दोस्तो,
हम अपने गणतंत्र के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं. नया साल शुरू हो गया है और 2024 के निर्णायक चुनावों से हम बस कुछ ही हफ्ते दूर हैं. दस साल पहले नरेन्द्र मोदी अच्छे दिनों के वायदे के साथ सत्ता में आये थे. तब वायदा था कि काला धन वापस आयेगा और हर साल 2 करोड़ नये रोजगार सृजित होंगे. 2022 तक किसानों की आय दुगनी और प्रत्येक परिवार को पक्का घर देने की गारंटी करने के वायदे पर उन्हें जनता ने 2019 में फिर से एक मौका और दिया था. आज जनता से किया गया हर वायदा एक भद्दा मजाक साबित हो चुका है। ऐसे में 2024 के चुनावों से पहले भाजपा और आरएसएस अयोध्या में राम मन्दिर को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बता कर एक बार फिर राम के नाम पर वोट मांगने आ रहे हैं.
रामायण तो सदा से ही पीढ़ी दर पीढ़ी भारतीयों के दिल में बसी हुई है. भारत के व्यापक जनमानस में सत्य, न्याय और सबकी भलाई वाले राज के उदाहरण के बतौर रामराज्य की कल्पना स्थापित है. क्या अयोध्या में राम मन्दिर, जिसकी नींव साम्प्रदायिक विभाजन, नफरत और हिंसा पर रखी जा रही है, आधुनिक 21वीं सदी के उसी रामराज्य का दरवाजा खोल रहा है? मोदी सरकार के दस सालों में देश जिस चौतरफा संकट में जा चुका है उसकी सच्चाई राम मन्दिर उद्घाटन की तड़क-भड़क और शोर के नीचे दब नहीं पायेगी. दुनियां के सर्वाधिक आबादी वाले हमारे देश के संविधान में देश के लिए एक आधुनिक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र का वायदा है. आज इस वायदे का रोज मखौल बन रहा है.
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 2019 के फैसले में 6 दिसम्बर 1992 को हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस को संविधान का घोर उल्लंघन बताया था. फिर भी सर्वोच्च अदालत ने उस भूमि का मालिकाना अधिकार राम मन्दिर ट्रस्ट को इस उम्मीद के साथ अवार्ड किया था ताकि धार्मिक स्थलों के सभी विवादों पर सदा के लिए विराम लगे और शांति व सौहार्द के दौर की एक नई शुरूआत हो. लेकिन संघ ब्रिगेड अब चाहता है कि ऐसे विवादों को पूरे देश में फैलाया जाये और 1991 में बने धार्मिक स्थलों से सम्बंधित उस कानून को रद्द कराया जाय जिसमें सभी धार्मिक स्थलों की 15 अगस्त 1947 की यथास्थिति बहाल करने की गारंटी की गई है. फिर सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा तो बिल्कुल नहीं कहा था कि अयोध्या मन्दिर निर्माण के काम को मोदी सरकार अपना प्रमुख एजेंडा बना ले!
जनता के लिए जो सबसे जरूरी हैं – जन परिवहन, सार्वजनिक उद्योग, या शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी अत्यावश्यक जनसेवाएं - उनका मोदी सरकार थोक में अथवा टुकड़ों में निजीकरण करती जा रही है और धर्म, धार्मिक आस्था व भावनाओं जैसी नागरिक की नितांत निजी बातों को सरकार अपने हिसाब से चलाना चाहती है. एक चुनी हुई सरकार के प्रधानमंत्री एक धर्मगुरू की तरह व्यवहार करते हुए खुद को ऐसे पेश कर रहे हैं मानो उन्हें दैवीय शक्तियों ने चुना है और वे जनता व जनता की संसद के प्रति बिल्कुल भी जवाबदेह नहीं हैं. यह उस आधुनिक गणतंत्र के विचार का सम्पूर्ण निषेध है जिसे आजाद भारत ने 26 जनवरी 1950 को अपने लिए चुना था.
विश्वविद्यालयों से लेकर रेलवे स्टेशनों तक सभी जगह सरकारी खर्चे पर मोदी सेल्फी प्वाइण्ट बनाये गये हैं. सब कुछ तो ठेके पर करवाया जा रहा है बस सरकारी प्रचार स्थायी तौर पर हो रहा है. भारत के युवाओं से पक्की नौकरी का सपना स्थायी तौर पर छीन लिया गया है. अग्निवीर योजना को बगैर सेना के संज्ञान में लाये कैसे जबरन थोप दिया गया, यह सेना के पूर्व सेनाध्यक्ष ने हमें बताया है. ठीक उसी तरह जैसे भारतीय बैंकों और अर्थशास्त्रियों से सलाह लिये बिना पहले 500 और 1000 के नोट बंद किये गये और फिर नोटबंदी के बाद लाये गये 2000 के नोटों को भी बंद कर दिया गया.
