वर्ष - 31
अंक - 52
24-12-2022

आशा कर्मियों की यूनियन का फैलाव व पार्टी निर्माण की एक कोशिश

ऐक्टू के प्रदेश अध्यक्ष रहे कामरेड हरि सिंह की निधन के बाद उत्तर प्रदेश में ऐक्टू के काम को संगठित करने व उसे बढाने की चुनौती को नए नेतृत्व ने आगे बढ़ कर उठाया. उत्तर प्रदेश में कताई मिल मजदूरों के बीच कताई मिल मजदूर महासंघ बनाकर प्रदेश की लगभग सभी मिलों मे उसका विस्तार कर एक सेक्टर में ही सही संगठन के व्यापक प्रभाव, नेतृत्व की लोकप्रियता, जन गोलबंदी की ताकत और जुझारू संघर्ष ने प्रदेश में ऐक्टू को शुरुआती दिनों में  पहचान दी थी. कताई मिल मजदूरों के आन्दोलन के बाद यूनिट आधारित यूनियनों के जरिये काम-काज जारी रहा. किंतु बदलते हुए कार्य व्यवहार और श्रमिक वर्ग की पहचान के अनुरूप नए उभर रहे श्रमिक वर्ग के हिस्सों की पहचान कर व्यापक जन गोलबंदी, नई कतारों का विकास, नये आन्दोलन को खडा करने मे हम आगे नहीं बढ़ पा रहे थे.

लम्बे समय बाद आशा कर्मियों में योजनाबद्ध ढंग से काम शुरू किया गया. नेतृत्व की गतिशीलता, समय पर पहलकदमी, संगठन निर्माण के प्रति गम्भीरता ने दो साल में ही हमारे संगठन ‘उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन’ को प्रदेश की सबसे प्रमुख आशा कर्मियों की यूनियन के रूप मे स्थापित कर दिया है. यूनियन निर्माण मे कुछ जिलों मे असर रखने वाली सोसाइटी एक्ट में रजिस्टर्ड यूनियनों से तीखा टकराव हुआ, क्योंकि उन्हीं के आधार से सबसे ज्यादा आशा कर्मी हमारी यूनियन मे शामिल र्हुइं. ये यूनियनें एक तरफ आशा कर्मियों से 100 से लेकर 1000 रूपये तक का चंदा वसूल कर उनको लूटती थीं, तो दूसरी तरफ साल में एक-दो बार लखनऊ में धरना-प्रदर्शन करके अधिकारियों से सांठगांठ कर आशा कर्मियों द्वारा किये गये काम में जो अधिकारियों द्वारा लूट की जा रही थी, जैसे काम का मासिक रजिस्टर जमा करने पर इनको मिलने वाले 2200 रूपये मानदेय से प्रति माह 200 रूपये की होने वाली कटौती में भी हिस्सेदार थीं. हमारे संगठन ने शुरू से ही किये गये काम के भुगतान मे इस तरह की हो रही लूट को अपने आन्दोलन का प्रमुख मुद्दा बनाया.

हमारी यूनियन जब आशाकर्मियों के किये गये काम का पूरा भुगतान देने, लूट पर रोक लगाने, 21000/ न्यूनतम वेतन  देने, आशाकर्मियों को राज्य कर्मचारी का दर्जा दिए जाने सहित अन्य मांगों पर आन्दोलनरत थी तो सीटू से जुड़ी यूनियन अपने जनाधार को बचाने के लिए भ्रष्ट अधिकारियों को सम्मानित कर उनके प्रभाव का इस्तेमाल कर आशाकर्मियों को हमारी यूनियन मे आने से रोकने मे लगी थी, मगर उनकी ये कोशिशें काम न आयीं और अच्छी-खासी संख्या में आशाकर्मी और उनकी कई जिला इकाइयां  हमारी यूनियन मे शामिल र्हुइं. यह सिलसिला अभी भी जारी है.

