वर्ष - 28
अंक - 45
26-10-2019
[ भाजपा ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के घोषणापत्र में वीडी सावरकर को भारत रत्न देने की घोषणा की है. इसके घोषणापत्र में शामिल होने के साथ ही नया विवाद खड़ा हो गया है. सबसे बड़ा एतराज तो इसी बात को लेकर है कि इतने बड़े सम्मान को चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है. ऊपर से जिस शख्स को देने की बात की जा रही है वह खुद इतिहास का सबसे विवादित व्यक्ति रहा है. आजादी की लड़ाई के दौरान उसने अंग्रेजों से न केवल छह बार माफी मांगी है बल्कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब सुभाष चंद्र बोस बाहर रहकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई संगठित कर रहे थे तब यह शख्स युद्ध में अंग्रेजों के साथ लड़ने के लिए जगह-जगह सैनिक भर्ती कैंप लगा रहा था. और इस काम को उसकी अगुआई में पूरी हिंदू महासभा कर रही थी. और उससे भी बड़ा मामला यह है कि यह शख्स गांधी की हत्या में आरोपी था. और नाथूराम गोडसे और उसके साथियों के साथ हत्या के मुकदमे के दौरान कठघरे में खड़ा था. पहले मुकदमे में ठोस सबूतों के अभाव में बच गया था. लेकिन बाद में 1969 में इंदिरा गांधी के शासन के दौरान गांधी की हत्या की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जीवन लाल कपूर के नेतृत्व में एक जांच आयोग गठित किया गया था. एक सदस्यीय इस आयोग ने इनके खिलाफ कई सबूत हासिल कर लिए थे. लेकिन रिपोर्ट आने के कुछ ही दिनों बाद सावरकर की मौत हो गयी. नतीजतन इस मामले को कानूनी तौर पर आगे नहीं बढ़ाया जा सका. हम यहां इस रिपोर्ट के कुछ प्रासंगिक हिस्सों को प्रस्तुत कर रहे हैं – संपादक ]

1. हर आम व खास मौके पर सावरकर के साथ मौजूद रहते थे गांधी के हत्यारे गोडसे और आप्टे

वीडी सावरकर के निजी सुरक्षाकर्मी अप्पा रामचंद्र कासर का 4 मार्च 1948 को दर्ज किया गया बयान यह दिखाता है कि यहां तक कि 1946 में आप्टे और गोडसे (दोनों गांधी की हत्या के दोषी) सावरकर के घर अक्सर जाने वालों में शामिल थे और करकरे (गांधी की हत्या का दोषी) भी कभी-कभी जाता था. जब देश के विभाजन की चर्चा चल रही थी तो ये तीनों सावरकर से मिलने जाया करते थे और उनसे विभाजन के मसले पर विचार-विमर्श करते थे. सावरकर आप्टे और गोडसे को बताते थे कि कांग्रेस जिस तरह से काम कर रही है वह हिंदू हितों के खिलाफ है. और उन्हें अग्रणी के जरिये कांग्रेस, महात्मा गांधी और उनकी अधिनायकवादी नीतियों के खिलाफ प्रचार संचालित करना चाहिए. ‘अग्रणी’ एक अखबार था, जिससे ये सब जुड़े हुए थे. बाद में इसे सावरकर ने ही ले लिया था.

सावरकर, गोडसे, आप्टे और बडगे समेत अन्य

अगस्त 1947 में जब एक बैठक के सिलसिले में सावरकर पूना गए तो गोडसे और आप्टे उस दौरान हमेशा सावरकर के साथ रहे और ये सभी मिलकर हिंदू महासभा की भविष्य की नीति को लेकर बहस करते थे. (सावरकर ने) उन्हें बताया कि वह खुद अब बूढ़े हो रहे हैं और अब उनको ही इस काम को आगे बढ़ाना है.

अगस्त की शुरूआत में 5-6 अगस्त को अखिल भारतीय हिंदू महासभा का दिल्ली में एक कन्वेंशन था. (जिसमें भाग लेने के लिए) सावरकर, गोडसे और आप्टे हवाई जहाज में एक साथ गए थे (बांबे से दिल्ली). कन्वेंशन में कांग्रेस की नीतियों की जमकर आलोचना की गयी थी. 11 अगस्त को सावरकर, गोडसे और आप्टे प्लेन से बांबे एक साथ आये.

