वर्ष - 31
अंक - 6
05-02-2022

नई दिल्ली, 1 फरवरी

मोदी सरकार के बार-बार दुहराये जाने वायदों के अनुसार वर्ष 2022 के आने तक किसानों की आमदनी को दुगुना हो जाना था. दुख की बात है कि बजट 2022-23 इस पर बिल्कुल चुप है. इस बजट में कृषि पर निवेश में कोई इजाफा नहीं दिखा, ऊपर से किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रमुख मांग के बारे में यह कोई संकेत नहीं दे रहा है.

इस बजट के कुछ ही पहले ऑक्सफैम इनइक्वलिटी रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिसके अनुसार भारत में आर्थिक विषमता भयानक स्तर पर पहुंच चुकी है. वर्ष 2022 में देश में 84 प्रतिशत परिवारों की आय घट चुकी है, लेकिन भारत में अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़ कर 142 हो गई है. इस बजट ने कॉरपोरेट टैक्स में और कमी का प्रस्ताव लाकर एवं गरीबों को किसी प्रकार की राहत न देकर इस आर्थिक विषमता को और बढ़ाने का काम किया है.

घटती विकास दर के साथ भारत भयानक बेरोजगारी के संकट से गुजर रहा है. दिसम्बर 2021 के दिन 5.1 करोड़ नौजवान बेरोजगार थे. इस बजट ने नये रोजगार सृजन और आम आदमी की आमदनी गारंटी जैसे महत्वपूर्ण प्रश्न पर आपराधिक चुप्पी साध ली है.

वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में कहने को भी ‘मनरेगा’ जैसी जीवन रक्षक योजनाओं का जिक्र नहीं किया है. जबकि मांग तो शहरी मनरेगा लाने की भी हो रही थी, जिसकी अनुसंशा एक संसदीय समिति ने भी की थी.

निर्मला सीतारमन अपने बजट भाषण में वर्तमान दौर को ‘अमृत काल’ कह रही हैं. ऐसी हैडलाइन्स गोदी मीडिया बनाता ही रहता है, लेकिन बजट भाषण में यह हो तो इसे क्या कहा जाए ? जब करोड़ों नागरिक न्यूनतम सुविधाओं और आजीविका के संघर्ष में दर-दर भटक रहे हैं, तब उनकी भावनाओं को अनदेखा करते हुए यह कह देना कि यह बजट अगले 25 सालों की दूरदृष्टि वाला है, आम जनता का मजाक नहीं तो और क्या है!

इस बजट को 2022 तक किसानों की आय दुगुना होना, सभी को पक्का घर और सभी को बिजली की आपूर्ति जैसे मोदी के पिछले वायदों के गायब रहने के लिए याद रखा जाएगा. यह मोदी-2 सरकार का चौथा बजट है, जिसने वर्ष 2024 तक भारत की अर्थव्यवस्था को ‘5 ट्रिलियन इकॉनमी’ बनाने की बात कही थी! अब एक ही साल बचा है और बजट इस पर पूरी तरह चुप है. सरकार लगातार ग्रामीण गरीब, कृषि मजदूरों, किसानों और प्रवासी मजदूरों को राहत देने के वायदे करती रहती है, लेकिन बजट में इन पर भी कोई चर्चा नहीं है.

कल प्रकाशित हुए आर्थिक सर्वे में बताया गया है कि पिछले साल अर्थव्यवस्था की विकास दर 9.2 प्रतिशत रही और टैक्स संग्रह में 67 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. यह टैक्स किनसे लिया गया? सच्चाई यह है कि लॉकडाउन व महामारी की त्रासदी के बीच भी आम जनता की जेबों से पैसा निकाल कर टैक्स रिवेन्यू बढ़ाया गया है. पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों से सरकार ने करीब 4 लाख करोड़ रुपये कमाये, जबकि महामारी से पहले के साल में पेट्रोल-डीजल से सरकार के पास 2.39 लाख करोड़ रुपये ही आये थे, हालाकि तब भी पेट्रोल काफी मंहगा हो चुका था. सरकार की आमदनी का एक और बड़ा स्रोत अपने ही रिजर्व बैंक से पैसा निकालना रहा – एक साल में 1,47,353 करोड़ रुपये निकाले गए, जो कि कमाई के नाम पर घर का ही सोना बेचने के बराबर है. बजट 22-23 में फिर से आरबीआई से 1,13,948 करोड़ रुपये निकालने का प्रावधान किया गया है!

