वर्ष - 29
अंक - 42
10-10-2020


डूंगरपुर जिले के कांकरी डूंगरी पर जनजाति अभ्यर्थियों के शिक्षक भर्ती आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा और उसके बहाने पुलिस प्रशासन द्वारा निर्दाेष लोगों पर की जा रही एकतरफा कार्यवाही के विरोध में तथा इलाके में शांति कायम रखने की मांग को लेकर विगत 5 अक्टूबर 2020 को उदयपुर में संभागीय आयुक्त से भाकपा(माले) व अन्य संगठनों का एक प्रतिनिधिमंडल मिला. प्रतिनिधि मंडल ने उनके माध्यम से राजस्थान के मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन दिया.

संभागीय आयुक्त के माध्यम से ज्ञापन सौंपने के इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता और डाॅक्टर अंबेडकर वेलफेयर सोसायटी के महासचिव अधिवक्ता पीआर साल्वी ने कहा कि डूंगरपुर जिले के जनजाति अभ्यर्थी पिछले एक साल से सामान्य श्रेणी के  रिक्त 1167 शिक्षक पदों पर अपनी भर्ती की मांग कर रहे थे और पिछले 6 सितम्बर 2020 से कांकरी डूंगरी पर एकत्र होकर शांतिपूर्ण  आंदोलन कर रहे थे. सरकार की असंवेदनशील रवैये और लोकतांत्रिक तरीकों से सुनवाई नहीं होने के चलते अंत में 18 वें दिन आन्दोलनकारी हाईवे पर आ गये. इसके बाद जो हिंसा भड़की वह दुर्भाग्यपूर्ण है और इस हिंसा में जिनके जानमाल की हानि हुई है, सरकार को उन्हें उचित मुआवजा देना चाहिए.

भाकपा(माले) के वरिष्ठ नेता शंकरलाल चौधरी ने कहा कि जांच में यह बात भी सामने आ रही है कि हिंसा से पूर्णतया असंबद्ध व निर्दाेष लोगों को एफआईआर में नामजद किया जा रहा है और उन्हें घरों से या राह चलते गिरफ्तार किया जा रहा है. यह कार्रवाई बिल्कुल अविवेकपूर्ण, गैर कानूनी और मानवाधिकारों के खिलाफ है. हम इस तरह की कार्रवाई की निंदा करते हुए इसे तुरंत रोकने की मांग करते हैं.

मानवाधिकार कार्यकर्ता रिंकू परिहार ने बताया कि दो दर्जन से अधिक एफआईआर दर्ज होने की बात सामने आ रही है और ऐसा बताया जा रहा है कि इनमें सात हजार लोगों को नामजद किया गया है. इनमें से बहुत से लोग हिंसा में किसी तरह से शामिल नहीं रहे और यहां तक कि घटना स्थल पर भी मौजूद नहीं थे.

भीम सेना के दिनेश रायाकवाल ने कहा कि बहुत से बेकसूर लोग स्थानीय राजनीति के चलते फंसा दिये गये हैं. इसके अलावा बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे भी भावनात्मक आवेग के चलते आंदोलन में शामिल हो गये जिनका हिंसा से लेना-देना नहीं है. उन पर कार्रवाई उनके भविष्य को बिगाड़ सकती है जिससे आने वाले समय में और कठिनाई खड़ी हो सकती है.

केन्द्रीय श्रमिक संगठन ऐक्टू के सौरभ नरुका ने कहा जिस भारी संख्या मे लोगो को एफआईआर में नामजद किया गया है वह पहली नजर में ही संदेह पैदा करता है. एफआईआर संख्या – 278 (थाना बिच्छीवाड़ा) में 700 से ज्यादा और एफआईआर संख्या – 197 (थाना डूंगरपुर सदर में) 450 से ज्यादा लोगों को नामजद किया गया है. कई एफआईआर में 100 से ज्यादा लोगों को नामजद किया गया है.

आदिवासी क्रांति मोर्चा के अधिवक्ता बाबूलाल कलासुआ और छात्र कैलाश मीणा ने बताया कि ऐसे भी व्यक्तिगत मामले सामने आ रहे हैं जहां व्यक्ति के घटनास्थल पर मौजूद नहीं होने के बाद भी नामजद कर दिए गए और उनकी गिरफ्तारियां हो रही हैं. आदिवासी समाज के छात्रों, अध्यापकों और यहां तक कि डाॅक्टरों को भी निशाना बनाया जा रहा है. एक ऐसे छात्र को भी जो बीएड की परीक्षा देने के लिए उदयपुर में था, एफआईआर में नामजद कर दिया गया है.

भाकपा के हिम्मत छांगवाल ने कहा कि यह साफ तौर पर दहशत का माहौल बनाने का प्रयास है ताकि अपनी जायज मांगों के लिए लोग फिर से आंदोलन न करें. यह जांच में गैर कानूनी तौर-तरीके अपनाने के साथ ही लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला भी है. प्रशासन राजनीतिक और सामाजिक बदले की भावना से काम कर रहा है.

रिटायर्ड प्राफेसर आरएन व्यास ने कहा कि भाजपा तथा उसके आनुषंगिक संगठनों के नेता इस आंदोलन को बदनाम करने और आदिवासी समुदाय को अलग-थलग करने के लिए इसमें ‘नक्सलवादी’ और ‘बाहरी लोगों’ का हाथ होने के आधार हीन आरोप लगा रहे हैं. हम इसकी घोर निन्दा करते हैं और राज्य सरकार से भी आदिवासी समाज के न्यायपूर्ण मांगों और आदोलन पर पुलिस दमन पर रोक लगाने की मांग करते है.

– सौरभ नरुका