सरकार ने बीएमएस को आगे कर हमारे विकास में व्यवधान डाले, स्थानीय नेतृत्व को डराने से लेकर हमारे आन्दोलन के आह्वान के दिन या एक दिन पूर्व अपनी ओर से आह्वान कर समानांतर कार्यक्रमों की घोषणा की तथा सरकारी मशीनरी ने उसे सभी तरह की मदद उपलब्ध कराई ताकि हमारे कार्यक्रम सफल न हो पायें. परन्तु, नेतृत्व की चौतरफा पहल ने ऐसी कोशिशों को सफल नहीं होने दिया. इसकी एक झलक 12 सितम्बर को यूनियन द्वारा लखनऊ के ईको गार्डेन मे किये विशाल धरना/प्रदर्शन मे दिखी जिसमें पूरे प्रदेश से लगभग 6 हजार से अधिक आशाकर्मियों ने भागीदारी की, यही नहीं अभी 21 नवम्बर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर स्कीम वर्कर्स के हुए कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश से लगभग 14 सौ आशा कर्मियों द्वारा भागीदारी की गयी जो पूरे कार्यक्रम की आधे से ज्यादा थी.

आज हमारी यूनियन उत्तर प्रदेश के 45 जिलों मे फैल चुकी है, 23 जिलों मे कमेटी है, 11 जिलों में संयोजन समिति है. प्रदेश में यूनियन की 8000 से अधिक  सदस्यता हो चुकी है जो लगातार बढ रही है. हमारी यूनियन उत्तर प्रदेश में ट्रेड यूनियन एक्टू के तहत राज्य स्तर पर पंजीकृत है.

मिड डे मिल वर्कर्स यूनियन

आशा वर्कर्स के साथ ही मिड डे मिल वर्कर्स के बीच संगठन बनाने की शुरूआत की गयी. इनके बीच काम करने में समस्या यह थी कि ये जिन स्कूलों मे खाना बनाती हैं वे दूर-दूर हैं, इनसे सम्पर्क करने, सूचनाओं के आदान-प्रदान मे बेहद कठिनाई होती है. दूसरे, ये रसोईया बहनें बड़ी संख्या मे अशिछित हैं, ये ज्यादा तर भूमिहीन-गरीब परिवारों से आती हैं, इसलिए इनकी यूनियन निर्माण में ज्यादा समय व परिश्रम लगाना पडता है.

हमारी यूनियन ने रसोईया बहनों की खराब काम की स्थिति, जिसमें लकडी पर खाना बनाने के बजाय गैस उपलब्ध कराने, रसोईयों को खाना बनाने के अलावा कोई अन्य काम न लेने, मानदेय बढ़ाने, बकाया मानदेय देने, इन्हे शिक्षणेत्तर राज्य कर्मचारी घोषित करने जैसी मांगें उठाई. मानदेय 1500 से 2000 कराने मे सफलता भी मिली.

हमारी यूनियन धीमी गति से ही सही, आगे बढ रही है. अब तक हम 13 जिलों में यूनियन का विस्तार कर चुके हैं, यूनियन की सदस्यता कुल 2403 हो चुकी है. हमारी यूनियन ट्रेड यूनियन ऐक्टू के तहत राज्य स्तर पर पंजीकृत है. इस समय इन जिलों में सदस्यता अभियान, जिला सम्मेलन कर कमेटियों के गठन तथा विस्तार की संभावनाओं की तलाश कर संयोजन समितियों के गठन का कार्य संगठन ने कार्यभार के रूप में लिया है.

स्कीम वर्कर्स के अतिरिक्त कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय चतुर्थ श्रेणी कर्मियों की राज्य स्तर पर यूनियन पंजीकृत है.

