वर्ष - 32
अंक - 21
20-05-2023

कुमार परवेज

बिहार में भाजपा लगातार परेशानी में है और सत्ता से बेदखली के बाद तो भारी बौखलाहट में भी. समाजवादी-कम्युनिस्ट आंदोलन की यह सरजमीं उसके लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है, जहां उसे अबतक खुलकर खेलने का मौका नहीं मिल सका है. खुलकर खेलने के लिए वह हर तरह के हथकंडे अपना रही है, फिर भी उसे अपेक्षित सफलताएं नहीं मिल पा रही हैं. रामनवमी के दौरान बिहार को अस्थिर करने की उसकी साज़िश बिहारशरीफ हो या सासाराम, हर जगह, बेनकाब हुई. सासाराम हिंसा मामले में भाजपा के पूर्व विधायक जवाहर प्रसाद को गिरफ्तार भी किया गया. बिहारशरीफ में भी भाजपा के स्थानीय विधायक सुनील सिंह पर तलवार लटक रही है. रामनवमी हिंसा के कुछ दिन पहले ही भाजपा संरक्षित तथाकथित यूट्यूबर मनीष कश्यप की भी गिरफ्तारी हुई, जिसने तमिलनाडु में बिहारी प्रवासी मजदूरों पर हमले की झूठी खबरें फैलाई थीं और भाजपा उसपर राजनीति करना चाहती थी. भाजपा का हर दांव अब तक उलटा ही पड़ा है.

एक तरफ सांप्रदायिक नफरत व हिंसा भड़काने की कोशिशें हैं, तो दूसरी ओर तथाकथित धर्मगुरूओं के प्रवचनों के जरिए हिन्दू मतों को एकजुट करने की साज़िशें हैं. अभी हाल में बागेश्वर धाम के धर्मगुरू पंडित धीरेन्द्र शास्त्री का पटना के समीप नौबतपुर के तरेत पाली में पांच दिनों का हनुमंत कथा प्रवचन का समारोह हुआ. धर्म से ज्यादा सियासी गलियारों में इसकी चर्चा रही. विगत साल शाहाबाद में भी ऐसा ही एक बड़ा कार्यक्रम हुआ था. काशी, मथुरा, बनारस आदि के संत-महात्माओं के प्रवचन आयोजित किए गए थे. उक्त कार्यक्रम में भी भाजपा के कई केंद्रीय मंत्री और कई राज्यों के राज्यपाल शामिल हुए थे.

पंडित धीरेन्द्र शास्त्री की चर्चा एक ‘चमत्कारी’ बाबा के रूप में हो रही है. प्रचार है कि 28 वर्षीय बाबा में अलौकिक शक्तियां हैं, जिसके जरिए वे किसी भी व्यक्ति का दुख-दर्द जान लेते हैं और उसका निराकरण भी बताते हैं. बाबा ने अपने मंच से एक गीत भी गाया – जानत बबुआ जीएम होइ हो, ना ना इ त डीएम होई हो, ना ना सीएम होई हो! देश की आम जनता ने नरेन्द्र मोदी से ‘चमत्कार’ की उम्मीदें करना कब का छोड़ दिया. 9 सालों से जारी भाजपा शासन में उन्होंने अपनी बर्बादी व तबाही ही देखी है और उसे लगातार झेला भी है. उम्मीदों के टूटने के ऐसे दौर में ही ‘चमत्कारी’ बाबा सामने आकर मोर्चा संभालते हैं. धार्मिक प्रवचनों की आड़ में अंधविश्वास और हनुमंत कथा के नाम पर उन्माद फैलाकर भाजपा के लिए राजनीतिक माहौल बनाने की कोशिश करते हैं. सामाजिक न्याय और बिहार की धर्मनिरपेक्ष माटी में भाजपा ऐसे ही किसी ‘चमत्कारी’ बाबा के जरिए अपना बेड़ा पार लगाना चाहती है. हालांकि कर्नाटक में ‘बजरंग बली’ ने भाजपा का साथ नहीं दिया. वार उलटा पड़ा. बिहार तो ऐसे भी अपनी प्रतिरोधी चेतना के लिए जाना जाता रहा है.

