फरवरी 2016 में जब आइसा कार्यकर्ता उदयपुर (राजस्थान) स्थित मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के साइंस काॅलेज परिसर में तत्कालीन जेएनयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार की रिहाई और हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के दलित छात्र एक्टिविस्ट रोहित वेमुला की संस्थागत आत्महत्या के मामले मे न्याय की मांग के साथ पर्चे बाट रहे थे, काॅलेज के संघी उपाध्यक्ष के नेतृत्व मे 25-30 लोगों की भीड़ ने उन पर जानलेवा हमला किया था. इस मामले की प्राथमिकी (47/2016) भूपालपुरा थाने मे दर्ज हुई थी. काॅलेज के सीसी टीवी कैमरे में भी यह घटना दर्ज हुई थी. राजस्थान पुलिस ने जांच के बाद 4 लोगों के खिलाफ चालान पेश किया. पांच साल बाद भी अंतिम फैसला आना लंबित है.
पिछले कुछ दिनों से इस मामले के आरोपियों ने शिकायतकर्ता कामरेड सौरभ नरुका से इस मामले को खत्म करने का लगातार निवेदन कर रहे हैं. भाकपा(माले) व आइसा नेताओं ने उनके निवेदन को साफ-साफ ठुकराते हुए कहा कि यह प्रकरण कोई व्यक्तिगत नहीं है बल्कि राजनीतिक चरित्र का है. मनुवाद के खिलाफ और सामाजिक समानता के अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे रोहित वेमुला को न्याय दिलाने और जेएनयू जैसी प्रगतिशील विश्वविद्यालय पर सोची-समझी नीति के तहत भाजपा सरकार द्वारा किये गए हमले के प्रतिकार से जुड़ा है, इसलिए इस मामले में आरोपियों से किसी तरह के समझौते का सवाल नहीं उठता है.
उन्होंने कहा है कि आइसा कार्यकर्ताओं पर किया गया हमला अभिव्यक्ति की आजादी व संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है जबकि फासीवादी ताकतों के द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा भीड़तंत्र देश के लोकतंत्र के लिए खतरा है. न्याय के लिए संघर्ष जारी रहेगा ताकि विश्वविद्यालयों में बाहुबल, गुंडागर्दी और भीड़तंत्र के द्वारा राजनीति करने की कोशिशों को करारा जवाब मिल सके.