नवंबर 1947 के महीने में अखिल भारतीय हिंदू महासभा की माहिम (मुंबई) में एक कांफ्रेंस थी और ग्वालियर के डा. परचुरे (गांधी हत्या के दोषी) और सूर्य देव ने भी उसमें शिरकत की थी.

दिसंबर 1947 के बीच में बडगे (गांधी की हत्या का दोषी, हथियार इसी शख्स ने रखे थे.) सावरकर के स्वास्थ्य की जानकारी लेने के लिहाज से उनके पास आया लेकिन उसकी उनसे मुलाकात नहीं हो सकी.

13 या 14 जनवरी 1948 या फिर इसी के आस-पास करकरे सावरकर का हाल चाल लेने के लिहाज से उनके पास एक पंजाबी युवक के साथ आया था. वे सावरकर के पास 15-20 मिनट तक रुके. 15 या फिर  16 जनवरी को आप्टे और गोडसे सावरकर से रात में 9.30 बजे के आस-पास मिलने आए थे. फिर उसके तकरीबन एक सप्ताह बाद 23 या फिर 24 जनवरी को आप्टे और गोडसे एक बार फिर सावरकर के पास आए और उनके साथ सुबह 10 से लेकर 10.30 बजे तक तकरीबन आधा घंटा रहे.

अदालत में सावरकर और अन्य

महात्मा गांधी की हत्या की जब शाम 5.45 मिनट पर रेडियो पर घोषणा हुई तो कासर सावरकर के पास गया और उन्हें उसकी सूचना दी तो उन्होंने इसे एक बुरी खबर बताया और उसके बाद वह शांत हो गए. उसी रात 2 बजे दामले (सावरकर के निजी सचिव) और कासर गिरफ्तार हो गए और उन्हें सीआईडी दफ्तर ले आया गया. कासर ने कहा कि उसे हत्या के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है.

सावरकर के निजी सचिव गजानन विष्णु दामले से भी बांबे की पुलिस ने 4 मार्च 1948 को पूछताछ की थी. उसने बताया कि वह ‘अग्रणी’ के एनडी आप्टे को पिछले चार साल से जानता था. आप्टे ने अहमदनगर में एक राइफल क्लब शुरू किया था और युद्ध (द्वितीय विश्वयुद्ध) के समय आनरेरी रिक्रूटमेंट अफसर था. (आपको बता दें कि सावरकर के नेतृत्व में हिंदू महासभा ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजी सेना में भर्ती के लिए जगह-जगह रिक्रूटमेंट सेंटर खोले थे. आप्टे उन्हीं में एक अफसर था.)

आप्टे सावरकर के घर अक्सर आने-जाने वालों में शामिल था. कभी-कभी गोडसे के साथ आता था. जब अग्रणी अखबार के लिए सिक्योरिटी की मांग की गयी तब सावरकर ने आप्टे और गोडसे को 15 हजार रुपये दिए थे. वह अखबार बंद कर दिया गया था और हिंदू राष्ट्र के नाम से नया अखबार शुरू कर दिया गया था. सावरकर उसके निदेशकों में से एक थे. जबकि आप्टे और गोडसे मैनेजिंग एजेंट थे. वह वीआर करकरे को भी तीन साल से जानता था जो अहमदनगर में हिंदू महासभा का कार्यकर्ता था. और कभी-कभी सावरकर के पास आया करता था. बडगे (गांधी की हत्या का दोषी) को भी वह तीन सालों से जानता था. वह भी सावरकर के पास आता रहता था.

जनवरी 1948 के पहले सप्ताह में करकरे और एक पंजाबी रिफ्यूजी युवक सावरकर के पास आए थे. और ये दोनों उनके पास तकरीबन 30 से लेकर 45 मिनट तक रुके. दोनों फिर कभी सावरकर से मिलने नहीं आए.

आप्टे और गोडसे 1948 के मध्य में रात में सावरकर से मिलने आए थे. बडगे ने आखिरी बार जब सावरकर से मुलाकात की थी वह दिसंबर, 1947 था. डा. मुंजे समेत बहुत सारे हिंदू महासभा के नेता सावरकर से मिलने आया करते थे.

26 जनवरी 1948 को अखिल भारतीय हिंदू महासभा के सचिव आशुतोष लाहिड़ी भी सावरकर सदन आए थे. उनके साथ दो और लोग थे. ये सभी एयरपोर्ट से सीधे सावरकर सदन में स्थित उनके ऊपर के कमरे में पहुंचे थे. दूसरे दिन एक बार फिर  लाहिड़ी सावरकर से मिलने आए और उनके साथ तकरीबन एक से डेढ़ घंटे तक रहे. उसके बाद वह पूना चले गए और फिर  29 जनवरी को लौटे. वह फिर 30 जनवरी को सावरकर से मिलने आए और उनके साथ लंबी बातचीत की. लाहिड़ी ने शाम को 4 बजे एक प्रेस कांफ्रेंस की. उन्हें चौपाटी पर एक आम सभा को संबोधित करना था जिसको महात्मा गांधी की हत्या के चलते रद्द कर दिया गया.

महात्मा गांधी

रेडियो न्यूज में इस बात की घोषणा होने पर दामले तुरंत उसकी सूचना देने के लिए सावरकर के पास गया उन्होंने उससे कहा कि वह अगली सुबह एक प्रेस बयान देंगे. उसी रात दामले और कासर गिरफ्तार कर लिए गए.

इन दोनों गवाहों के बयान दिखाते हैं कि आप्टे और गोडसे दोनों बांबे स्थित सावरकर के घर पर अक्सर जाते रहते थे. यहां तक कि सम्मेलनों में या फिर तकरीबन हर सभा में उन्हें सावरकर के साथ देखा जा सकता था. जनवरी 1948 में वे सावरकर के साथ दिल्ली से बांबे आए और फिर बांबे से दिल्ली गए. यह प्रमाण यह भी दिखाता है कि करकरे भी सावरकर से अच्छे से परिचित था. वह अक्सर उनके घर आता-जाता रहता था. बडगे भी सावरकर के घर अक्सर आने-जाने वालों में शामिल था.

डा. परचुरे ने भी उनसे मुलाकात की. यह सब कुछ दिखाता है कि महात्मा गांधी की हत्या में जो लोग भी शामिल थे वो सभी किसी खास समय या फिर किसी दूसरे समय सावरकर सदन में इकट्ठा होते रहते थे और कभी-कभी इनकी सावरकर के साथ लंबी-लंबी बैठकें होती थीं. यह बेहद महत्वपूर्ण है कि करकरे और मदनलाल (मदन लाल पाहवा जिसने 20 जनवरी को दिल्ली स्थित बिड़ला हाउस में गांधी की कार पर पीछे से बम फेंका था) दिल्ली रवाना होने से पहले सावरकर से मिले थे और आप्टे तथा गोडसे दोनों ने बम फेंके जाने और हत्या होने से पहले भी सावरकर से मुलाकात की थी. हर मौके पर उनकी लंबी बैठकें हुई थीं. यह खास कर नोट किया जाना चाहिए कि 1946, 1947 और 1948 के दौरान हुई विभिन्न जगहों की आम सभाओं में गोडसे और आप्टे उनके साथ मौजूद थे.

2. पटेल और नेहरू समेत कांग्रेस के दूसरे शीर्ष नेता भी थे हत्यारे समूह के निशाने पर

(जेएल कपूर आयोग की दो खंडों में प्रकाशित रिपोर्ट के पहले खंड के पेज नंबर 321 पर एक सनसनीखेज खुलासा हुआ है. यह बात अभी तक देश के सामने उस रूप में नहीं आयी थी जैसी यहां पेश की गयी है. इसमें बताया गया है कि गांधी की हत्या करने वाली जमात के निशाने पर कांग्रेस के दूसरे नेता भी थे. इसमें संघ-बीजेपी द्वारा अपने प्रियतम नेता के तौर पर पेश किए जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल भी शामिल थे. रिपोर्ट के इस हिस्से को पढ़कर कोई भी समझ सकता है कि न केवल गांधी बल्कि कांग्रेस के संबंधित नेताओं की हत्या की साजिश की पूरी जानकारी वीडी सावरकर को थी. रिपोर्ट पढ़कर ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेताओं की हत्या हिंदू महासभा के अगुआ दस्ते का मिशन बन गया था.)

उस फाइल के विभिन्न पेजों पर अलग-अलग ऐसे व्यक्तियों का जिक्र है जिन्हें गिरफ्तार किया गया था और फिर उनसे पूछताछ की गयी थी. लेकिन पेज नंबर 52 पर सीआरपीसी के सेक्शन-164  के तहत देवेंद्र कुमार नाम के एक शख्स द्वारा मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया बयान दर्ज है जो मूलतः गोवा का रहने वाला था और हिंदू राष्ट्र दल में मार्च 1937 में शामिल हुआ था. उसने बताया था कि उसकी दल के कैप्टन एनवी गोडसे से मुलाकात हुई थी.