यह फिर से याद कर लेना जरूरी है कि 2014 में मोदी सरकार के आने के पहले केन्द्र सरकार पर 58.66 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, जो अब बढ़ कर 117.04 लाख करोड़ रुपये हो चुका है. इसके पीछे मुख्य कारण मोदी सरकार द्वारा कॉरपोरेटों और अति-धनाड्यों से कम टैक्स लेना रहा है, क्योंकि यही लोग भाजपा को चुनाव जीतने के लिए अनाप-शनाप फंड देते हैं. इसी वजह से आम लोगों के विकास, समाज कल्याण और मानव संसाधन विकास की मदों में भाजपा सरकारी खर्च घटा रही है.

एक ओर सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर टैक्स बढ़ा कर, रिजर्व बैंक खाली करके और पब्लिक सेक्टर उद्यमों को बेचकर जनता की जेबों पर डाका डाल दिया है, तो दूसरी तरफ आगामी साल के लिए सब्सिडी में और कटौती की गई है तथा कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण विकास की मदों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. सरकार ने इस बजट में खाद्य सब्सिडी को पिछले साल की तुलना में 80,000 करोड़ रुपया कम कर दिया है, वहीं फर्टिलाइजर पर सब्सिडी में 35,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमी की गई है.

कृषि और ग्रामीण विकास में आवंटन और कोविड के बावजूद स्वास्थ्य क्षेत्र में आवंटन लगभग पिछले साल के बराबर है; अगर मुद्रास्फीति/मंहगाई के प्रभाव को इसमें जोड़ दें, तो वास्तविकता में इन मदों में पिछले साल की तुलना में कमी आई है. शिक्षा क्षेत्र में आवंटन में केवल 18 प्रतिशत की बढ़त है, जोकि महामारी के दौर में दो सालों में बच्चों के नुकसान की भरपाई करने लायक नहीं है.

मध्यम वर्ग को उम्मीद थी कि महामारी के दौर में हुए नुकसान की कुछ तो भरपाई होगी, लेकिन इनकम टैक्स स्लैब्स में कोई बदलाव इस साल भी नहीं किया गया है. जबकि भारत में पूंजीपतियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स की दरें आज भी पूरी दुनिया में सबसे कम हैं. सरकार इनडाइरेक्ट टैक्स (अप्रत्यक्ष कर) बढ़ा कर जनता से पैसा वसूल कर खजाना भर रही है.

एयर इंडिया को बेचा जा चुका है; अब निजीकरण की नीति के तहत केन्द्रीय पब्लिक सेक्टर की कम्पनियों में नीलांचल इस्पात निगम, एलआईसी व अन्य संस्थानों को बेचने की बारी है. यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक कदम है. बजट 2022-23 की इन घोषणाओं के बीच वित्तमंत्री ने बगैर कोई ठोस योजना बताये 60 लाख नौकरियां सृजन की बात भी कर दी है, जो एक और जुमला से ज्यादा कुछ नहीं लग रहा है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो कच्चे तेल की कीमतें फिलहाल बढ़ रही हैं, ऐसी हालत में संभावना है कि जिस विदेशी निवेश पर प्रधानमंत्री भरोसा कर रहे हैं वह भी कम हो सकता है. भारत में थोक मूल्य सूचकांक आजकल डबल-डिजिट (दहाई के आंकड़े) में चल रहा है जिससे स्पष्ट हो गया है कि अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा बहुप्रचारित 20 लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज कोई खास काम नहीं कर पाया. लेकिन फिर भी मोदी सरकार जनता को तत्काल राहत देने के लिए पर्याप्त पूंजी निवेश नहीं करना चाहती. आर्थिक सर्वे में तो अगले साल अर्थव्यवस्था की विकास दर 8 से 8.5 प्रतिशत बढ़ने की घोषणा कर दी गई है, लेकिन कर्ज का बोझ बढ़ा कर भी क्या सरकार यह हासिल कर पाएगी? कौन नहीं जानता की कोविड से पहले के वर्ष 2019-20 में मोदी सरकार की विकास दर 5 प्रतिशत से भी नीचे रही थी!

कुल मिलाकर, भारत के अरबपतियों की जेबें भरने वाला बजट-2022 देश के युवाओं, किसानों, मजदूरों व आम जनता के साथ विश्वासघात का बजट है.

– भाकपा(माले) की केन्द्रीय कमेटी द्वारा जारी