इन सालों में सरकार लगातार हमें बताती रही कि भारत में गैरकानूनी रूप से विदेशी घुस रहे हैं. अब सुनने में आ रहा है कि गैरकानूनी रूप से विदेश जाने वाले भारतीय आप्रवासियों को वापस देश भेजा जा रहा है. ऐसे ही भारतीय नागरिकों से भरे एक विमान को हाल ही में फ्रांस में रोक कर वापस भारत भेज दिया गया, इसमें ज्यादा लोग गुजरात से थे. अमीर भारतीय भारत की नागरिकता छोड़ कर अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया व कई अन्य पश्चिमी देशों की नागरिकता ग्रहण कर रहे हैं. भारत के कई पूंजीपति देश के बैंकों से बड़ी बड़ी रकम उधार लेकर देश छोड़ कर भाग गये हैं. वहीं सरकार लगातार अमीरों के कर्जे माफ करती जा रही है और भारतीय मजदूरों का विदेशों में निर्यात कर रही है. भाजपा सरकारें भारतीय मजदूरों को उनकी जान को खतरे में डाल कर इजरायल जैसे देशों में काम करने के लिए भेजने को उतावली हैं.
भारत के नागरिकों का जीवन दिनोंदिन ज्यादा असुरक्षित होता जा रहा है. मुसलमानों पर उन्मादी भीड़ और बुलडोजर के हमले अब सामान्य घटनाएं बन गई हैं. शहरों में गरीबों को भारी पैमाने पर उजाड़ा जा रहा है. दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार की घटनाएं अभूतपूर्व रूप से बढ़ गई हैं लेकिन अपराधियों को सजा शायद ही कभी मिल पाती है. महिला विरोधी हिंसा के अपराधियों को तो बाकायदा भाजपा में संरक्षण मिलता है और उन्हें आईटी सेल से लेकर विधानसभाओं और संसद में पदोन्नत कर दिया जाता है.
हमारे संविधान में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की गारंटी दी गई है. लेकिन न्याय मांग रहे लोगों को झूठे मुक़दमों में फंसा कर जेलों में बंद किया जा रहा है. किसानों और मजदूरों के अधिकार छीनने के लिए तीन कृषि कानून और चार श्रम कोड लाने वाली मोदी सरकार ने अब पूरे देश को तानाशाही राज्य में तब्दील करने के लिए दण्ड संहिता में समग्र बदलाव के कानून पास कर दिये हैं. जिनमें सरकार का विरोध या आन्दोलन करने को आतंकवादी कार्यवाही बताने और आतंकवाद विरोधी कानून के तहत उसका बर्बर दमन करने का प्रावधान बनाया गया है.
इन संकेतों से स्पष्ट है कि भारत को एक विकसित देश या सशक्त लोकतंत्र की दिशा में नहीं ले जाया जा रहा है. ये तो एक स्थायी और संस्थाबद्ध आतंक व दमन के राज वाले फासीवाद के संकेत हैं. जब हम अपने संविधान की प्रस्तावना को पढ़ कर उसमें लिखे शब्दों से एक नागरिक के रूप में अपने व्यक्तिगत जीवन और एक गणतंत्र के रूप में अपने सामूहिक जीवन के वास्तविक हालात की तुलना करते हैं तो पाते हैं कि हमारे देश को संविधान के लक्ष्यों और प्रतिबद्धताओं से दिनोंदिन दूर ले जाया जा रहा है.
दस साल में मोदी सरकार हमें एक ऐसे विपक्ष मुक्त संसद की ओर ले जा चुकी है जिसमें सरकार द्वारा सांसदों का मनमाने तरीके से निष्कासन व निलंबन किया जा रहा है. भारत अब संविधान में उल्लिखित राज्यों का संघ नहीं रह गया है, इसकी जगह दिल्ली दरबार का राज्यों तक विस्तार कर दिया गया है जहां चुनी हुई राज्य सरकारों के ऊपर राज्यपालों की चलती है, जहां जम्मू और कश्मीर के संवैधानिक अधिकार छीन कर उसे दो संघ शासित क्षेत्रों में बदल दिया जाता है, जहां मणिपुर महीनों तक जलता रहता है और प्रधानमंत्री उसके बारे में न तो संसद में एक शब्द बोलते हैं और न ही हालात का जायजा लेने के लिए उस राज्य में जाने की जहमत उठाते हैं.
