लोकतंत्र के हाथों शहीद एक सच्चे लोकतंत्रवादी : जीएन साईबाबा

प्रोफेसर जीएन साईबाबा ने 12 अक्टूबर 2024 को शाम आठ बजकर छत्तीस मिनट पर अंतिम सांस ली. उनका दिल काम करना बंद कर चुका था और डॉक्टर उन्हें बचाने की पूरी कोशिश कर रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. साईबाबा 57 साल के थे. उनका निधन पित्ताशय की पथरी निकालने के बाद पैदा हुई जटिलताओं के कारण हुई – एक प्रक्रिया जो शायद ही कभी जानलेवा होती है. लेकिन साईबाबा सामान्य परिस्थितियों में ऑपरेशन थिएटर में नहीं गए थे.

श्रीलंकाई जनता का अप्रत्याशित चुनावी फैसला

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श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के परिणामों ने कई लोगों को चौंका दिया है. लंबे समय से श्रीलंका की राजनीति में हावी रहने वाली दो प्रमुख पार्टियों – श्रीलंका फ्रीडम पार्टी और यूनाइटेड नेशनल पार्टी – से मतदाताओं ने दूरी बनाते हुए एक नए विकल्प को चुना है.

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ एक खतरनाक योजना है, इसे तत्काल खारिज करें

पिछली बार हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव 21 अक्टूबर, 2019 को एक ही चरण में हुए थे, लेकिन अब उन्हें अलग-अलग आयोजित किया जा रहा है. इसके साथ ही, महाराष्ट्र चुनाव की तारीखों का ऐलान किया जाना बाकी है. इन सबके बीच, मोदी सरकार एक बार फिर से ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (ओएनओई) को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है.

प्रधानमंत्री-मुख्य न्यायाधीश संबंध : न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल और गणतंत्र पर गहराता संकट

भारत के मौजूदा राजनीतिक माहौल में, प्रधानमंत्री द्वारा मुख्य न्यायाधीश के घर जाकर किसी ‘निजी’ धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होना एक नया दस्तूर है, जिसका उद्देश्य साफतौर से सार्वजनिक प्रदर्शन कर ध्यान आकर्षित करना है. प्रधानमंत्री मोदी ने गणेश चतुर्थी के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ के आवास पर पारंपरिक महाराष्ट्रीयन टोपी पहनकर भगवान गणेश की पूजा की, जो अब दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गया है.

हताश भाजपा द्वारा नफरत और हिंसा का अभियान तेज

2024 के चुनाव नतीजों से हताश मोदी सरकार और संघ-भाजपा गठजोड़ ने जनता के बीच बढ़ते विरोध का मुकाबला करने के लिए बहुमुखी रणनीति अपनाई है. बजट सत्र के दौरान मोदी सरकार को कुछ हद तक रक्षात्मक रवैया भी अख्तियार करना पड़ा. सरकार को प्रस्तावित वक्फ बोर्ड विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को वापस भेजना पड़ा और सोशल मीडिया को नियंत्रित करने की योजना को भी स्थगित करना पड़ा. यहां तक कि यूपीएससी को केंद्रीय नौकरशाही में लेटरल एंट्री भर्ती को वापस लेने का सर्कुलर जारी करना पड़ा.

बुलडोजर राज : मोदी के भारत में न्याय का सिस्टेमेटिक बुलडोजर

मोदी काल में भाजपा शासन की पहचान के रूप में उभरे आतंक, अन्याय, भ्रष्टाचार और अहंकार को समझाने के लिए अगर हमें एक रूपक का चयन करना है, तो बुलडोजर उन सभी का प्रतीक है. योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में ‘शासन’ के साधन के रूप में बुलडोजर का इस्तेमाल शुरू हुआ और आज भाजपा शासित अन्य राज्यों, खासकर मध्य प्रदेश ने भी इस मॉडल को बड़ी शिद्दत से अपनाया है. 2024 के चुनाव में बहुमत के नुकसान से नाराज और नाराज भाजपा सरकारों ने वास्तव में बुलडोजर बदला अभियान चलाया लगता है.

हमें न्याय चाहिए : भारत में महिलाओं की सुरक्षा और आजादी के लिए संघर्ष का नया दौर

स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर कोलकाता के आरजी कार मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (आरजीकेएमसीएच) में एक 31-वर्षीया पोस्टग्रेजुएट प्रशिक्षु डॉक्टर के भयावह बलात्कार व हत्या कांड ने पश्चित बंगाल में बड़ी जन दावेदारी पैदा कर दी है जिसे महत्वपूर्ण महिला पहलकदमी ‘रिक्लेम द नाइट’ –एक अंतरराष्ट्रीय आन्दोलन से लिया गया नाम – से बल मिल रहा है. इस 15 अगस्त के दिन आज के भारत में महिलाओं की आजादी, महिलाओं की सुरक्षा और मर्यादित व लोकतांत्रिक जीवन के अनिवार्य महिला अधिकारों पर पूरा जोर दिया गया था.

समानता बनाम संघ : आधुनिक भारत में विचारों का बुनियादी संघर्ष

‘जाति व्यवस्था भारत के एकीकरण का कारक है और जो कोई जाति व्यवस्था पर हमला करता है, वो भारत का दुश्मन है’ – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिंदी मुखपत्र पांचजन्य ने ऐसा एक संपादकीय टिप्पणी में कहा है. हाल के वर्षों में जाति व्यवस्था का ऐसा खुलमखुल्ला महिमामंडन संभवतः नहीं हुआ है. यह संपादकीय भारत की आजादी की 77वीं वर्षगांठ की पूर्व बेला पर आया है. आरएसएस, जो अगले साल अपना शताब्दी वर्ष मनाएगा, जो आजकल भारत की ‘आधिकारिक (सरकारी) विचारधारा’ का संरक्षक है, की इस टिप्पणी को एक अलग-थलग दक्षिणपंथी प्रतिगामी शेखी मानकर हल्के में नहीं लिया जा सकता.

एससी/एसटी आरक्षण के अंदर उप-वर्गीकरण से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

1 अगस्त 2024 को सर्वोच्च न्यायालय की सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से एक फैसला सुनाते हुए आरक्षण के मकसद से अनुसूचित जातियों-अनुसूचित जनजातियों के उप-वर्गीकरण की वैधता को सही करार दिया. बहरहाल, कोर्ट ने इस मामले में निरपेक्ष स्वतंत्रता नहीं दी है.

बजट 2024 : गरीब और मध्यम वर्गों की कीमत पर अति-धनिकों का जश्न

मोदी सरकार की तीसरी पारी के पहले पूर्ण बजट ने इस शासन के मध्यमवर्गीय समर्थन आधार के और भी बड़े हिस्से को काफी हद तक भ्रममुक्त और आक्रोशित कर दिया है. यहां तक कि गोदी मीडिया के ऐंकरों ने भी वित्त मंत्री के समक्ष असहज करने वाले प्रश्न उठाने शुरू कर दिये हैं. यह बजट ऐसे चुनाव के बाद आया है जिसमें आर्थिक संकट की लंबी छाया स्पष्ट दिख रही थी और शासक पर्टी ने अपना बहुमत खो दिया है. इसीलिए इस बजट से यह आशा नहीं थी कि वह देश में व्याप्त चिंताओं के प्रति खामोश रहेगा.