वर्ष - 33
अंक - 31
27-07-2024

- अखिल भारतीय  किसान महासभा

अखिल भारतीय किसान महासभा ने संसद में पेश केन्द्रीय बजट को देश की खेती व किसानों के लिए पूरी तरह निराशाजनक बताते हुए इसे कृषि क्षेत्र में कारपोरेटीकरण को बढ़ाने वाला बताया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन द्वारा पेश केन्द्रीय बजट सी-2+50% के आधार पर फसलों की एमएसपी, किसानों की कर्ज माफी, किसान पेंशन और किसान सम्मान निधि में बढ़ोतरी जैसे किसानों की प्रमुख मांगों पर चुप्पी साधे रहा है. खेती में लागत कम करने के लिए कृषि यंत्रों, बीज, खाद और कीटनाशकों को टैक्स प्रफी करने की किसानों की मांग को भी सरकार ने पूरी तरह नजरअंदाज किया है. देश की आधी से ज्यादा आबादी की आजीविका को चलाने वाले कृषि क्षेत्र के लिए मात्र ढाई प्रतिशत (1.27 लाख करोड़ रूपये) से कुछ ज्यादा बजटीय प्रावधान किया गया है. किसान सम्मान निधि व कृषि बीमा के लिए जारी आवंटन भी जरूरत से काफी कम है.

ये बताता है कि किस तरह देश की खेती-किसानी को तबाह कर इस क्षेत्र में कारपोरेट की घुसपैठ का रास्ता बनाया जा रहा है. डिजिटल एग्रीकल्चर योजना को कृषि उपज के भंडारण और मंडी पर कारपोरेट का नियंत्रण बढ़ाने वाला बताया. साथ ही अधिक उत्पादन देने वाले बीज लाने की योजना को भारत की खेती में जीएम बीजों की घुसपैठ कराने की साजिश करार दिया. एक तरफ सरकार एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती कराने की बात कर रही है, वहीं भारत की खेती में जीएम बीजों के प्रवेश के लिए उतावली है. बजट में ग्रामीण गरीबों की न्यूनतम मजदूरी में गुजारे लायक बढ़ोतरी और मनरेगा बजट को दोगुना कर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढाने की मांग को भी अनसुना किया गया है. बटाईदार किसानों को खेती के लिए मिलने वाले सरकारी लाभों को देने और पूरे देश में फसलों की सरकारी खरीद को बढ़ाने की सरकार की कोई योजना बजट में नहीं दिखती है.

केन्द्रीय बजट में स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र के लिए 2 प्रतिशत (90.17 लाख करोड़ रूपये) बजट का भी प्रावधान नहीं है. इससे पहले से ही तबाह हो रही देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के और भी चरमराने की उम्मीद है. वहीं शिक्षा, रोजगार और कौशल विकास जैसी तीन बड़ी योजनाओं के लिए मात्र तीन प्रतिशत के करीब (1.48 लाख करोड़ रूपये) का प्रावधान मोदी सरकार द्वारा इस क्षेत्र की पूर्ण उपेक्षा को उजागर करने के लिए काफी है. देश पर बढ़ते कर्ज (205 लाख करोड़ रुपया) और उसके व्याज व किस्त के भुगतान में ही पूर्ण बजट के लगभग 20 प्रतिशत राशि का खर्च किया जाना मोदी राज में देश की गिरती आर्थिक स्थिति की दशा बताने के लिए काफी है.

वेतन भोगी कर्मचारियों को 5 लाख रुपए तक की आमदनी में पूर्ण टैक्स माफी की बहुप्रतीक्षित मांग को सरकार ने एक बार फिर अनसुना किया है. शेयर मार्केट में पूंजी निवेश करने वाले छोटे निवेशकों पर सरकार ने टैक्सों में बढ़ोतरी की है. पर मार्केट में सूचीबद्ध कम्पनियों द्वारा शेयरों को बेच कर कमाए जा रहे अकूत मुनाफे पर कोई टैक्स नहीं लगाया है. किसान महासभा शेयर बेच कर अकूत मुनाफा कमाने वाली कम्पनियों और देश के अमीरों की सम्पत्ति के विरासत हस्तान्तरण पर टैक्स लगाकर उसे कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च करने की मांग करती है.