वर्ष - 32
अंक - 2
07-01-2023

नए साल की शुरूआत आम तौर पर नए लक्ष्य निर्धारित करने और नए संकल्प ग्रहण करने का वक्त होता है. मोदी सरकार के लिए यकीनन इसका मतलब है पुराने वादों को रद्दी की टोकरी में डालना और नए लक्ष्यों के साथ नए विमर्श रचना.

2014 में मोदी की विजयी चुनावी मुहिम के वादों को जल्द ही जुमला कहकर छोड़ दिया गया. वे मुख्यतः अर्थतंत्र से जुड़े वादे थे जिन्हें भाजपा के यूपीए-विरोधी अभियान की विषयवस्तु के इर्दगिर्द गढ़ा गया था, जैसे कि काले धन की वापसी, पेट्रोल तथा जन उपभोग की अन्य जरूरी वस्तुओं की कीमतों में कमी लाना तथा अमेरिकी डाॅलर के मुकाबले रुपये को मजबूत बनाना आदि. जब भारतीय जनता माॅब लिंचिंग की घटनाओं तथा संघ-भाजपा प्रतिष्ठान की फासीवादी योजना के अन्य निश्चित लक्षणों के प्रति सजग हो रही थी, तभी इस निजाम ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ‘नए भारत’ के महास्वप्न को उछाला, जिसकी शुरूआत 2022 में भारत की आजादी की 75वीं सालगिरह के मौके पर की जानी थी. इस ‘नए भारत’ में हर भारतीय को सर ढंकने के लिए छत, हर घर में शौचालय और हर दिन चौबीसों घंटे बिजली व पेय जल मुहैया कराने का वादा किया गया था. 5 ट्रिलियन (50 खरब) डाॅलर के अर्थतंत्र में किसानों की आमदनी दुगुनी करने का भी आश्वासन शामिल था.

2022 अब बीत चुका है. हमें बताया जा रहा है कि भारत अब सचमुच बदलकर ‘नया भारत’ बन गया है, और नरेंद्र मोदी इस नए भारत के ‘नए पिता’ हैं. और, सरकार का विमर्श अब नए मानदंडों व नई समय-सीमाओं पर सरक गया है. मसलन, भारत अभी भी 5 ट्रिलियन डाॅलर अर्थतंत्र बनने से कोसों दूर है, लेकिन अडानी और अंबानी हमें लगातार कह रहे हैं कि भारत का अर्थतंत्र 2050 तक 30 या 40 ट्रिलियन डाॅलर तक पहुंच जाएगा! भारत के किसानों की आमदनी तो दुगुनी नहीं हो सकी जो अभी भी अपनी फसलों के लिए उचित कीमत हासिल करने के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं, जबकि सरकार अपने कृषि बजट को कम करती जा रही है और उर्वरकों की कीमतें बढ़ाती जा रही है. बहुप्रचारित आवास योजना को तो वास्तविक जीवन में भुला ही दिया गया, लेकिन उत्पात मचाते बुलडोजर घरों को ध्वस्त कर रहे हैं और लोगों को बेघर बना रहे हैं.

बहुत समय पहले जिसका वादा किया गया था, उस बुलेट ट्रेन का आना तो अभी बाकी है, लेकिन ‘वंदे भारत’ रेलगाड़ियों को काफी धूमधड़ाके और राजनीतिक गोलबंदी के साथ दौड़ा दिया गया है. गति और सेवा के लिहाज से प्रायः ये नई गाड़ियां 1988 में ही शुरू की गई शताब्दी गाड़ियों की भी बराबरी नहीं कर पा रही हैं, उल्टे इन गाड़ियों के बारे में दुर्घटनाग्रस्त हो जाने की ही खबरें ज्यादा मिलती रहती हैं. इसी बीच, आम जनता के लिए सुलभ और सुरक्षित रेल यात्रा की बजाय अब सारा ध्यान समृद्ध जनों के लिए खुशगवार सवारी की ओर खिसक गया है जिसमें पिछड़े और दूरदराज के अंचलों को जोड़ने के बजाय महानगरीय इलाकों और पर्यटन क्षेत्रों को फायदा पहुंचाने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है. शिक्षा व स्वास्थ्य सेवा से लेकर आवास व परिवहन तक, तमाम प्रमुख क्षेत्रों पर सरकारी नीतियां कुलीन वर्ग की प्राथमिकताओं के अनुसार संचालित हो रही हैं, जबकि आम लोगों को तथाकथित मुफ्तखोरी संस्कृति के लाभुकों के बतौर अपमानित किया जा रहा है और उन्हें लाभों से वंचित किया जा रहा है.

