16 फरवरी 2024 को एसकेएम और सीटीयू/फेडरेशनों द्वारा आहूत और देश की अन्य ट्रेड यूनियनों, खेत मजदूर, छात्र, युवा, महिला, व्यापारी, ट्रांसपोर्ट से जुड़े संगठनों का देश में औद्योगिक/सेक्टोरियल हड़ताल और ग्रामीण भारत बंद का आह्वान ऐतिहासिक रहा। इस अभियान को सफल बनाने के लिए देश के किसानों, मजदूरों, छात्रों, युवा, महिला संगठनों, व्यापार व ट्रांसपोर्ट से जुड़े संगठनों की अहम भूमिका रही है। संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने इसे ऐतिहासिक करार देते हुए आगे और भी बड़े आंदोलनात्मक अभियान चलाने का ऐलान किया है। इस हड़ताल और बंद का असर सुबह से ही दिखने लगा था, जब कई उद्योगों, संस्थानों और मंडियों से हड़ताल की खबरें आने लगीं। पंजाब में पूरी तरह बंद रहा जहां सरकारी और प्राइवेट वाहन भी नहीं चले। मंडियां, बाजार और सड़कों पर सिर्फ आंदोलनकारियों का ही कब्जा था।

अखिल भारतीय किसान महासभा ने कहा कि उसके संगठन ने देश के 18 राज्यों में इस ग्रामीण भारत बंद को सफल बनाने के लिए अन्य संगठनों के साथ अथक मेहनत की। किसान महासभा के अनुसार पहली बार बिहार के पूरे 38 जिलों को आज के ग्रामीण भारत बंद ने अपने आगोश में ले लिया। परीक्षाओं के कारण जाम नहीं किया गया पर ग्रामीण क्षेत्रों में चट्टी-बाजार बंद रहे और शहरों व संस्थानों में बड़े पैमाने पर जुलूस-प्रदर्शन हुए। किसान संगठनों, खेत मजदूर संगठनों और स्कीम वर्कर्स की व्यापक भागीदारी ने इसे व्यापक बनाया। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा सहित उत्तर पूर्व के राज्यों, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, झारखंड सहित सभी राज्यों से भी बड़े पैमाने पर जुलूस, प्रदर्शन, बाजार, उद्योग बंद और कुछ स्थानों में चक्का जाम की खबरें सुबह से ही मिलने लगी। दिल्ली एनसीआर में भी सुबह से ही उद्योगों में हड़ताल और औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों के जुलूस निकालने की खबरें आने लगी थी। कई जूट मिलों में हड़ताल की खबरें मिली। सरकारी और सार्वजनिक संस्थानों में कर्मचारियों ने गेट मीटिंग, प्रदर्शन आदि कर इस आंदोलन को समर्थन दिया।

जहां पंजाब में विरोध प्रदर्शन लगभग बंद का रूप ले चुका था, अन्य सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गांवों में दुकानें, उद्योग, बाजार और शैक्षणिक संस्थान और सरकारी कार्यालय बंद रहे। बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और विरोध रैलियां आयोजित की गई हैं, जिनमें लाखों लोगों ने उत्साह के साथ भाग लिया है। श्रमिकों ने काम बंद कर दिया है और उन्होंने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन आयोजित किया, जिसमें युवाओं और महिलाओं ने भी व्यापक रूप से भाग लिया और छात्र कक्षाओं का बहिष्कार कर उनके साथ शामिल हुए। जम्मू-कश्मीर में प्रेस कॉलोनी, श्रीनगर में बिना किसी उकसावे के प्रदर्शन कर रहे सैकड़ों सेब किसानों को पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने बलपूर्वक तितर-बितर कर दिया और नेताओं को पुलिस वाहनों में खींचकर हिरासत में ले लिया। इस व्यापक कार्रवाई ने पूरे भारत में किसान-मजदूर एकता को मजबूत करने और गांव-कस्बे स्तर तक लोगों की एकता की दिशा में आगे बढ़ाने में मदद की है, जो मोदी सरकार के संरक्षण में कारपोरेट-सांप्रदायिक गठजोड़ के खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़ी उपलब्धि है।

आंदोलन तेज करेगा एसकेएम

एसकेएम एमएसपी, ऋण माफी, किसानों की आत्महत्या समाप्त करने के लिए नीतियों में बदलाव और मजदूरों के अधिकारों के खात्मे तक आंदोलन तेज करेगा।

