बिहार विधानमंडल के मॉनसून सत्र में बिहार के विशेष राज्य का दर्जा, राज्य में बढ़ते अपराध-सामंती हिंसा-बलात्कार-ढहती कानून व्यवस्था-पुलों के ध्वंस-संस्थाबद्ध भ्रष्टाचार तथा सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के उपरांत 95 लाख गरीब परिवारों को 2 लाख रु. की सरकारी घोषणा को अमलीजामा पहनाने, कृषि के लिए 20 घंटे बिजली, भूमिहीनों को 5 डिसमिल जमीन, आशा-रसाइयों-आंगनबाड़ी के लिए सम्मानजनक मानदेय, नहरों के अंतिम छोर तक पानी की पहुंच आदि सवालों पर सरकार हांफती दिखी. विपक्ष की सामूहिक घेरेबंदी से बेदम सरकार के पास जनता के ज्वलंत सवालों से बच निकलने का एकमात्र रास्ता था कि विपक्ष की आवाज दबा दी जाए और उसने ऐसा ही किया. विधान परिषद् में जहां मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार की मिमिक्री करने के आरोप में राजद एमएलसी सुनील सिंह की सदस्यता ही खारिज कर दी गई, वहीं विधानसभा में भाजपा कोटे के अध्यक्ष ने खुलकर अपनी मनमानी चलाई. विपक्ष के किसी भी सवाल को सही से पटल पर आने ही नहीं दिया गया और और न ही उसपर कोई चर्चा कराई गई.
हालांकि यह पहला मौका था जब विधानपरिषद् में भी भाकपा-माले की आवाज गूंज रही थी. विधान पार्षद शशि यादव के आक्रामक तेवरों की धमक खुलकर दिखी. सुनील सिंह की बर्खास्तगी पर उन्होंने विपक्ष को संगठित करने में महत्वपूर्ण निभाई और आने वाले दिनों के लिए सरकार को आगाह कर दिया कि परिषद् के भीतर भी जवाब देने के लिए उसे अब तैयार रहना होगा.
विधानमंडल की शुरूआत 22 जुलाई को हुई. पहले दिन माले विधायकों ने ‘ढह गया सुशासन-बह गया विकास’ के बैनर तले सतमूर्ति से विधानसभा तक मार्च किया. यह मार्च हाल के दिनों में राज्य के अंदर बढ़ते अपराध-सामंती हिंसा और पुलों के लगातार ढहने की घटनाओं के खिलाफ था. माले विधायकों ने कहा कि आज बिहार में कानून व्यवस्था का कोई इकबाल नहीं रह गया है. नीतीश कुमार का सुशासन ढह गया है और तथाकथित विकास नदियों में बह गया है.
उसी दिन केंद्र सरकार ने पहली बार स्पष्ट तौर पर कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता. भाजपा के विश्वासघात और जदयू के आत्मसर्मपण के खिलाफ भाकपा-माले ने महागठबंधन के अन्य दलों के साथ सदन के अंदर सरकार को घेरने की संयुक्त कार्यनीति बनाई. हालांकि यह कार्यनीति और असरदार साबित होती यदि नेता प्रतिपक्ष भी सदन के अंदर मौजूद होते. यह देखा गया है कि उनकी अनुपस्थिति में राजद विधायक दल बिखराव का शिकार हो जाता है, जो कहीं से भी उचित संदेश नहीं देता. फिर भी विपक्ष ने संयुक्त ढंग से सरकार का घेराव किया. 23 जुलाई को बिहार के विशेष राज्य के दर्जे के सवाल पर कार्यस्थगन प्रस्ताव लाया और उसपर बहस की मांग की गई. लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने इसकी इजाजत नहीं दी. इसके खिलाफ विपक्ष के सभी विधायक एकजुट होकर बेल में आ गए और बहस की मांग करने लगे. सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं था. नतीजतन, महागठबंधन ने उस दिन की बैठक का बहिष्कार किया.
अगले दिन 65 प्रतिशत आरक्षण पर विपक्ष का कार्यस्थगन प्रस्ताव था. उसके साथ भी वही हश्र हुआ, जो पहले दिन हुआ था. अध्यक्ष ने बहस की स्वीकृति नहीं दी. इससे नाराज महागठबंधन के विधायक बेल में उतरकर लगातार नारेबाजी करते रहे. उसी दिन मुख्यमंत्री ने एक बार फिर अपनी बदहवासी का परिचय दिया. विपक्ष के सवालों का जवाब देने की बजाए वे राजद की विधायक रेखा देवी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी कर बैठे. इसने विपक्ष को और भी आंदोलित किया. मुख्यमंत्री से बात वापस लेने की मांग होने लगी. लेकिन मुख्यमंत्री सदन के भीतर अजीबोगरीब व्यवहार करते रहे.
