वर्ष - 29
अंक - 42
10-10-2020


[ हाथरस गैंगरेप मामले में उत्तर प्रदेश सरकार के आपराधिक रवैये के खिलाफ नागरिक सेवा के अधिकारी भी खुलकर सामने आ गए हैं. ऐसे ही 92 सेवानिवृत आइएएस और आइपीएस अधिकारियों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को खुला खत लिखा है. जिसमें उन्होंने ब्यौरेवार सूबे की सरकार द्वारा बरती गयी प्रशासनिक लापरवाहियों का जिक्र किया है. उन्होंने उन्हें तत्काल ठीक करने तथा इस मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है. सेवानिवृत अधिकारियों ने अपने पत्र में प्रशासनिक महकमे के राजनैतिक तंत्रा के सामने समर्पण को न केवल दुर्भाग्यपूर्ण बताया है बल्कि बेहद लज्जास्पद करार दिया है. आखिर में उन्होंने हाथरस की पीड़िता के लिए किसी भी कीमत पर न्याय सुनिश्चित करने की अपील की है. पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले प्रमुख लोगों में अशोक वाजपेयी, वजाहत हबीबुल्लाह, हर्ष मंदर, जूलियो रिबेरो, एनसी सक्सेना, शिवशंकर मेनन, मधु भादुड़ी, नजीब जंग, अमिताभ पांडे आदि शामिल है. पेश है उनका पूरा पत्र-संपादक ]

प्रिय मुख्य मंत्री जी,

हमने यह मान लिया था कि अब हमारे विवेक और जमीर को कुछ भी झकझोर नहीं पाएगा, तभी आपके प्रशासन द्वारा हाथरस की घटना में की गई कार्यवाही सामने आई. पूरे घटनाक्रम को देखने से पता लगता है कि हमारे देश का प्रशासन किस हद तक दरिंदगी और अमानुषिकता के दलदल में गिर चुका है .

एक दलित लड़की का बर्बरता पूर्वक शारीरिक उत्पीड़न किया गया. लेकिन, घटना के तीन सप्ताह बाद भी पुलिस बलात्कार के अपराध की पुष्टि नहीं कर पा रही है और उसके इर्द-गिर्द कहानियां बनाने की कोशिश कर रही है, जबकि उस लड़की के बयान का वीडियो बलात्कार की पुष्टि करता है. यह बयान एक तरह से उसका ‘डाइंग डिक्लेरेशन’ ही है.

उसके गले पर गहरे घाव थे, उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई थी, और जीभ भी काटी गयी थी. ट्राॅमा से निपटने के लिए उन्नत सुविधाओं वाले दिल्ली के किसी अस्पताल में उसको भेजने के बजाए उसे अलीगढ़ के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल काॅलेज और अस्पताल में पड़ा रहने दिया गया, जहां उसके उपचार के समुचित संसाधन ही नहीं थे. घटना के दो सप्ताह बाद ही उसे दिल्ली ले जाया गया, वह भी उसके परिवार के अनुरोध पर.

उसकी मृत्यु के बाद जो हुआ उसमें न्याय और बुनियादी मानवीय मूल्यों का और भी उपहास किया गया. उसके पार्थिव शरीर को बहुत जल्दबाजी में उसके गांव भेज कर पुलिसकर्मियों द्वारा रात में ही अंतिम संस्कार कर दिया गया. हिंदू धर्मानुयायी होने के नाते आप अच्छी तरह से जानते होंगे कि हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शव का अग्निदाह निकटतम परिजनों द्वारा ही किया जाता है. इस पवित्र परंपरा और परिवारजनों की दलीलें कि वे शव को घर ले जाकर सुबह दाह संस्कार करेंगे – दोनों की परवाह नहीं की गई. शोक संतप्त परिवार के जख्म पर नमक छिड़कते हुए एक पुलिसकर्मी ने उन्हें भी इस हादसे का दोषी ठहरा दिया और जिला मजिस्ट्रेट वीडियो पर उस परिवार को धमकी-सी देते दिखे कि वह मीडिया वालों से बात करने में सावधानी बरतें, क्योंकि मीडिया तो कुछ समय बाद चली जाएगी, लेकिन अधिकारीगण तो आसपास ही रहेंगे.

मीडिया में यह प्रसारित किया गया है कि आरोपियों को शीघ्र सजा दिलवाने के लिए मामले को फास्ट-ट्रैक करने की ताकीद प्रधानमंत्री ने आपको दी है. केंद्र और प्रदेश सरकारों में अपने अनुभव के आधार पर पूर्व सिविल सेवकों के हमारे समूह ने पहले भी उन्नाव बलात्कार व बुलंदशहर पुलिस निरीक्षक की हत्या के मामलों में कायदे-कानून के बेशर्म उल्लंघन पर प्रकाश डाला था. यह भी विचारणीय है कि अपने साथी पुलिस अधिकारी की घिनौनी हत्या के दो साल बाद भी न तो आपकी पुलिस ने और न ही प्रशासन ने मामले को न्यायोचित अंजाम पर लाने में कोई तत्परता दिखाई है. इस पृष्ठभूमि में आप समझ सकते हैं कि उत्तर प्रदेश की फास्ट-ट्रैक प्रणाली पर हमें संशय होना स्वाभाविक ही है.

वस्तुतः हम उत्तर प्रदेश सरकार की ‘फास्ट ट्रैक न्याय’ की नायाब व्याख्या से भी चिंतित हैं. अभी हाल ही में हमने दो उदाहरण देखे हैं जिनमें पुलिस के संरक्षण में उत्तर प्रदेश ले जाते समय कथित अपराधियों को रास्ते में ही मार दिया गया. भले ही वह जघन्य अपराधों के अभियुक्त रहे हों, परंतु  भारत के संविधान और देश के कानून के अंतर्गत उन्हें एक विधिवत ट्रायल का हक प्राप्त था. उनको इस अधिकार से वंचित रखना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है. आपके प्रशासन ने सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक कठोर कदम उठाए हैं, जिसमें निरोध और दंडात्मक जुर्माना शामिल हैं. हाल ही में एक साक्षात्कार में ‘आंख के बदले आंख’ की विचारधारा की आप द्वारा वकालत से यह प्रतीत होता है कि आप जज और जल्लाद की भूमिकाओं को एक ही तंत्रा/व्यक्ति में केंद्रित करने के पक्षधर हैं.

सत्यमेव जयते