ग्रामीण बंद का आह्वान एमएसपी / सी2+50% पर गारंटीशुदा खरीद करने, इनपुट लागत में कमी, कर्ज माफी, बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 को रद्द करने और प्रीपेड मीटर को बंद करने, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी, जो अन्य लोगों के अलावा, लखीमपुर खीरी में किसानों के नरसंहार का मुख्य साजिशकर्ता है, को बर्खास्त करने और उस पर मुकदमा चलाने आदि मांगों को पूरा करने के लिए किया गया। इसके साथ ही मजदूर विरोधी चार श्रमकोड वापस लेने, निजीकरण, ठेकाकरण और कारपोरेटीकरण पर रोक लगाने, न्यूनतम वेतन 26 हजार और मनरेगा में 200 दिन काम व 600 रुपये मजदूरी, नया हिट एंड रन कानून वापस लेने जैसी अन्य मांगों पर मजदूरों-कर्मचारियों ने इसमें भाग लिया। इससे पहले 3 अक्टूबर 2023 को काला दिवस मनाने, 26-28 नवंबर 2023 को राज्यों की राजधानियों में तीन दिवसीय महापड़ाव विरोध प्रदर्शन और 26 जनवरी, 2024 को जिलों में एक विशाल ट्रैक्टर-वाहन रैली का संयुक्त आह्वान किया गया था, जिसे किसान और ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं ने समन्वित ढंग से पूरा किया था। इसके बाद घटना विकास का जायजा लेने और भविष्य की कार्रवाई का सुझाव देने के लिए नई दिल्ली में एनसीसी और जनरल बॉडी की बैठकें होंगी। उन्हें एसकेएम की केंद्रीय समिति के साथ मिलकर अंतिम रूप दिया जाएगा और इस आंदोलन की तीव्रता भारत सरकार की प्रतिक्रिया से निर्धारित होगी। एसकेएम ने घोषणा की है कि लखीमपुर खीरी नरसंहार के दोषियों को कतई बख्शा नहीं जाएगा और पूरे भारत में किसान उन्हें जेल भेजने और एमएसपी, ऋण माफी और किसानों की आत्महत्या को समाप्त करने के लिए संकल्पबद्ध होकर जी-जान से लड़ेंगे।

एसकेएम ने 13 फरवरी को भारत के प्रधान मंत्री को एक विनम्र और लिखित अपील भेजी थी, जिसमें उनसे उन किसानों और खेत मजदूरों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रुख अपनाने और विचार करने के लिए कहा गया था, जो कृषि घाटे, संकट, ट्टण, बेरोजगारी, गंभीर कुपोषण और भूख, बीमारी आदि से पीड़ित हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रधानमंत्री ने कारपोरेट कंपनियों के प्रति तो पूरी सहानुभूति दिखाई है, लेकिन किसानों पर लाठीचार्ज, पैलेट फायरिंग, आंसू गैस स्प्रे, ड्रोन का उपयोग, सड़क नाकाबंदी करके, घर-घर धमकियां देकर और अन्य दमनात्मक कदमों के जरिए ‘युद्ध’ जारी रख कर अपने किसान विरोधी दृष्टिकोण का परिचय दिया है। एसकेएम ने शंभू बॉर्डर में 3 किसानों को लगी चोट जिसमें उन्होंने अपनी दृष्टि खो दी है, की भी कड़ी निंदा करते हुए कहा कि मोदी सरकार शोषक बड़े व्यापारियों की सेवा के लिए किसानों को अंधा कर रही है।