सो, अकारण नहीं कि धार्मिक आवरण में छिपे इस ढोंग को भाजपाइयों और मीडिया ने खूब उछाला. अखबारों के पन्ने बाबा के आने के पहले से ही रंगे रहे. तरह-तरह की कहानियां बनाई गईं. भाजपा को इसमें अपना राजनीतिक फायदा दिख रहा था. उसके बड़े नेताओं ने उनके स्वागत में पलक पांवड़े बिछाए रखा. भाजपा सांसद मनोज तिवारी पटना से नौबतपुर तक की यात्रा में उनके ड्राइवर बने, तो बिहार भाजपा के सभी बड़े नेता उनकी चरण वंदना करते नजर आए. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, बिहार भाजपा के अध्यक्ष सम्राट चौधरी, पाटलिपुत्रा के सांसद रामकृपाल यादव, पटना सहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद, विधानसभा में भाजपा विधायक दल के नेता विजय कुमार सिन्हा आदि सभी नेताओं ने पांचों दिन बाबा धीरेन्द्र शास्त्री के दरबार में हाजिरी लगाई.

धीरेन्द्र शास्त्री महज हनुमंत कथा का पाठ करने आए थे, तो केवल भाजपा के ही लोग साथ क्यों थे? उनके प्रवचनों से यह स्पष्ट हो जाता है. उन्होंने अपने प्रवचन के दौरान दो ऐसी बातें कहीं, जिनपर गंभीरता से विचार करना चाहिए. पहली क – “भारत हिंदू राष्ट्र बनने के रास्ते में है. बिहार की 13 करोड़ की आबादी में महज 5 करोड़ ही जिस दिन अपने माथे पर तिलक लगा लेगी और अपने घरों पर भगवा झंडा फहरा देगी, हम भारत को हिंदू राष्ट्र में तब्दील कर देंगे.” दूसरी – “यदि देश को हिंदू राष्ट्र बनाना है तो हमें जातिवाद से मुक्त होना होगा.”

मतलब, कलश यात्राओं और धर्मगुरूओं के प्रवचनों के जरिए बिहार से ‘हिंदू राष्ट्र’ की आवाज उठाकर हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के जरिए भाजपा आगामी चुनाव जीतने का ख्वाब देख रही है. बाबा वही कर रहे थे जो भाजपा चाहती है. महागठबंधन के सभी दलों ने धीरेन्द्र शास्त्री के ‘हिंदू राष्ट्र’ वाले बयान की निंदा की और उसे संविधान विरोधी बताया. हनुमंत कथा में शामिल होने के आमंत्रण के बावजूद महागठबंधन का कोई भी नेता बाबा के दरबार में नहीं पहुंचा.

बाबा का दूसरा हमला ‘जातिवाद’ पर था. अभी हाल में जातीय गणना पर पटना उच्च न्यायालय के रोक के आदेश के बाद यह मामला भी चर्चा में है. जातीय गणना के मामले में भी भाजपा बेनकाब हो चुकी है. तथ्य खुलकर लगातार सामने आ रहे हैं कि उससे जुड़े लोगों ने ही जातीय गणना के खिलाफ अपील दायर की थी और फिर उसी आधार पर उच्च न्यायालय ने जातीय गणना पर रोक लगा दी. भाजपा का तर्क है कि जातीय गणना से समाज में वैमनस्य फैलेगा. जबकि महागठबंधन दलित-पिछड़ी जातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की अद्यतन स्थिति का पता लगाकर योजनाओं में तदनुरूप सुधार लाना चाहती है.

बिहार के दलितों-गरीबों ने उच्च जाति समुदाय के बर्बर सामंती व सांप्रदायिक हमलों को लगातार झेला है और आज भी झेल रहे हैं. विडंबना है कि वही लोग ‘जातिवाद’ का नरेटिव खड़ा करते हैं. जाहिर सी बात है कि वे जब जातिवाद कहते हैं तो उसका मतलब दलितों-पिछड़ों का जातिवाद होता है, जबकि हकीकत यह है कि सबसे बड़े जातिवादी और ब्राह्मणवादी वे खुद होते हैं. यह सही है कि तरेत पाली मठ में बाबा के चमत्कारों की अफवाहों ने बेरोजगारी-बीमारी से पीड़ित जनता को भी खींचा, लेकिन उसके मूल में भाजपा का कट्टर सामाजिक आधार ही था. ये ताकतें दलितों-गरीबों को बाबाओं के प्रवचनों के जरिए अपनी ओर खींच लेने की कोशिश कर रही हैं.