25 जुलाई को विपक्ष ने अपराध व सामंती हिंसा को मुद्दा बनाया. उस प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया गया. इससे नाराज महागठबंधन ने बेल के अंदर समानान्तर सदन लगा दी. माले विधायक दल के नेता महबूब आलम की अध्यक्षता में विधानसभा के बेल में ही घंटों विपक्ष की समानान्तर सभा चलती रही. विरोध की यह रचनात्मक प्रक्रिया आकर्षण का केंद्र बनी. 26 जुलाई को अंततः अध्यक्ष ने बहस कराने की इजाजत तो नहीं दी लेकिन कार्यस्थगन प्रस्ताव पढ़ने की अनुमति प्रदान की. विशेष राज्य के दर्जा, राज्य में बढ़ते अपराध के साथ-साथ महागरीब परिवारों के लिए 2 लाख रु. की सहायता राशि की मांग पर कार्यस्थगन प्रस्ताव पढ़ा गया. माले विधायक दल नेता महबूब आलम ने कहा कि जाति आधारित सर्वेक्षण के उपरांत राज्य के तकरीबन 95 लाख महागरीब परिवारों को लघु उद्यमी योजना के तहत 2 लाख रु. की सहायता राशि की सरकारी घोषणा आय प्रमाण पत्र के झमेले और ऑनलाइन आवेदन के प्रावधानों के कारण एक क्रूर मजाक बनकर रह गई है. इस राशि के लिए 72 हजार रु. से कम वार्षिक आमदनी के आय प्रमाण की शर्त लगा दी गई है जबकि प्रशासन 1 लाख रु. से नीचे का प्रमाण पत्रा जारी नहीं कर रहा है. जब सरकार के पास पहले से 95 लाख महागरीब परिवारों का डाटा उपलब्ध है तो फिर आय प्रमाण पत्र क्यों मांगा जा रहा है? सरकार की ओर से जारी लघु उद्यमों की सूची में पशुपालन जैसा महत्वपूर्ण क्रियाकलाप शामिल ही नहीं है, जो गरीबों के जीवन-जिंदगानी का सबसे बड़ा सहारा है. उन्होंने सभी महागरीब परिवारों को बिना शर्त व एकमुश्त 2 लाख रु. की राशि उपलब्ध करवाने तथा लघु उद्यमों की सूची में पशुपालन को जोड़ने के अति महत्वपूर्ण लोक महत्व के प्रश्न पर पर सदन का कार्य स्थगित कर बहस की मांग की. विदित हो कि सदन के अंदर दो दिन पहले ही मुख्यमंत्री ने कहा था कि यह प्रक्रिया जारी हो चुकी है. यदि सरकार सचमुच सभी महागरीब परिवारों को पैसा देने के लिए तत्पर थी, तो वह फिर बहस से भागती क्यों रही?
दलितों-अतिपिछिड़ों और पिछड़ों के लिए 65 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल किए जाने के सवाल पर बिहार सरकार पूरी तरह बेनकाब हो गई. लेकिन उससे भी दुखद यह रहा कि इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर विधानसभा अध्यक्ष ने वोटिंग कराने से इंकार कर दिया और सदन के अंदर विपक्ष की आवाज दबा दी. माले विधायक का. अजीत कुमार सिंह द्वारा दिए गए गैरसरकारी संकल्प पर सरकार को जवाब देते नहीं बना. दरअसल, दो दिन पहले उसी सदन में मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने घोषणा की थी कि 65 प्रतिशत आरक्षण को 9वीं अनुसूची में शामिल कराने का प्रस्ताव भेजा जा चुका है. विधायक अजीत कुमार सिंह ने पूछा कि सरकार इससे संबंधित नोटिफिकेशन दिखलाए अथवा विधानसभा से प्रस्ताव पारित करवाए. सरकार की ओर से जवाब देते हुए मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि पटना उच्च न्यायालय द्वारा 65 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को रद्द करने के बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है. सुप्रीम कोर्ट से फैसला आ जाने के उपरांत ही सरकार इस दिशा में आगे बढ़ पाएगी. इस पर भाकपा-माले सहित महागठबंधन के सभी विधायकों ने जबरदस्त हंगामा शुरू कर दिया. विधायकों ने कहा कि तथाकथित डबल इंजन की सरकार के दोनों इंजन इस मामले में अलग-अलग दिशा में चल रहे हैं. ये लोग मौखिक तौर पर तो बोल देते हैं लेकिन लिखित तौर पर कुछ नहीं करते. विपक्ष के विधायक उक्त गैरसरकारी संकल्प पर वोटिंग की मांग पर अड़ गए. नियमानुसार विधानसभा अध्यक्ष को गैरसरकारी संकल्प वापस नहीं लेने पर वोटिंग करवानी चाहिए थी, लेकिन संघी अध्यक्ष ने इस मांग को ठुकरा दी. इससे आक्रोशित विपक्ष के सभी विधायक बेल में उतर आए और वोटिंग की मांग करने लगे. लेकिन अध्यक्ष अपने अड़ियल रवैये पर अड़े रहे. काफी देर हंगामा के बाद इंडिया गठबंधन के सभी विधायकों ने सदन का बहिष्कार कर दिया.
उसी प्रकार पालीगंज से माले विधायक संदीप सौरभ द्वारा पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने के सवाल पर सदन से प्रस्ताव लेने के गैरसरकारी संकल्प पर शिक्षा मंत्री के गोलमोल जवाब से भाजपा-जदयू का असली चेहरा खुलकर सामने आ गया कि वे पटना विवि को केंद्रीय विवि को दर्जा दिलाने के सवाल पर कहीं से भी गंभीर नहीं है. उक्त मांगों के अलावा नहरों के अंतिम छोर तक पानी की पहुंच और खेती के लिए 20 घंटे की बिजली की मांग आदि पर भी सरकार की बेरूखी खुलकर सामने आई.