वर्ष 2020-21 में दिल्ली के बार्डरों पर 13 माह तक चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बाद आज की हड़ताल व ग्रामीण बंद इस मायने में ऐतिहासिक है कि आजादी की लड़ाई के दौर के बाद पहली बार आंदोलन का कोई आह्वान देश के हर कोने में लागू हुआ है। इस आंदोलन में जनता के हर हिस्से ने सक्रिय भागीदारी निभाई और आंदोलन को नैतिक समर्थन दिया। 16 फरवरी के व्यापक और सफल ग्रामीण भारत बंद व औद्योगिक/क्षेत्रीय हड़ताल के संघर्ष ने मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ पूरे भारत में किसानों, श्रमिकों और ग्रामीणों के गुस्से को दर्शाया है। इस आंदोलन से मजदूर-किसान एकता और मजबूत हुई है और आम जनता की देशव्यापी एकता की विकसित हुई है। आजाद भारत में यह भी पहली बार हुआ कि एसकेएम-सीटीयू, फेडरेशनों के संयुक्त आह्वान पर छात्र, युवा, महिला, व्यापारी, परिवहन से जुड़े लोगों, मंडी समितियों ने आंदोलन को खुल कर समर्थन दिया। 16 फरवरी की हड़ताल व ग्रामीण भारत बंद की मांगें देश में जनता के हर तबके से सम्बंधित थी। इस दौर में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा-आरएसएस सांप्रदायिक, धार्मिक मुद्दों पर देश के लोगों का ध्यान भटकाने और राम मंदिर को 2024 के लोकसभा का चुनावी एजेंडा बनाने में लगे थे। इस सफल आंदोलन ने किसानों, मजदूरों व आम जनता के मुद्दों को देश की राजनीति के एजेंडे में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 22 जनवरी के राम मन्दिर उद्घाटन आयोजन के जरिये देश में धार्मिक/साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति को बढ़ाने की भाजपा-आरएसएस की फासीवादी साजिश को इससे धक्का लगा है। किसानों की 26 जनवरी को देश के 484 जिलों में आयोजित ट्रैक्टर/वाहन परेड और ऐतिहासिक हड़ताल तथा ग्रामीण भारत बंद ने 2024 के चुनाव के एजेंडे की दिशा तय कर दी है। इधर केंद्र की मोदी सरकार आम लोगों को मूर्ख बनाने के लिए शंभू सीमा पर पहुंचे एसकेएम से बाहर के आंदोलनकारियों के पास मंत्रियों को ‘गुप्त वार्ता’ के लिए भेज रही है। जिस एमएसपी समिति का गठन मोदी सरकार द्वारा किया गया था, उसके सदस्यों ने खुले तौर पर एमएसपी देने का विरोध किया था.

एसकेएम ने आंदोलन और तेज करने का फैसला किया है और यह कार्यकर्ताओं और लोगों के अन्य सभी वर्गों के समन्वय से और बड़े पैमाने पर कार्रवाई के लिए आह्वान के साथ किया जाएगा। एसकेएम की पंजाब इकाई 18 फरवरी को जालंधर में बैठक कर रही है। इसके बाद घटना विकास का जायजा लेने और भविष्य की कार्रवाई का सुझाव देने के लिए नई दिल्ली में एनसीसी और जनरल बॉडी की बैठकें होंगी। उन्हें एसकेएम की केंद्रीय समिति के साथ मिलकर अंतिम रूप दिया जाएगा और इस आंदोलन की तीव्रता भारत सरकार की प्रतिक्रिया से निर्धारित होगी।

एसकेएम ने कहा है कि मोदी सरकार ने जानबूझ कर माहौल खराब किया है। उन्होंने दिसंबर 2021 में एमएसपी और अन्य मांगों पर विचार करने के लिए एक समिति बनाने का वादा किया था। सात महीने बाद उन्होंने उन लोगों को लेकर एक समिति बनाई जो खुले तौर पर एमएसपी देने का विरोध कर रहे थे और उन्होंने अपने एजेंडे में फसल विविधीकरण और शून्य बजट प्राकृतिक खेती को जोड़ा हुआ है। अब, बातचीत के नाम पर, वह लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए देश के किसानों के मुख्य प्रतिनिधि एसकेएम को छोड़कर शंभू बॉर्डर में आंदोलनकारियों के पास मंत्रियों को भेजकर बातचीत का नाटक कर रही है। साथ ही चर्चा के बिंदुओं और प्रगति को ‘गुप्त’ रखकर पूरे देश के किसानों को अंधेरे में रख रही है। एसकेएम ने लोगों की बुनियादी समस्याओं को हल करने के प्रति भाजपा की हठधर्मिता, सांप्रदायिक और धार्मिक विवादों की ओर ध्यान भटकाने की नीति पर सवाल उठाए हैं। एसकेएम इस संघर्ष में जीत हासिल करने के लिए पूरे भारत में लोगों को एकजुट करने के लिए प्रतिबद्ध है। एसकेएम ने सभी सीटीयू, श्रमिक, छात्र, युवा, महिला और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के अन्य संगठनों को मजबूत समर्थन देने के लिए अपना आभार व्यक्त करते हुए उम्मीद जताई है कि सभी संगठन भविष्य में भी मिलकर किसान-समर्थक, श्रमिक-समर्थक, जन-समर्थक नीतियों पर एक मजबूत आंदोलन बनाएंगे और कारपोरेट समर्थक नीतियों को बदलने की दिशा में आगे बढ़ेंगे।