शराबबंदी के नाम पर पुलिस द्वारा दलितों-महादलितों व गरीबों को तंग-तबाह करने तथा गिरफ्तार करने के खिलाफ भाकपा(माले) ने विगत 18 फरवरी को मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष जोरदार पर प्रदर्शन आयोजित किया. प्रदर्शन के पूर्व हरिसभा स्थित भाकपा(माले) कार्यालय से झंडा-बैनर और जोरदार नारों के साथ शहर में प्रतिवाद मार्च भी निकाला गया. इस प्रतिवाद मार्च में बड़ी संख्या में पुलिस प्रताड़ना से तबाह महादलित मांझी व अन्य समुदाय की महिलाएं भी शामिल थीं.
प्रदर्शन के बाद जिलाधिकारी को मांग-पत्र देकर कुढ़नी सहित जिले के अन्य क्षेत्रों में शराबबंदी के नाम पर पुलिस द्वारा दलितों-महादलितों व गरीबों के गांव-टोलों व घरों में घुसकर उनको तंग-तबाह करने, महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार और गाली-गलौज करने, उनके घरेलू सामानों को तोड़-फोड़ देने पर रोक लगाने और बेवजह गिरफ्तार कर जेल में डाले गए दलितों-महादलितों व गरीबों को रिहा करने तथा ज्यादती कर रही पुलिस पर सख्त कारवाई करने की मांग की गई.
जिलाधिकारी को सौंपे गये ज्ञापन में यह बताया गया कि पिछले 13 फरवरी की शाम व 14 फरवरी की दोपहर कुढ़नी प्रखंड अंतर्गत चढ़ुआ पंचायत के धरमुंहा मुसहर टोले में तुर्की ओपी के दर्जनों पुलिसकर्मियों ने पहुंच कर महिलाओं के साथ ज्यादती की, उनके गाली-गलौज किया तथा उनको जेल में डाल देने की धमकी दी. एक सप्ताह पूर्व भी पुलिस ने उसी टोले के 65 वर्षीय गुलाबचंद मांझी को रात्रि के 9 बजे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. गायघाट प्रखंड के बेनीबाद में सप्ताह भर के भीतर ही पासी समुदाय के तीन गरीबों को बेनीबाद थाना पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. बोचहां, मुशहरी, बंदरा सहित अन्य सभी प्रखंडों में भी शराबबंदी के नाम पर पुलिसिया उत्पात जारी है. जिला प्रशासन को अविलंब इस पर रोक लगाना चाहिए.
प्रदर्शन का नेतृत्व भाकपा(माले) कार्यकर्ता गुड्डू मांझी, महिला कार्यकर्ता सुमित्रा मांझी, कुसुमी देवी, भाकपा(माले) नेता परशुराम पाठक, इंसाफ मंच के राज्य अध्यक्ष सूरज कुमार सिंह, खेग्रामस के राज्य कार्यकारी सचिव शत्रुघ्न सहनी, भाकपा(माले) जिला कमिटी सदस्य प्रो. अरविंद कुमार डे, बिन्देश्वर साह, ऐक्टू नेता मनोज यादव, मुन्ना कुरैशी, उर्मिला देवी व किरण देवी ने किया.
प्रदर्शन को संबोधित करते हुए नेताओं ने कहा कि नीतीश राज में शराबबंदी के नाम पर शराब माफियाओं और धंधेबाजों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है. पुलिस-प्रशासन का उनके साथ तो सांठगांठ है, लेकिन दलितों-महादलितों और गरीबों को खासकर मांझी (मुसहर), पासी, पासवान व सहनी समुदाय के लोगों को दिन-रात तंग-तबाह करने का अभियान जारी है. पुलिसिया आतंक की वजह से वे घर से भागे रहते हैं और उनका जीना दूभर हो गया है.
नेताओं ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नीरा बनाने की बात करते हैं लेकिन परंपरागत रूप से ताड़ी व्यवसाय से जुड़े लोगों को संसाधन उपलब्ध कराने की कोई योजना जमीन पर नहीं दिख रही है. वे रोजी-रोटी की समस्या और भुखमरी से जूझ रहे हैं. नीतीश सरकार को पुलिस के जोर-जुल्म पर रोक लगानी चाहिए और गरीबों को रोजगार देने की गारंटी करनी चाहिए.