28 फरवरी 2024 को जंतर मंतर पर ‘चलो दिल्ली - यंग इंडिया रैली’ की घोषणा!
शिक्षा- रोजगार के मुद्दे पर यंग इंडिया रेफेरेंडम में देशभर के युवाओं ने बड़ी संख्या में मोदी सरकार ने खारिज किया
मोदी सरकार के के 10 साल के उपर यंग इंडिया ने 10 मुद्दां पर चार्जशीट जारी किया
सभी प्रगतिशील छात्र-युवा संगठनों और आंदोलनों के संयुक्त मंच यंग इंडिया द्वारा आगामी 28 फरवरी को ‘2024 का एजेंडा, तय करेगा यंग इंडिया’ के नारे के साथ ‘चलो दिल्ली, यंग इंडिया रैली का आह्नान किया गया है। यह आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा-आरएसएस से लड़ने के लिए देश के छात्रों और युवाओं के दिल्ली में इकट्ठा होने का एक स्पष्ट आह्नान है।
विगत 12 फरवरी 2024 को दिल्ली के रायसीना रोड स्थित प्रेस क्लब ऑपफ इंडिया में देशव्यापी ‘यंग इंडिया रेफरेंडम’ के नतीजे जारी किए गए। ‘यंग इंडिया रेफरेंडम’ का उद्देश्य छात्रों और युवाओं की शिक्षा और रोजगार तथा उससे जुड़ी उनकी चिंताओं को उजागर करने के लिए उनका मत जानना था। यह बीते 7 से 9 फरवरी के बीच देश भर के 50 से अधिक विश्वविद्यालयों में मतदान के माध्यम से आयोजित किया गया था। छात्रों एवं युवाओं ने इस मतदान के मार्फत अपना मैंडेट देते हुए केंद्र सरकार को दो टूक जवाब दिया हैं, जो पिछले 10 वर्षों से सत्ता में रहने के बावजूद भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सम्मानजनक रोजगार तक सुनिश्चित करने में पूरी तरह विफल रही है। इसके लिए सरकार के ऊपर एक 10 सूत्री चार्जशीट जारी किया गया है जिसमें उस पर बड़े पैमाने पर फीस वृद्घि और बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न करने, छात्र विरोधी सीयूईटी व एफवाईयूपी लागू करने, सामाजिक न्याय से समझौता करने और वैज्ञानिक मनोवृति पर हमला करने का आरोप लगाया गया। साथ ही, विभिन्न प्रगतिशील छात्र संगठनों द्वारा एक ‘यंग इंडिया चार्टर’ भी जारी किया गया।
‘मोदी सरकार के 10 साल, यंग इंडिया के 10 सवाल’ और ‘जुमला नहीं जवाब दो, दस साल का हिसाब दो’ जैसे नारों के साथ दिल्ली के दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया व अम्बेडकर विश्वविद्यालय, बिहार के पटना विश्वविद्यालय, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, बीएन मंडल विश्वविद्यालय, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद विश्वविद्यालय, लखनउ विश्वविद्यालय तथा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश के एसके विश्वविद्यालय, डॉ. अब्दुल हक उर्दू विश्वविद्यालय तथा हैदराबाद विश्वविद्यालय, कर्नाटक के बेंगलुरु विश्वविद्यालय व श्री कृष्णदेव राय विश्वविद्यालय के साथ ही पेरियार विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्वविद्यालय व कोलकाता विश्वविद्यालय (दोनों प. बंगाल), आईसीएफएआई विश्वविद्यालय (त्रिपुरा), हेमचंद यादव विश्वविद्यालय (छत्तीसगढ़), अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय व मणिपाल विश्वविद्यालय सहित देश के कई अन्य कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों सहित छात्रावासों एवं छात्रों के इलाकों में ‘यंग इंडिया रेफरेंडम’ आयोजित किया गया।
अखिल भारतीय जनमत संग्रह का उद्देश्य 2024 के आम चुनावों के मद्देनजर छात्रों और युवाओं की राय जानना था। जनमत संग्रह एक अखिल भारतीय हस्ताक्षर अभियान के बाद आयोजित किया गया था, जिसके माध्यम से छात्रों और नौकरी चाहने वालों ने मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से उनके दस वर्ष के शासन पूरे होने पर दस सवाल पूछे हैं।
