वर्ष - 31
अंक - 5
29-01-2022

लखनऊ की शहरी व ग्रामीण गरीब महिलाओं के बीच चलाये गए अभियान के कुछ अनुभव

‘अच्छे दिन’ लाने का वादा करके सत्ता में आई मोदी-योगी की डबल इंजन की सरकार के राज में गरीबों के मुंह का निवाला भी छीना जा रहा है. शहरी व ग्रामीण गरीबों को रोजगार के लाले पड़ गए है. ग्रामीण क्षेत्र में खासतौर पर महिलाओं के लिए कोई रोजगार नहीं है. पुरुषों के लिए भी कोई खास काम नहीं है. रही-सही कसर योगी जी के तथाकथित रामराज्य में छुट्टा घूमते जानवरों ने पूरी कर दी है.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति भवानीपुर गांव की रिंकी राज ने बताया कि उनके पास खुद का खेत नहीं है, वे दूसरे का खेत बटाई पर लेकर खेती करती हैं. इस कड़ाके की ठंड में पूरी रात जागकर जानवरों से खेत की रखवाली करनी पड़ती है. अगर गलती से नींद आ गई तो आवारा जानवर पूरा खेत चर जाते हैं. इसके बावजूद उन्हें खेत के मालिक को तय रकम देनी पड़ती है. उन्होंने बताया कि उनके पति भी बेरोजगार है. वे खुद कपड़े सिलती हैं और किसी तरह घर चलाती है.

हम सब यह जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में बिजली सभी राज्यों की तुलना में महंगी है. लेकिन, महंगी बिजली गरीबों के लिए किस कदर परेशानी का सबब बन गई है इसकी बानगी भी हमें भवानीपुर गांव में देखने को मिली. इस गांव की केतकी ने हमें बताया कि उन्होंने अपने खेत बेचकर एक लाख रु. का बिजली बिल चुकाया है. यह पूछने पर कि योगी सरकार की कौन-कौन सी योजनाओं का लाभ उन्हें मिला है उन्होनें बताया कि उन्हें किसी योजना का कोई लाभ नहीं मिला है. उल्टे, दो-तीन साल पहले उनके पुराने पैतृक घर को भी कुछ लोगों ने यह कह कर गिरवा दिया कि इसके बाद आपको प्रधानमंत्री आवास दिया जाएगा. लेकिन आजतक उन्हें कुछ भी नहीं मिला है.

उसी गांव की बड़की, जिनकी उम्र 60 साल के ऊपर होगी, ने बताया कि बेटे को जेल जाने से बचाने के लिए उन्होंने 5 प्रतिशत ब्याज पर किसी महाजन से 26 हजार रुपया लेकर बिजली का बिल जमा किया है. उन्होंने कहा ‘बिटिया यह सोचकर नींद नहीं आती है कि यह कर्ज कैसे चुकाया जाएगा. एक ही बेटा है उसको भी कोई काम-धाम नहीं मिलता है. हम गरीब लोग कैसे घर चलाए और कैसे कर्जा पाटें, समझ में नहीं आ रहा है.’ 60 साल से ज्यादा उम्र की होने पर भी उन्हें वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिलता है. कुल मिलाकर गरीबों पर चौतरफा मार जारी है.

भवानीपुर गांव की समस्या यही खत्म नहीं होती है. आगे एक और महिला ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यहां पर अब श्मशान भी नहीं है. पहले जो श्मशान था उसको किसी ठाकुर साहब ने तार से घेर दिया है. उन्होंने बताया कि बड़े लोग तो अपने खेत मे दाह संस्कार कर रहे हैं लेकिन हम गरीब लोग जिनके पास खेत भी नहीं कहां जाएं?

कुछ इसी तरह की समस्याओं का सामना सरोजिनी नगर तहसील के अंर्तगत आने वाले काशीराम कालोनी, रानीपुर व अन्दपुर के लोग भी कर रहे है. खेती किसानी से जुड़े लोगों ने बताया कि जो खाद पहले 8 सौ रुपये में 50 किलो मिलती थी वो अब 12 सौ की 45 किलो मिल रही है और उसके लिए भी लंबी लाइन में लगना पड़ता है. अगर बीमार पड़ जाओ तो अब दवाएं भी दो-तीन गुने महंगे दाम में मिल रही हैं. रोजमर्रा की सभी चीजों के दाम दोगुना-चौगुना हो गए हैं और ये ऐसी चीजें है जिसको छोड़ा भी नहीं जा सकता है. यह कहने पर कि सरकार 5 किलो राशन तो दे रही है, जवाब में बिट्टा देवी ने कहा कि गैस सिलेंडर का दाम एक हजार रु. करके ले भी तो रही है.

