वर्ष - 29
अंक - 42
10-10-2020


महाराष्ट्र का इकलौता केंद्रीय विश्वविद्यालय (महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय) प्रोफेसर रजनीश शुक्ल के कुलपति का कार्यभार संभालते ही अकादमिक भ्रष्टाचार के केंद्र में तब्दील होता जा रहा है. कुलपति के संरक्षण में विश्वविद्यालय प्रशासन बेशर्मी के साथ अकादमिक पारदर्शिता के झूठे दावे कर रहा है. जबकि सच्चाई यह है कि पिछले साल से प्रो. शुक्ल के कार्यभार संभालते ही विश्वविद्यालय में कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होने लगीं. पिछले वर्ष में कांशीराम की पुण्यतिथि मनाने व प्रधानमंत्री को देश की समस्याओं को लेकर खत लिखने के कारण छः छात्रों को निष्कासित कर दिया गया था. पिछले वर्ष पीएचडी प्रवेश परीक्षा में भी प्रशासन की ओर से धांधली की गई थी जिसके कारण जनसंचार, समाजकार्य की प्रवेश परीक्षा को निरस्त करना पड़ाथा. इस घटना के खिलाफ आठ विद्यार्थियों के समूह ने नागपुर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल किया और अभी तक सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं. इस वर्ष भी छात्रा संगठनों व विद्यार्थियों के समूह ने प्रवेश परीक्षा की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करते हुए ईमेल के माध्यम से कुलपति, कुलसचिव व सम्बंधित विभागों से शिकायत का निवारण करने का आवेदन किया है. लेकिन उनकी शिकायत को दूर करने की जगह विश्वविद्यालय प्रशासन अपने तानाशाह रवैये पर अड़ा हुआ है.

हिंदी विश्वविद्यालय प्रवेश प्रक्रिया में खामियों को देखते हुए छात्रा संगठन आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एनसाई बालाजी ने ईमेल के माध्यम से सम्बंधित कार्यालय में शिकायत दर्ज करवाते हुए इसका निवारण करने का आग्रह किया है. शिकायत के अनुसार सम्पूर्ण प्रवेश प्रक्रिया में कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ला के इशारे पर महामारी की आड़ में नियम-परिनियम को ताक पर रखकर विश्वविद्यालय प्रशासन मनमाने ढंग ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा का आयोजन आगामी 10 व 11 अक्टूबर 2020 को दो पालियों में करने जा रहा है. इस खेल में विश्वविद्यालय के सभी प्रशासनिक पदाधिकारी कुलपति के कठपुतली बने हुए हैं जो परीक्षा की पारदर्शिता को दरकिनार कर तानाशाही पूर्वक परीक्षा संपन्न करवाने में लगे हुए हैं. हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के सत्र 2020 में विभिन्न विभागों में पीएचडी की कुल 134 सीटों पर ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जा रहा है. विश्वविद्यालय द्वारा जारी निर्देश में कई प्रकार की कमियां देखने को मिल रही हैं जो निम्नलिखित है -

1.प्रवेश परीक्षा घर के एक कमरे में सफेद बैकग्राउंड के साथ कैमरे के सामने बैठकर ऑनलाइन परीक्षा का निर्देश दिया गया है. जिसमें यह कमी है कि कोई भी तकनीकि जानकारी रखने वाला व्यक्ति अपने कंप्यूटर या लैपटाॅप का एक प्रतिरूप आवरण (डुप्लीकेट व क्लोन स्क्रीन) सरलता पूर्वक एचडीएमआइ केबल या थर्ड पार्टी एप्लीकेशन के माध्यम से बना कर संचालन के लिए अन्य किसी व्यक्ति को  नियुक्त कर परीक्षा में सरलतापूर्वक नकल कर सकता है. प्रवेश परीक्षा में निगरानी का माध्यम परीक्षार्थी का वेबकैम और माइक्रोफोन है जो परीक्षार्थी के कैमरे के सामने के दृश्य को दिखाने में सक्षम है. लेकिन यहां कमी यह है कि कैमरे के पीछे अन्य कोई गुपचुप तरीके से बैठकर आराम से नकल करने में सहयोग कर सकता है.

2. प्रवेश परीक्षा देने के लिए आधुनिक उपकरण कंप्यूटर, लैपटाॅप, एंड्राॅयड फोन, हाई स्पीड इन्टरनेट व एकांत कमरे की बात की गई है जो कि सभी परीक्षार्थियों के लिए संभव नहीं हैं, क्योंकि इस कोरोना महामारी के दौरान सभी परीक्षार्थी अपने घर पर हैं. दूरदराज के गांव में रहने वाले आर्थिक रूप से कमजोर परीक्षार्थी परीक्षा में उपयोग किये जाने वाले उपकरण और तेज गति के इन्टरनेट की व्यवस्था करने में सक्षम नहीं हैं. इस कारण बहुत से परीक्षार्थी प्रवेश परीक्षा से वंचित रह जाएंगे.

3. बहुत सारे परीक्षार्थियों में तकनिकी जानकारी का अभाव है और सहायता हेतु तकनिकी जानकारों की उपलब्धता भी नहीं है.  

4. एक-एक प्रश्न को समय सीमा में बांध कर हल करने के लिए बाध्य करना किसी भी परीक्षार्थी के लिए अनुचित है.

उपरोक्त समस्याओं को देखते हुए तमाम परीक्षार्थियों ने विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग की है कि 2020 के सत्र हेतु प्रवेश परीक्षा का आयोजन परीक्षा केंद्र बनाकर केंद्र पर्यवेक्षक की निगरानी में किया जाए ताकि नकल व अन्य अनुचित साधनों के प्रयोग की संभावना को समाप्त किया जा सके. विश्वविद्यालय प्रशासन ने 2020 सत्र की प्रवेश परीक्षा 10-11 अक्टूबर को निर्धारित की है.