वर्ष - 33
अंक - 31
27-07-2024

 का. दीपंकर भट्टाचार्य, महासचिव, भाकपा(माले)

जेपी नड्ढा के इंडियन एक्सप्रेस में दिए साक्षात्कार के बाद, जिसमें उन्होंने कहा था कि भाजपा की वयस्कता आरएसएस द्वारा अभिभावकीय पर्यवेक्षण के चरण से आगे निकल गई है, आरएसएस-भाजपा संबंधों के बारे में बहुत सारी इच्छापूर्ण और बेकार की अटकलें लगाई जा रही हैं. तब जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा के अध्यक्ष पद का उपयोग करते हुए आरएसएस की प्रशंसा की थी, और अब मोदी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस संगठन और गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति देने का आदेश दिया है.

मीडिया और न्यायपालिका से लेकर नौकरशाही और शिक्षा जगत तक के प्रशासनिक और प्रभावशाली पदों पर आरएसएस की बढ़ती छाप हाल के दिनों में बहुत स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है. अब विभिन्न विभागों में सरकारी कर्मचारियों की भर्ती शायद संघ से ही की जाएगी. सरकारी आदेश न केवल आरएसएस के उस काले इतिहास को मिटाने का प्रयास करता है, जिसके कारण 1948 में सरदार बल्लभ भाई पटेल ने इस पर प्रतिबंध लगाया था और उसके बाद सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस में भाग लेने से रोकने का सरकारी आदेश दिया गया था, बल्कि यह संघ ब्रिगेड द्वारा प्रशासन में खुलेआम हेरफेर करने का द्वार भी खोलता है.

जब एक संगठन जिसने भारतीय संविधान को अपनाने के समय ही खुलेआम खारिज कर दिया था, उसे इस पैमाने पर और इस तरीके से फिर से स्थापित किया जाता है, तो संविधान और गणतंत्र के लिए खतरा और भी अधिक बढ़ जाता है.

क्या सुप्रीम कोर्ट भीतर से विध्वंस के इस खतरनाक धमकीे पर ध्यान देगा? यह आदेश मोदी सरकार को मिले 2024 के जनादेश का अहंकारी अपमान का एक और संकेत है.