लम्बे समय से गतिहीन रही निर्माण मजदूरों की यूनियनों को अभियान चलाकर 7500 से अधिक सदस्य बना कर फेडरेशन का राज्य  सम्मेलन आयोजित किया गया है और नयी प्रदेश कमेटी बनाई गयी है. इसके साथ ही इलाहाबाद में सफाई कर्मियों की निष्क्रिय पड़ी यूनियन को पुनर्जीवित करने की कोशिश में जबरदस्त सफलता मिली और पिछले तीन माह से धारावाहिक आंदोलन जारी है, जिसमें 500 से 1000 तक सफाई कर्मियों की भागीदारी हुई है और साथ ही सदस्यता में भी गति है. इस उभार ने सफाई कर्मियों की राज्य स्तरीय यूनियन निर्माण की ओर बढ़ने का आधार उपलब्ध कराया है, और इस दिशा में कोशिशें शुरू हो गई हैं, कुल मिला कर सफाई कर्मियों के बीच संगठन निर्माण व आन्दोलन मे जो नई गति आई है, उसको विकसित कर प्रदेश स्तरीय यूनियन बनाने की तरफ बढ़ रहे हैं. इसी तरह स्वास्थ्य के क्षेत्र में सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की यूनियन निर्माण के साथ पीजीआई में पहले से जुड़ी नर्सिंग स्टाफ यूनियन को वैचारिक आधार पर पुर्नगठित करने की कोशिश जारी है. इसमें एक स्तर तक सफलता मिली है और इस हिस्से में भी एक विशाल आउट सोर्स और संविदा कर्मियों को संगठित करने के तरफ बढ़ने की कार्य योजना पर काम हो रहा है.

निजी शिक्षा संस्थानों में कार्यरत श्रमिकों, कर्मचारियों की तीन  नई यूनियनें निर्मित की गई हैं, जिसमें एक एमिटी विश्वविद्यालय के श्रमिकों की है और दो यूनियनें जिला स्तरीय निजी शिक्षण संस्थानों में कार्यरत श्रमिकों की हैं. एमिटी यूनिवर्सिटी और एमिटी इंटरनेशनल स्कूल की यूनियनों को धीरे-धीरे राज्यस्तरीय स्वरूप देने की कोशिश के साथ प्रदेश के निजी शैक्षिक दायरे में सघन काम-काज की योजना ली गयी है.

स्कीम वर्कर्स व कुछ अन्य हिस्सों मे काम-काज में आई नई गति ने प्रदेश में ऐक्टू को पुनः एक व्यापक जनाधार हासिल कराया है जो उत्तर प्रदेश के मजदूर आन्दोलन में हमें अग्रगति हासिल करने में आधार बन सकता है.

पार्टी निर्माण की कोशिश

इस बार ऐक्टू के मोर्चे पर पार्टी निर्माण को एजेंडा बना कर काम किया गया और साथियों को इस दिशा मे प्रेरित किया गया, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आये हैं. स्कीम वर्कर्स में पूरे राज्य में उभर कर आयी तमाम अगुवा साथियों को पार्टी से जोड़ने की योजना ली गयी, जिसमें पूरे राज्य मे 242 पार्टी सदस्य भर्ती की गयीं. साथ ही, अन्य यूनियनों में पार्टी सदस्य बनाने के काम को आगे बढ़ाते हुए 120 पार्टी सदस्य 14 दिसम्बर तक भर्ती किये गये.

पहली बार प्रदेश में ऐक्टू के मोर्चे पर पार्टी निर्माण के  काम को राज्य स्तर पर लिया गया है. इसमें अब तक कुल 362 नये पार्टी सदस्य बन चुके हैं. इन नये पार्टी सदस्यों के समूह को दूसरे चक्र मे शिक्षित कर संगठन निर्माण व आन्दोलन के विकास मे लगाने से हमें उम्मीद है कि राज्य में न सिर्फ नये मजदूर नेतृत्व का विकास होगा, बल्कि मजदूर आन्दोलन के विकास मे भी हम छलांग लगा सकेंगे.

स्कीम वर्कर्स मे ज्यादातर महिलायें पार्टी सदस्य बनी हैं और इनमें पार्टी के काम-काज के जिलों से बाहर की भी काफी संख्या है. इनसे पार्टी को विस्तार मिलने के साथ ही हमें ऐपवा के निर्माण मे भी लाभ मिलेगा.

इस तरह उत्तर प्रदेश मे ऐक्टू निर्माण के नये दौर की तरफ बढ रहा है.

– अफरोज