बयान दिखाता है कि गवाह को कैसे बम बनाना सिखाया गया था. साथ ही उसे साइकिल तथा कार के जरिये गन बनाने की विधि भी बतायी गयी थी. साथ ही यह भी बताया गया था कि पिस्टल और रिवाल्वर का कैसे इस्तेमाल किया जाता है. वह दूसरों को भी ट्रेनिंग दे रहा था. तमाम दूसरी चीजों के अलावा उसने खुलासा किया कि महात्मा गांधी, नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद और बलदेव सिंह सभी की हत्या करने की योजना बनी थी. क्योंकि ये सभी राष्ट्र दल के रास्ते का बाधा बन रहे थे. पार्टी इस कार्यक्रम को लागू करने के लिए मौके का इंतजार कर रही थी. उसके बाद उसने जोड़ा –

“हम इन नेताओं के खिलाफ जनता के दिमाग में घृणा पैदा कर रहे थे और इस बात की योजना बनी थी कि जैसे ही जनता तैयार हो जाएगी एक के बाद दूसरे नेताओं की हत्या कर दी जाएगी. … जब मैंने गांधी जी की दुखद घटना के बारे में सुना तो मैं पूरे सकते में आ गया. मैंने सावरकर को एक पत्र लिखा जिसमें कहा कि अगर वह शेष कार्यक्रम को लागू होने से नहीं रोकते हैं तो मैं उनका पर्दाफाश कर दूंगा. ...”

महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में शामिल नामों की जो फेहरिस्त बतायी उसमें देशपांडे, आप्टे, गोडसे, ए चह्वाण, मोदक, जोग और सावरकर के सचिव तथा बाॅडीगार्ड क्रमशः दामले और कासर, कासकर, जोशी, जोगुलकर और चंद्रशेखर अय्यर शामिल थे. उसने बम को बनाने वालों की सूची दी और उसमें पूना के नारायन पेठ का डीआर बडगे शामिल था. अपराध के संदर्भ में इस बयान का शायद कोई मतलब न हो लेकिन यह दिखाता है कि हत्या के बाद देश की पूरी पुलिस सक्रिय हो गयी थी. देवेंद्र कुमार से पूछताछ यूपी के मिर्जापुर में एक मजिस्ट्रेट ने की थी. और जांच बनारस और लखनऊ के अफसरों ने किया था. इस देवेंद्र कुमार को दिल्ली लाया गया था और यहां पुलिस ने उससे पूछताछ की थी. उसका बयान यह दिखाता है कि हिंदू महासभा और राष्ट्र दल के काम करने के तरीकों की उसको अच्छी जानकारी थी.

देवेन्द्र कुमार के बयान में बरसी में आयोजित हिंदू महासभा के एक सत्रा का भी जिक्र है जहां एनवी गोडसे ने एक बेहद उत्तेजक भाषण दिया था और कांग्रेस सरकार के खिलाफ ‘मौलाना गांधी मुर्दाबाद’, ‘गांधीवाद मुर्दाबाद’ जैसे बेहद आपत्तिजनक नारे लगाए थे. गोडसे ने कांग्रेस से लड़ने के लिए हथियारों को एकत्रित करने की भी वकालत की. मुख्य निशाना ‘मौलाना गांधी’, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद और बलदेव सिंह थे. यह जोगेश्वरी मंदिर में हिंदू राष्ट्र दल की एक बैठक थी जिसमें गोडसे, आप्टे, करकरे, कासर और ढेर सारे दूसरे मौजूद थे.

3. बिड़ला भवन में बम फेंकने वाले मदनलाल पाहवा ने भी बताया था सावरकर को मुख्य षड्यंत्रकारी

(30 जनवरी, 1948 को हत्या के आखिरी हमले से ठीक पहले 20 जनवरी को भी गांधी को मारने की कोशिश हुई थी, जब मदनलाल पाहवा नाम के एक शख्स ने दिल्ली स्थित बिड़ला हाउस पर बम फेंका था. हत्यारों की इस टीम में अकेला वही शख्स पंजाबी था. बाकी सभी महाराष्ट्रियन थे. घटना के बाद उसे पकड़ लिया गया था और उसने भी अपने बयान में दो नाम लिए थे. पहला अहमदनगर से जुड़ा करकरे और दूसरा सावरकर.)