आज पूरी दुनियां इजरायल द्वारा गाजा में फिलिस्तीन के बच्चों के रोजाना किये जा रहे नरसंहार से विचलित है. मानवता के विरुद्ध इस युद्ध में दुनियां की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी ताकत अमेरिका और भारत को उपनिवेश बनाने वाला देश ब्रिटेन इजरायल का साथ दे रहे हैं. हमने भी गुलामी के दौर में जलियांवाला बाग जैसे जनसंहारों को झेला था, आज हमें चाहिए कि भारत न केवल संकटग्रस्त फिलिस्तीनियों के साथ खड़ा हो कर गाजा में तत्काल युद्ध बंद करने की मांग करे बल्कि युद्ध अपराधों के लिए इजरायल के विरुद्ध कार्यवाही की मांग भी करे. दक्षिण अफ्रीका, जहां से गांधी ने नस्लवाद और उपनिवेशवाद के खिलाफ ऐतिहासिक लड़ाई की शुरूआत की थी और जिस देश ने 20वीं सदी के अंत में क्रूर नस्लवादी शासन को पराजित किया था, आज इण्टरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में इजरायल के विरुद्ध कार्यवाही करने की मांग कर रहा है. लेकिन भारत में मोदी सरकार अमेरिका-इजरायल के युद्धतंत्र के साथ गठबंधन बना कर न्याय, स्वतंत्रता और शांति की वैश्विक आवाजों से पूरी तरह अलगाव में पड़ गई है.
अब भारत मोदी राज की पांच और सालों की तबाही झेल सकने की स्थिति में नहीं है. भगत सिंह ने हमें आजाद भारत में भूरे अंग्रेजों के राज के खिलाफ स्पष्ट चेतावनी दे दी थी. अम्बेडकर ने भी कहा था कि राजनीति में भक्ति – जब धर्म और शासन का सम्मिश्रण कर दिया जाता है – निश्चय ही तानाशाही की ओर लेकर जायेगी. आज जब हम अपने गणतंत्र की 74वीं वर्षगांठ मना रहे हैं तब ये चेतावनियां कड़वा सच बन चुकी हैं.
वक्त आ गया है कि अपने गणतंत्र को बचाने के लिए हम मजबूती से खड़े हों. भारत को बनाने वाले उसके असली मालिक, मजदूरों और किसानों, को उनका हक मिले. यंग इण्डिया का भविष्य सुरक्षित बने. भारत की महिलाओं, दमित लोगों और वंचित बहुजनों को पूरी आजादी मिले. सभी धार्मिक व भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए बराबरी के अधिकार व अवसर हों. और एकरूपता के नाम पर भारत की समृद्ध विविधता को किसी बुलडोजर के नीचे न कुचला जा सके.
हमारा संविधान हमारे स्वतंत्रता संग्राम के गर्भ से निकला है, जिसमें सार्विक वयस्क मताधिकार वाले एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणतंत्र की घोषणा है. आज मोदी राज के कई लोग अम्बेडकर के नेतृत्व में बनाये गये संविधान को उपनिवेशवादी संविधान बता रहे हैं. संघ ब्रिगेड और मोदी समर्थक हल्ला मचा रहे हैं कि जिस प्रकार कानूनों को दुबारा बनाया गया है उसी प्रकार भारत के संसदीय लोकतंत्र को प्रेसिडेन्शियल तानाशाही की व्यवस्था में बदलने के लिए एक नया संविधान बनाया जाये. हम जानते हैं कि आरएसएस हमेशा भारत के दमित जनों और महिलाओं की गुलामी के दस्तावेज मनुस्मृति को आधुनिक भारत के असली संविधान के रूप में मानता रहा है.
इसीलिए जरूरी है कि आने वाले 2024 के लोकसभा चुनावों में हमारा प्रत्येक वोट तबाही ढाने वाले मोदी राज की पराजय की गारंटी करे. फासीवादी मोदी सरकार के खिलाफ व्यापकतम विपक्षी एकता के लक्ष्य को हासिल करने के कार्यभार में भाकपा(माले) सबसे आगे रही है. इण्डिया (आई.एन.डी.आई.ए.) गठबन्धन के घटक के रूप में हम बहुत ही कम सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में इण्डिया गठबन्धन के सहयोगियों की जीत सुनिश्चित कराने के लिए पूरा काम करेंगे. ताकि कॉरपोरेट लूट, साम्प्रदायिक नफरत और सामाजिक गुलामी की ताकतों की पराजय हो और आजादी व न्याय की जीत हो.
भारत की जनता ने ब्रिटिश औपनिवेशिक राज से लेकर जमीन्दारी व्यवस्था और ब्राह्मणवादी-सामंती वर्चस्व तक अन्याय और दमन की सभी ताकतों को ऐतिहासिक रूप से पराजित किया है. आज फासीवाद के खिलाफ लोकतंत्र की जंग में भी भारत की जनता की जीत होगी. हाल ही में सफल किसान आन्दोलन में हमने जनता की संगठित दृढ़संकल्पी ताकत देखी है. अपनी संगठित एकता के बल पर हम निश्चय ही संघी फासिस्टों को शिकस्त देंगे.
लड़ेंगे ! जीतेंगे !!
- केन्द्रीय कमेटी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन