भाकपा(माले) के दो सदस्यीय जांच दल ने विगत 19 फरवरी को उन्नाव के असोहा थानांतर्गत बबुरहा गांव का दौरा कर उस पीड़ित दलित परिवार से भेंट की, जिसकी तीन नाबालिग बेटियां 17 फरवरी की देर शाम निकट के खेत में पड़ी मिली थीं और जिनमें से दो की मौत हो गई थी जबकि तीसरी गंभीर हालत में कानपुर के अस्पताल में भर्ती है.
जांच दल ने मृतका की मां बिटोला और पिता से बात की तथा पास-पड़ोस के परिवारों व गांव के अन्य लोगों से विस्तृत बातचीत के आधार पर बनी रिपोर्ट को लखनऊ में जारी करते हुए कहा कि घटना संदिग्ध है और सब कुछ वैसा ही नहीं है, जैसा शासन-प्रशासन की ओर से बताया जा रहा है. लिहाजा पूरे मामले को सीबीआई को सौंप दिया जाना चाहिए, ताकि सच सामने आए.
टीम की रिपोर्ट के अनुसार प्रशासन घटना को लेकर कुछ तो पर्देदारी कर रहा है. टीम को पीड़ित परिवार तक पहुंचने के लिए भारी पुलिस बंदोबस्त, बैरिकेडिंग, रोक-टोक व कई रास्तों से पुलिस द्वारा लौटा दिए जाने के बाद अंततः खेतों से होकर कई किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचने का विकल्प चुनना पड़ा. परिवार के सदस्यों पर पुलिस की कड़ी नजर है. काजल के पिता सहमे हुए मिले और पुलिस के डर से बोल नहीं पा रहे थे. मां का रो-रोकर बुरा हाल है और वह घटना को लेकर पुलिस की बात से असहमत दिखीं. गांव के कई लोगों ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि बच्चियों के साथ कुछ वैसा हुआ है, जिसे प्रशासन द्वारा सामने नहीं लाया जा रहा है.
रिपोर्ट में सवाल किया गया है कि आखिर योगी सरकार ने क्या छुपाने के लिए गांव को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया है? लोगों को गांव में घुसने देने और पीड़ित परिवार से मिलने देने से पुलिस क्यों रोक रही है? जांच दल ने घटना के लिए योगी सरकार को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि भाजपा सरकार में महिलाएं बिल्कुल सुरक्षित नहीं रह गई हैं. टीम ने पीड़ित परिवार को 25-25 लाख रुपये मुआवजा देने, मौत से जूझ रही रोशनी के बेहतर इलाज और दोषियों को कठोरतम सजा देने की मांग की.
टीम में भाकपा(माले) के राज्य स्थायी समिति के सदस्य रमेश सेंगर और इंकलाबी नौजवान सभा (इंनौस) के प्रांतीय नेता ओम प्रकाश राज शामिल थे.
ऐपवा की राज्य सचिव कुसुम वर्मा ने 18 फरवरी 2021 को एक प्रेस बयान जारी कर उन्नाव मामले की गम्भीरता से उच्च स्तरीय जांच करनो और घायल लड़की को पर्याप्त मेडिकल सुविधा तत्काल उपलब्ध कराने की मांग की.
उन्होंने कहा कि हाथरस घटना के बाद यह घटना उत्तर प्रदेश में महिलाओं विशेषकर दलितों की असुरक्षित स्थिति की ओर इशारा करती है. इसके लिए प्रदेश में काबिज योगी सरकार जिम्मेदार हैं जो लगातार संविधान को नकारते हुए प्रदेश में गैरबराबरी को बढ़ावा दे रही है. महिला हिंसा और विशेषकर दलित महिलाओं पर हो रही हिंसा के मामले में यूपी शर्मनाक ढंग से पहले पायदान पर है. इसके लिए मुख्यमंत्री योगी पूरी तरह से जिम्मेदार हैं और वे मुख्यमंत्री की कुर्सी के लायक नहीं हैं. वे अविलंब इस्तीफा दें.
उन्नाव घटना की उच्च स्तरीय जांच और अस्पताल में भर्ती लड़की को मेडिकल केयर देने की मांग के साथ ऐपवा राज्य सचिव कुसुम वर्मा की अगुआई में 18 फरवरी 2021 को बीएचयू गेट पर प्रदर्शन किया.
प्रदर्शन में शामिल ऐपवा जिला अध्यक्ष सुतपा गुप्ता ने कहा कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ के नाम पर उत्तर प्रदेश में लगातार बेटियों की हत्याएं की जा रही हैं और अपराधियों को खुला संरक्षण मिला हुआ है. इस अवसर पर सभा का भी आयोजन किया गया. कार्यक्रम में मुख्य रूप से विभा वाही, सुजाता भट्टाचार्य, वर्षा सोनिया, वीके सिंह, धनशीला, विमला, ममता, कमली के अतिरिक्त आइसा के विवेक, राजेश आदि उपस्थित थे.
योगी राज में उत्तर प्रदेश में दलितों और महिलाओं पर बढ़ रहे अत्याचार के विरोध में 19 फरवरी को आइसा ने दिल्ली स्थित यूपी भवन के बाहर विरोध प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों ने उन्नाव की घटना के खिलाफ आवाज़ बुलंद की और योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग की.
विरोध प्रदर्शन के दौरान आइसा कार्यकर्ताओं की दिल्ली पुलिस के साथ जमकर खींचतान हुई. बाद में पुलिस ने आइसा के दिल्ली राज्य सचिव काशिफ एजाज, दिल्ली राज्य उपाध्यक्ष डोलन सामंत और नेहा समेत कई छात्र-छात्राओं को हिरासत में ले लिया और उन्हें मंदिर मार्ग थाने ले गई, वहां भी योगी आदित्यनाथ की सरकार के खिलाफ नारे और लोकगीत जारी रहे.
आइसा दिल्ली की उपाध्यक्ष डोलन ने कहा कि योगी आदित्यनाथ के राज में उत्तर प्रदेश जातिवादी और पितृसत्तात्मक हिंदू राष्ट्र के लिए प्रयोगशाला का काम कर रहा है. सभी लोकतांत्रिक संगठनों को इसके खिलाफ आवाज बुलंद करनी चाहिए. नेहा ने कहा कि उत्तर प्रदेश में महिलायें सुरक्षित महसूस नहीं करतीं. दलितों की लिंचिंग और मुस्लिमों में डर का माहौल बना हुआ है. नेहा ने कहा कि योगी आदित्यनाथ की सरकार लोगों को सुरक्षित महसूस कराने में असमर्थ हैं, इसीलिए उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए.
आइसा नेताओं ने कहा कि दिल्ली पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बरती जा रही हिंसा, उत्तर प्रदेश के जंगल राज के खिलाफ आवाज बुलंद करने से नहीं रोक पाएगी. बाद में सभी प्रदर्शनकारियों को छोड़ दिया गया.