इस नए विमर्श में लक्ष्य को प्रणालीगत ढंग से भारत की आजादी के शताब्दी वर्ष 2047 तक आगे खिसका दिया गया है. इस शताब्दी वर्ष से हमें जोड़ने वालेे 25 वर्षों को ‘अमृत काल’ की संज्ञा दी गई है, और नरेंद्र मोदी इस समूची अवधि में कर्तव्य को सबसे ज्यादा अहमियत देना चाहते हैं. 2022 में 15 अगस्त के अपने संबोधन में उन्होंने जिन पांच संकल्पों का जिक्र किया है वे राष्ट्रीय गौरव, एकता, निष्ठा और कर्तव्य से संबंधित हैं. इस विमर्श में जो चीज साफ तौर पर गायब है, वह है जनता के अधिकार और सरकार की जवाबदेही की अवधारणा. संविधान से बंधी और जनता के प्रति जवाबदेह सरकार की अवधारणा की जगह चुनावी निरंकुशता की धारणा को स्थापित किया जा रहा है, जो एक सर्वोच्च नेता द्वारा शासित होगा जिसकी इच्छा ही कानून होगा. नोटबंदी के संत्रासपूर्ण आघात और उसके घोषित उद्देश्यों में से एक को भी हासिल करने में साफ नाकामयाबी के छह वर्ष बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसे दी गई ‘मान्यता’ से आने वाले वर्षों में इस निरंकुशता को संविधान पर तथा नागरिकों के अधिकारों पर और अधिक हमले करने का साहस मिल जाएगा.

वर्ष 2023 मोदी सरकार के लिए 2024 की सर्वप्रमुख लड़ाई शुरू करने का बड़ा मंच साबित होने जा रहा है. इस वर्ष नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे – पूर्वोत्तर में चार (त्रिपुरा, मेघालय, नगाालैंड और मिजोरम), दक्षिण में दो (कर्नाटक और तेलंगाना) और शेष तीन मध्य व पश्चिमोत्तर भारत (छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान) में. मोदी शासन के लिए हर मौका चुनावी प्रचार का इवेंट बन जाता है, और हम शोरगुल भरे प्रचार तथा तीखी नफरती मुहिम के वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं. जी-20 की अध्यक्षता इंडोनेशिया से भारत के हाथों में आने के साथ ही, मोदी के तहत भारत की अंतरराष्ट्रीय हैसियत में तथाकथित वृद्धि के बारे में हमें पीठ थपथपाने वाला हंगामेदार प्रचार भी सुनने को मिलेगा. दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन (9-10 सितंबर, 2023) आयोजित होने के पहले देश भर के 56 स्थानों पर उसकी तैयारी के लिए पूरक बैठकें की जाएंगी, और इसका मतलब है कि इस वर्ष देश में वैश्विक जमावड़े होते रहेंगे.

जी-20 शिखर सम्मेलनों में हमेशा ही वैश्वीकरण-विरोधी प्रतिवाद होते रहे हैं. भारत में जी-20 की जो बैठकें होने जा रही हैं वे राष्ट्रीय गौरव प्रदर्शित करने अथवा शासक पार्टी के लिए आंशिक लाभ का दावा करने का मंच नहीं हो सकती हैं. भारत के जागरूक जन-मत के लिए ये बैठकें काॅरपोरेटों के लोभ और मुनाफे की लूट के खिलाफ जनता के अधिकारों की दावेदारी जताने और सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरणीय सुरक्षा तथा जलवायु न्याय के लिए वैश्विक एकजुटता बढ़ाने का मौका होंगी. हम भारत के लोगों को लोकतंत्र के लिए लड़ाई को आगे बढ़ाने तथा हर मोर्चे पर फासीवादी योजना को नेस्तनाबूद करने की खातिर वर्ष 2023 का भरपूर इस्तेमाल करने के लिए तैयार हो जाना पड़ेगा.