अमरीकी नौसेना ने एक वक्तव्य जारी करके खुलेआम घोषणा की है कि उसने भारत की (और मालदीव की भी) सामुद्रिक संप्रभुता का उल्लंघन किया है. वक्तव्य कहता है कि “7 अप्रैल 2021 (स्थानीय समय) को अमरीकी नौसेनिक पोत यूएसएस जाॅन पाॅल जोन्स (डीडीजी 53) ने अंतर्राष्ट्रीय कानून के साथ संगतिपूर्ण, भारत की पूर्व सहमति के बिना ही, भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (एक्सक्लूसिव इकनाॅमिक जोन) के भीतर लक्षद्वीप द्वीपसमूह के पश्चिम में लगभग 130 समुद्री मील तक अपने जहाजरानी (नेवीगेशनल) अधिकारों एवं स्वतंत्रता की दावेदारी की है. भारत के अपने अनन्य आर्थिक क्षेत्र अथवा महाद्वीपीय पट्टी (कांटिनेंटल शेल्फ) में सैनिक युद्धाभ्यासों अथवा युद्धकौशल पूर्वाभ्यासों में पूर्व सहमति अनिवार्य है...”
इन उल्लंघनों को जायज ठहराने के लिये अमरीका ने अपना जहाजरानी क्रियाकलापों की स्वतंत्रता (एफओएनओपी) का दावा पेश किया है, जिसमें उसने यह तर्क दिया है कि अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत उसकी कार्यवाहियां न्यायोचित हैं. मगर, इस तरह की गतिविधियां महज धौंस-धमकी जमाने तथा भारत सरकार को अपनी सैनिक मातहती में आने के लिये विवश करने के प्रयास के सिवाय और कुछ नहीं हैं. यह वाशिंगटन के फरमानों के आगे भारतीय हितों का आत्मसमर्पण करने की मोदी सरकार की उस नीति का भी परिचायक है जिसके तहत मोदी सरकार ने जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ तथाकथित ‘क्वाड’ संश्रय में शामिल होने का फैसला लिया. बिना पूर्व अनुमति के इस तरह की कार्यवाहियां चलाकर वाशिंगटन भी यह इशारा कर रहा है कि वह नई दिल्ली को इस संश्रय में समान साझीदार नहीं बल्कि एक मातहत राज्य मानता है.
मोदी सरकार ने हमेशा अपनी रौबदार विदेश नीति को अपनी मुख्य ताकत के बतौर पेश किया है और इस आधार पर चुनाव में वोट मांगे हैं, जबकि वास्तव में उसने अमरीका की इस किस्म की धौंस-धमकियों के आगे हमेशा आत्मसमर्पण किया है. एक ओर भाजपा तमाम विपक्षी पार्टियों एवं प्रतिवादकारियों पर विदेशी शत्रुओं की सरपरस्ती में चलने का आरोप लगाती है. दूसरी ओर विदेशी मुद्रा विनियम कानून (फाॅरेन करेंसी रेगुलेशन ऐक्ट) में संशोधन के जरिये भाजपा ने अपनी पार्टी के खजाने में अबाध विदेशी अनुदान के लिये दरवाजे खोल दिये हैं. अतः यह अनुमान लगाया ही जा सकता है कि क्या वाशिंगटन भाजपा में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है और भारत के जहाजरानी अधिकारों पर डाका डाल रहा है.
इस किस्म के उल्लंघन भारत की सुरक्षा के लिये भी खतरा हैं और साथ ही उस समुद्र में मछली पकड़ने वाली भारतीय नौकाओं के लिये भी खतरा हैं, जहां अमरीका अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. भारत सरकार को इस किस्म की धौंस-धमकी जमाने वाली कार्यवाहियों के खिलाफ उठ खड़ा होना होगा और यह दावा करने से पहले कि उसने भारत के वैश्विक कद को “ऊंचा” उठाया है, अमरीकी नौसेना को माफी मांगने के लिये मजबूर करना होगा.