दिल्ली में बम विस्फोट की घटना और मदनलाल की गिरफ्तारी के बाद गवाह नंबर-27 प्रोफेसर जेसी जैन जो मदन लाल में (उसकी गतिविधियों में) दिलचस्पी ले रहे थे और इस तरह से उसका विश्वास हासिल कर लिया था, ने श्री बीजी खेर (बांबे प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री) और श्री मोरार जी देसाई (राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री) को कुछ सूचनाएं दे दी थी. सूचना यह थी कि दिल्ली षड्यंत्र के उद्देश्य को पूरा करने के लिहाज से दिल्ली जाने से पहले मदन लाल ने उन्हें करकरे के साथ अपने रिश्तों और सावरकर के साथ अपनी बैठक के बारे में बताया था. और यह कि महात्मा गांधी की हत्या का एक षडयंत्र था.

प्रोफेसर जैन अपनी सूचना को लेकर बेहद उलझन में थे और उन्होंने इस बात का अपने मित्रों अंगद सिंह और प्रोफेसर याज्ञनिक के सामने जब खुलासा किया तो वो भी उलझन में पड़ गए. लेकिन मामले पर गंभीर होने की जगह उन्होंने इस तरह से लिया जैसे मदनलाल डींग मार रहा हो. बावजूद इसके प्रोफेसर जैन ने श्री जयप्रकाश नारायण से मिलकर उन्हें यह सूचना देने की कोशिश की लेकिन ऐसा करने में वह नाकाम रहे क्योंकि जय प्रकाश नारायण उस समय बहुत व्यस्त थे. वह और उनके मित्र अंगद सिंह ने इस सूचना को श्री अशोक मेहता (समाजवादी नेता) और मोइनुद्दीन हैरिस को दिया. लेकिन उन लोगों को इस घटना की याद नहीं है.

बिड़ला हाउस (दिल्ली स्थित मौजूदा गांधी स्मृति स्थल) में बम के फटने की घटना (यह घटना 20 जनवरी को हुई थी) के बाद मदन लाल (पाहवा) ने एक बयान दिया था जिसमें इस बात के बिल्कुल साफ संकेत थे कि महात्मा गांधी की हत्या का षडयंत्र रचा जा रहा है. यह बिल्कुल साफ तौर पर महात्मा की हत्या का षड्यंत्र था. मदनलाल का बयान एक षडयंत्र के होने की बात को दिखाता था जिसमें मराठा शामिल थे जैसा कि मदनलाल उन्हें बुलाता था, और यह पूरा षड्यंत्र महात्मा गांधी के जीवन के खिलाफ निर्देशित था. 20 जनवरी, 1948 को दिए गए अपने पहले बयान में मदनलाल द्वारा कम से कम दो नामों करकरे और सावरकर का जिक्र किया गया था. और हिंदू राष्ट्रीय दैनिक के मालिक के नाम का खुलासा उसके 24 जनवरी के बायन में हुआ था (एक्स.1). अब यह दिल्ली पुलिस के ऊपर था कि वह खुफिया एजेंसियों के जरिये उस सूचना पर काम करती और महात्मा गांधी की सुरक्षा के लिहाज से उपाय करती जैसी कि उस समय की परिस्थितियों की जरूरत थी.

इस विषय पर बात करने से पहले कुछ तथ्यों पर गौर करना जरूरी है. दिल्ली में बम 20 जनवरी को एक पंजाबी मदनलाल द्वारा फेंका गया था जो मराठियों के षडयंत्र में एक गैर मराठी था. शायद यह एक छल था. प्रोफेसर जैन द्वारा श्री मोरारजी देसाई को सूचना 21 जनवरी को दी गयी और फिर उसी समय नागरवाला (मामले को देखने वाले बांबे के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर) को दे दी गयी. और उसके बाद नागरवाला ने अपने खुफिया जासूसों और मुखबिरों को काम पर लगा दिया. उस समय नागरवाला से दो नामों का जिक्र किया गया था – अहमदनगर का करकरे और बांबे का वीडी सावरकर – और वह मदनलाल की गिरफ्तारी के बारे में जानते थे.

22 जनवरी को दिल्ली पुलिस के दो अफसर श्री नागरवाला से मिले और उन्हें कुछ सूचनाएं दीं. श्री नागरवाला बताते हैं कि वे करकरे जिसे वे गिरफ्तार करना चाहते थे, के नाम के अलावा कुछ नहीं जानते थे. बाकी जो सूचना दिल्ली पुलिस द्वारा मुहैया करायी गयी थी उसको लेकर भीषण विवाद रहा है.