वर्ष - 31
अंक - 50
03-12-2022

ऐपवा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रति राव और महासचिव मीना तिवारी ने एक बयान जारी कर कहा है कि ठीक से हिजाब न पहनने के कारण महसा अमीनी की मोरैलिटी पुलिस द्वारा गिरफ्तारी और पुलिस हिरासत में उसकी मौत के बाद ईरान में पिछले तीन महीने से अधिक समय से सरकार विरोधी प्रदर्शन जारी हैं. इन प्रदर्शनों के दमन में हजारों लोगों के घायल होने और 300 से अधिक लोगों की मौत के बाद अब ईरान के प्राॅसिक्यूटर जनरल ने मोरैलिटी पुलिस को भंग करने की घोषणा की है. यह ईरानी महिलाओं की जीत है. हालांकि, सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर अभी इसकी घोषणा नहीं हुई है. ईरान के अटार्नी जनरल ने कहा है कि इस मुद्दे की समीक्षा हो रही है लेकिन यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि हिजाब कानून में कोई बदलाव किया जाएगा. इस बीच एक महिला पर्वतारोही एलनाज रकीबी जिसने एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में बिना हेड स्कार्फ के हिस्सा लिया था, उसका घर स्थानीय प्रशासन ने ढाह दिया है.

महिला नेताओं ने कहा कि ईरानी महिलाओं और लोकतंत्र पसंद लोगों के आंदोलन ने मोरैलिटी पुलिस को भंग करने के लिए सरकार को मजबूर किया और जीत हासिल की है लेकिन, ईरान में ‘औरत, जिंदगी, आजादी’ अभियान अभी जारी है और हिजाब पहनने या न पहनने का अधिकार के साथ-साथ शिक्षा, रोजगार, सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की बराबर की हिस्सेदारी की अपनी मांगों के लिए लड़ रही ईरानी महिलाओं के साथ हम खड़े हैं.

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शाही इमाम का बयान निंदनीय

ऐपवा ने अहमदाबाद के शाही इमाम शब्बीर अहमद सिद्दिकी के उस बयान का विरोध किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि चुनाव में महिलाओं को टिकट नहीं दिया जाना चाहिए, यह धर्म के विरुद्ध है.
ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी और उपाध्यक्ष डा. फरहत बानो ने कहा कि ऐपवा की स्पष्ट मान्यता है कि सामाजिक जीवन हो या राजनीतिक क्षेत्र, हर धर्म-समुदाय की महिलाओं की हिस्सेदारी हर क्षेत्र में बढ़नी चाहिए, बराबर होनी चाहिए. आज मुस्लिम महिलाओं ने संघर्ष कर कई जगहों पर नमाज पढ़ने का अधिकार भी हासिल कर लिया है और कई देशों में वे उच्च राजनीतिक पदों पर काबिज हैं.
भारत  में तो शिक्षा, राजनीति, प्रशासन, समाजसेवा हर क्षेत्र में आजादी के पहले से ही मुस्लिम महिलाएं सक्रिय रही हैं, उन्होंने समाज का नेतृत्व किया है और उनका सम्मान  रहा है.
19वीं शताब्दी में अगर फातिमा शेख और हजरत महल जैसी महिलाएं रहीं तो 20 वीं शताब्दी में गांधी जी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई में कई मुस्लिम महिलाएं शामिल थीं. आजाद भारत में असम और जम्मू कश्मीर में महिला मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और सांसद, विधायक, पंचायत प्रतिनिधि के रूप में कई राज्यों में मुस्लिम महिलाएं रही हैं और आज भी हैं. इसे किसी ने आज तक धर्म विरुद्ध नहीं माना है.
शाही इमाम शायद यह भी भूल रहे हैं कि सीएए विरोधी आंदोलन भी इन महिलाओं के बल पर ही चला और कई युवा महिलाएं जेल गईं. समय के साथ मुस्लिम महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. आज हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई सभी धर्म की महिलाएं मिलकर अपने अधिकारों के लिए और मंहगाई, बेरोजगारी के खिलाफ संघर्ष कर रही हैं. इमाम साहब चाह कर भी इतिहास के चक्के को पीछे नहीं ले जा सकते. इसलिए शाही इमाम को अपना यह वक्तव्य वापस लेना चाहिए.