पंडित धीरेन्द्र शास्त्री के नाम पर पांच दिन तक बिहार में भारी उठापटक रहा, लेकिन बिहारी समाज जल्द ही तथाकथित चमत्कारी बाबा की असलियत जान गया. पटना के महावीर मंदिर के संस्थापक किशोर कुणाल के साथ उनके अंगरक्षकों ने बदसलूकी की और उस बदसलूकी पर बाबा चुप रहे, जबकि किशोर कुणाल लंबे समय से भाजपा से ही जुड़े रहे हैं. बिहारी समाज ने बाबा के इस व्यवहार को उचित नहीं माना और खुलकर उसकी निंदा भी की.

बाबा के मंच से ‘हिंदू राष्ट्र’ के उद्घोष के कुछ ही घंटों बाद कथास्थल से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर सरासत गांव में संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की मूर्ति को क्षतिग्रस्त कर दिया गया. उसे उखाड़ कर फेंक दिया गया. यह पासवान जाति का टोला है. घटना के बाद वहां के लोग डर-सहम गए हैं. सीधे-सीधे नाम बताने से हिचक रहे हैं. यह गांव भाजपा समर्थक ताकतों के वर्चस्व वाला गांव है. भाकपा-माले के फुलवारी विधायक का. गोपाल रविदास के नेतृत्व में जब एक जांच टीम घटनास्थल पर पहुंची तब मामले की तह तक पहुंचा जा सका. इस मामले की उच्चस्तरीय जांच हो तो और भी पहलू खुलकर सामने आएंगे. हमलावर तरेत पाली से ही उठकर आए थे. मूर्ति तोड़ने की घटना में भाजपा के नौबतपुर प्रखंड अध्यक्ष व सरासत गांव के उनके स्वजातीय के नाम सामने आ रहे हैं.

भाजपा यह बखूबी जानती है कि उसके ‘हिंदू राष्ट्र’ के प्रोजक्ट में अंबेडकर का बनाया संविधान सबसे बड़ी बाधा है. इसलिए अंबेडकर की मूर्ति तोड़ने की घटना को कोई सामान्य घटना के बतौर नहीं देखना चाहिए. दरअसल, यह देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को चुनौती है. उनके समर्थक खुलेआम मीडिया में बोलते रहे – ‘यदि हिंदू राष्ट्र के लिए संविधान बदलने की जरूरत पड़ेगी तो उसे भी बदला जाएगा’.

एक और सच यह भी है कि बिहार की नौकरशाही अभी भी भाजपाई चंगुल में है. इसका एक बड़ा उदाहरण सिवान के दरौली में बीडीओ द्वारा डा. अंबेडकर की मूर्ति स्थापित करने के लिए बने चबूतरे को तोड़ देने की घटना है. इसके खिलाफ सिवान में भाकपा(माले) विधायकों ने दो दिवसीय उपवास भी किया. यह अच्छी बात है कि वहां कि डीएम ने इस मामले में बीडीओ को कारण बताओ नोटिस जारी किया है.

बिहार, भाजपा के संविधान विरोधी ‘हिंदू राष्ट्र’ के उन्माद को निश्चित रूप से धत्ता बताएगा. उसे यहां फिर से मुंह की खानी पड़ेगी. जनता चुनाव में मोदी जी और भाजपा से ही 10 सालों का हिसाब मांगेगी. उसके आक्रोश को बाबाओं के प्रवचनों से न तो शांत किया जा सकता और न ही उसे उन्मादी दिशा में मोड़ा जा सकता है. यह आक्रोेश भाजपा को ही राज व समाज से बेदखल करेगा. समतामूलक समाज के निर्माण की जिस लड़ाई की शुरूआत डाॅ. अंबेडकर ने की थी, बिहार उसे जारी रखेगा.

देश की आम जनता ने नरेन्द्र मोदी से ‘चमत्कार’ की उम्मीदें करना कब का छोड़ दिया. ....उम्मीदों के टूटने के ऐसे दौर में ही ‘चमत्कारी’ बाबा सामने आकर मोर्चा संभालते हैं.