रानीपुर में महिलाओं के साथ-साथ हमने कुछ नौजवानों से भी बात की. नौजवानों का कहना कि हम लोगों के पास कोई भी रोजी-रोजगार नहीं है, ऊपर से कमरतोड़ मंहगाई ने हम सबका जीना मुश्किल कर दिया है. न सस्ती शिक्षा है न ही कोई ठोस रोजगार. समझ में नहीं आ रहा है कि हमारा भविष्य क्या होगा? महिलाओं ने बताया कि रोजमर्रा के चीजों के महंगा होने की वजह से घर चलाना मुश्किल हो गया है क्योंकि आमदनी तो कहीं से भी बढ़ नहीं रही है और महंगाई आसमान छू रही है. मंहगाई हम महिलाओं के लिए इस कदर हो गयी है कि हमारे परिवारों में, खासतौर पर पति पत्नी के बीच, तू-तू मैं-मैं और यहां तक कि मारपीट की नौबत तक आ जाती है. पहले जितने में महीना का खर्च चल जाता था उतने में अब चलाना मुश्किल हो रहा है. नौजवान विकास, विनीत व उनके दोस्तों ने कहा कि हमारे पास कोई रोजी-रोजगार भी नहीं है, ऊपर से ये मंहगाई. हम गरीबों का तो जिंदा रहना ही मुश्किल हो गया है इस सरकार में.

तीनों तहसील के लोगों ने कहा कि जबसे योगी की सरकार आई है तब से चौबीसों घंटे खेत की रखवाली करनी पड़ती है. जरा सी नींद आ जाती है तो छुट्टा जानवर पूरा खेत साफ कर जाते हैं. रही सही कसर हजार रूपए की गैस और महंगी बिजली ने पूरी कर दी है. यह कहने पर कि समस्या तो बहुत बड़ी है, इससे कैसे निजात मिलेगा? लोगों ने कहा कि इनकी (योगी की) विदाई करके ही हम लोग जिंदा रह सकते है.

काशीराम कालोनी में महिलाओं ने बताया कि उन्हें राशन 5 किलो नहीं, 4 किलो ही मिलता है और इसके लिए उन्हें कोटेदार के यहां कम से कम दो दिन दौड़ना पड़ता है तब जाकर कहीं राशन मिल पाता है.

महिलाओं ने बताया कि इतना ही नहीं, कोटेदार ऊंची जाति के हैं और कई बार हम गरीबों को बहुत हेय दृष्टि से देखते हैं. लोगों ने कहा कि शायद दलित होने के कारण हम लोग कोटेदार की आंखों में चुभते है.

इसी कालोनी में रहने वाली उमाशील ने, जिनकी उम्र लगभग 80 साल के आसपास होगी, बताया कि कोरोना के समय से वो अपनी बेटी के यहां रह रही थीं. दो साल बाद जब वापस आईं तो पता चला कि घर की बिजली काट दी गयी है. जब उन्होंने पता किया तो बताया गया कि बिजली बिल जमा नहीं किया गया था इसीलिए बिजली का कनेक्शन काट दिया गया है. मजेदार बात यह है कि कनेक्शन कटने के बाद भी बिल 40 हजार रु. का बताया जा रहा है. अब सवाल यह उठता है कि जब घर में कोई था ही नहीं और कनेक्शन भी काट दिया गया था तो फिर इतने रुपये का बिजली बिल कैसे आ गया? इसी कालोनी की निवासी सरोज, मीना व रूपा समेत कई महिलाओं ने बताया कि उनकी घर की भी बिजली दो साल से कटी हुई है. लोगों का कहना था कि उनके पास बिजली से चलने वाले कुछ खास समान भी नहीं है. पंखा, बल्ब और कुछ ने फ्रीज रखने की बात कही और बताया कि इसका बिल 10 हजार रुपये से लेकर 20 हजार रुपये प्रति माह तक आता है. अब इन्हें कौन बताए कि उत्तर प्रदेश में बिजली के तारों को राष्ट्रवाद में पहले डुबाया जाता है फिर घरों में दौड़ाया जाता है.

राजधानी लखनऊ की तीन तहसीलों-सदर, बीकेटी व सरोजिनी नगर के लोगों से उनके जीवन के इन ज्वलंत सवालों पर बात करते हुए यह साफ नजर आया कि गरीब जनता, सर्वापरि महिलाएं, बदलाव के मूड में है. चुनौती यह है कि कैसे उन्हें संगठित आंदोलन और राजनैतिक ताकत के रूप खड़ा किया जाय.

- मीना सिंह