छात्रों ने यंग इंडिया जनमत संग्रह पर उत्साहपूर्वक प्रतिक्रिया व्यक्त की और सस्ती एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सम्मानजनक रोजगार के पक्ष में मतदान किया। उन्होंने वार्षिक शुल्क वृद्घि, जरूरतमंद छात्रों के लिए छात्रावास और छात्रवृत्ति के प्रावधान तथा मोदी के हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने के वादे से संबंधित सवालों पर मतदान किया। राष्ट्रीय स्तर पर जनमत संग्रह में लगभग 1 लाख वोट पड़े, जहां 88.33% छात्रों ने घोषणा की कि वे वार्षिक शुल्क वृद्घि के पक्ष में नहीं हैं। लगभग 86% छात्रों ने इस बात से इन्कार किया कि केंद्र सरकार जरूरतमंद छात्रों के लिए पर्याप्त छात्रावास और छात्रवृत्ति प्रदान करने में सक्षम है। वहीं मोदी सरकार के हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने वाले अपने वादे को पूरा करने में पूरी तरह से विफलता के खिलापफ 91% छात्र-युवाओं ने मतदान किया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 13,048 वोट मिले, जहां उपरोक्त तीन प्रश्नों पर क्रमशः 92%, 88% और 91% छात्रों का जवाब ‘नहीं’ में मिला। आंध्र प्रदेश में 23,450 वोटों के साथ, छात्रों और युवाओं ने क्रमशः 84%, 79% और 93% वोटों के साथ ‘नहीं’ में वोट दिया है. उत्तर प्रदेश के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में, जहां छात्रों को भाजपा के नेतृत्व वाली योगी सरकार और मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा विश्वविद्यालयों पर सबसे बड़े हमले का सामना करना पड़ रहा है, जनमत संग्रह के दौरान 1711 छात्र मतदान केंद्रों पर पहुंचे और उन्होंने हिंदू बहुसंख्यकवादी पार्टी के खिलाफ आवाज उठाई है। 91% छात्रों ने फीस वृद्घि के खिलाफ मतदान किया, 79% छात्रों ने कहा कि उन्हें केंद्र सरकार की छात्रवृत्ति या छात्रावास से कोई लाभ नहीं हुआ है, जबकि 87% छात्रों ने कहा कि केन्द्र-राज्य की डबल ईंजन सरकार युवाओं के लिए रोजगार पैदा करने में विफल रही है।
छात्रों और युवाओं का रिजेक्शन गूंज रहा है. शिक्षा और रोजगार पर कॉरपोरेट हमले के साथ-साथ नफरत और सांप्रदायिकता की विभाजनकारी नीतियों को पूरी तरह से खारिज किया जा रहा है. शिक्षा और सम्मानजनक रोजगार की मांग को अब तक नहीं सुना गया।
शिक्षक और सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता डॉ. लक्ष्मण यादव ने प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा, ‘हमारे परिसरों को जेलों में तब्दील किया जा रहा है। मैं एक पूर्व प्रोफेसर हूं क्योंकि विश्वविद्यालय अब अपने परिसर के अंदर लोकतांत्रिक विचारधारा वाले लोगों को नहीं रखना चाहता है और इस योजना को अब यूनिवर्सल बनाया जा रहा है।’
महिला और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता नताशा नरवाल ने कहा, ‘शिक्षा का एक मुक्तिगामी उद्देश्य है। छात्रों को आलोचनात्मक सोच सीखनी चाहिए और सामाजिक अन्याय पर सवाल उठाना शुरू करना चाहिए। हालांकि, मौजूदा शासक ने सक्रिय रूप से सार्वजनिक शिक्षा के इस पहलू को नष्ट करने की कोशिश की है।’
साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में आंदोलन के छात्र कार्यकर्ता अपूर्वा ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा, ‘लोकतांत्रिक भारत के लिए युवा भारत का आह्नान सरकार को जवाबदेह ठहराने से शुरू होता है। हमें नौकरियों और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की जरूरत है, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की नहीं।’
इस प्रेस कांन्फ्रेंस को ‘युवा हल्ला बोल’ के महासचिव प्रशांत कमल, एआइएसएफ के महासचिव दिनेश, एआइएसबी के अमित सिंह, आरवाइए के महासचिव नीरज, एसएफआइ के संयुक्त सचिव आदर्श, आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष निलासिस, छात्र सभा के उपाध्यक्ष विजय, एमएसएफ के अध्यक्ष अहमद, सीवाईएसएस से अनुराग और पीएसयू से सौंखा सहित विभिन्न छात्र-युवा संगठनों और आंदोलनों के नेताओं ने संबोधित किया। सभी ने युवा भारत के लिए अधिक से अधिक संगठनों और आंदोलनों को शामिल करने का संकल्प लिया।
लेकिन अब संदेश स्पष्ट है - सार्वजनिक वित्त पोषित उच्च शिक्षा संस्थानों का क्षरण, लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला, असहमति की आवाजों पर हमला, शिक्षा की दुर्गमता और सम्मानजनक रोजगार की कमी - अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
पिछले दस सालों में मोदी सरकार ने देश में बेरोजगारों की फौज खड़ी कर दी है. नौकरियों के 30 लाख से ज्यादा खाली पदों को दस साल में नहीं भरा गया, ऊपर से पदों को खत्म भी किया गया. भारतीय रेलवे में 3 लाख से ज्यादा पद खाली पड़े हैं लेकिन मोदी सरकार की इसे भरने में कोई रूचि नहीं है. रेलवे को नीलामी के बाजार में रख दिया गया है. ट्रेन, स्टेशन, प्लेटफार्म, रूट, स्टेडियम व स्कूल बेचे जा रहे हैं और भारी पैमाने पर ठेकाकरण किया जा रहा है.
100 से ज्यादा सरकारी कंपनियों के शेयर बेचे गए. जिससे नौजवानों की नौकरियां तो प्रभावित हुई ही, साथ ही साथ देश की आमदनी भी प्रभावित हुई. सेना में अग्निपथ योजना लाकर बहाली को ठेका पर देकर नौजवानों के भविष्य पर बुलडोजर चलाया गया. नौकरी पाने की उम्र में उन्हें रिटायरमेंट का पेपर थमा दिया गया है. सुरक्षा मामलों के जानकारों का यह भी मानना है कि यह न सिर्फ नौजवानों के भविष्य बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी बहुत बड़ा खतरा है.
जिन नौजवानों के हाथों को काम चाहिए उनके हाथों में तलवार थमा कर मुसलमानों का मोहल्ला दिया जा रहा है. रोजगार चाहने वाले हाथों में नफरत परोसी जा रही है. उन्हें नफरत के इस कारोबार में झोंक देने की चौतरफा कोशिश हो रही है और इस दौर को ‘अमृत काल’ बताया जा रहा है. ऐसे समय में नौजवानों की यह जिम्मेदारी है कि वे इस तबाही-बर्बादी के खिलाफ बहादुरी से खड़े हों.
नौजवान आन्दोलन की मांग रही है कि रोजगार पर प्रधनमंत्री मोदी श्वेत पत्र लाकर देश को बताए कि उन्होंने अपने दस साल के शासन में कितने लोगों को रोजगार दिया है. आज मोदी सरकार की हालत तो यह है कि वह रोजगार का नाम भी नहीं लेना चाहती. संसद में बजट पेश किया गया लेकिन उसमें रोजगार शब्द का नाम तक नहीं लिया गया. इसलिए यंग इंडिया ने 50 से ज्यादा विश्वविद्यालयों में रेफरेंडम के माध्यम से विद्यार्थियों की राय ली. 91 प्रतिशत ने मोदी सरकार की नीतियों को खारिज किया. अब 18-19 फ़रवरी को देश के 100 जिलों में नौजवानों के बीच यंग इंडिया रेफरेंडम आयोजित किया जाएगा और नौजवानों से इस पर उनकी राय ली जाएगी.
साथ ही 28 फरवरी को देश भर से आये विद्यार्थियों और नौजवानों के जत्थे दिल्ली की सड़कों पर दस्तक देंगे.