाराम सिंह ने कहा कि किसान आंदोलन के दबाव में मोदी सरकार को आरसीईपी के बाहर रहना पड़ा. हालांकि उन्होंने चेतावनी दी कि मोदी सरकार कभी भी चुपके से आरसीईपी में शामिल हो सकती है, इसलिए आरसीईपी के साथ ही स्वामिनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार किसानों को कर्ज मुक्ति और फसलों का ड्यौढ़ा दाम देने की मांग को लेकर संघर्ष जारी रहेगा.

नेताओं ने कहा कि भारत सरकार 16 देशों के साथ समझौता करने वाले देशों के सामने घुटने न टेके और समझौता से बाहर आये. किसान आन्दोलन के दबाव में मोदी सरकार अंततः आरसीईपी से बाहर रहने को मजबूर हुई. एआईकेएससीसी ने देश के किसानों को संघर्ष की इस जीत के लिए बधाई दी तथा देश के किसानों को स्वामीनाथ आयोग की सिफारिशों को लागू करके किसानों को कर्ज से मुक्ति और फसलों का ड्यौढ़ा दाम देने की मांग को लेकर संघर्ष जारी रखने का आह्वान किया.

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क्या है आरसीईपी समझौता और किसान संगठन इसका विरोध क्यों कर रहे हैं?

विगत 4 नवंबर को दुनिया के करीब 16 देशों के बीच थाइलैंड की राजधानी बैंकाक में एक समझौता होने जा रहा है, जिसे क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (रीजनल काम्प्रीहेन्सिव इकनाॅमिक पार्टनरशिप या आरसीईपी) कहा जा रहा है. यह एक नई मुक्त व्यापार संधि है. मोदी सरकार तथाकथित “पूरब की ओर धावा” की नीति अपनाते हुए आरसीईपी में शामिल होने की सोच रही थी. बैंकाक शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भाग लेनेवाले थे.

इसमें आसियान के दस सदस्य देशों – ब्रूनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, थाइलैंड और वियतनाम के अलावा चीन, भारत, आस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, जापान और न्यूजीलैंड शामिल होनेवाले हैं.  इस समझौते से एक दूसरे देशों में उत्पादों की पहुंच आसान हो जाएगी और व्यापार करने का रास्ता आसान हो जाएगा और सदस्य देशों को अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए एक बड़ा बाजार मिल जाएगा. इन देशों के बीच व्यापार की 80 से 90 प्रतिशत वस्तुओं पर आयात कर को अगले 15 से 20 वर्षों के बीच धीरे धीरे योजनाबद्ध ढंग से हटाते-हटाते अंततः शून्य पर ले आया जाएगा.

इससे भारत के बाजारों में विदेशों के सस्ते सामानों की भरमार हो जायेगी. ये उत्पाद, खासकर डेयरी उत्पाद न्यूजीलैंड और आॅस्ट्रेलिया में काफी सस्ते हैं क्योंकि उनकी सरकारें अपने किसानों को भारी मात्रा में छूट और सुविधाएं प्रदान करती हैं. इसके अलावा उनके यहां की आबादी में किसानों का प्रतिशत बहुत ही कम है.

इस समझौते से खाद्य प्रसंस्करण (फूड प्रोसेसिंग) उद्योग में विदेशी कम्पनियों द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का दरवाजा खुल जाएगा और ई-व्यापार को मिलने वाले प्रोत्साहन के से छोटे व्यापारी तबाह हो जाएंगे. मुक्त व्यापार में कोई बाधा आने पर एक अलग कानूनी कार्रवाई के जरिये ये कम्पनियां भारतीय उत्पादकों के खिलाफ मुकदमा दायर कर सकती हैं.

दुनिया में भारत दुग्ध उत्पादन में प्रमुख स्थान रखता है.  इस समय छोटे किसानों की आय का एकमात्र साधन दूध उत्पादन ही बचा हुआ है. गांव की 80 फीसदी आबादी की आजीविका दूध पर टिकी हुई है. अगर सरकार ने आरसीईपी समझौते से डेयरी उत्पादों को बाहर नहीं किया तो आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से शून्य शुल्क पर डेयरी उत्पादों का आयात होगा, जिससे देशभर के करीब 10 करोड़ किसानों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जायेगा. डेयरी उद्योग पूरी तरह से तबाह हो जायेगा. इसलिये अमूल जैसी सहकारी समितियों समेत कई औद्योगिक समूहों ने भी आरसीईपी का विरोध किया है.

आरसीईपी से न सिपर्फ भारत के दूध और दुग्ध उत्पादों बल्कि मसाले, गेहूं, दाल, खाद्य तेल, रबर, सूती कपड़ा, मछली, कपड़ा एवं वस्त्रादि, घरेलू काम के औजार, छोटे पुर्जे आदि चीजों के लिये भी खतरा है कि इन मालों का आयात बेतहाशा बढ़कर स्थानीय उत्पादकों की तबाही लायेगा.

 

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