मशहूर फिल्म निर्माता-निर्देशक, पटकथा और संवाद लेखक, नाटककार और उर्दू कहानीकार सागर सरहदी का पिछले रविवार 21 मार्च 2021 को आधी रात से ठीक पहले मुंबई में निधन हो गया. सागर सरहदी खुद को तरक्कीपसंद मार्क्सवादी विचारधारा से जोड़ते थे. प्रगतिशील लेखक संघ और इप्टा के सुनहरे दौर में वे उनके सदस्य बने थे. जीवन के आखिरी वर्षों में वे क्रांतिकारी वामपंथी आंदोलन के हमदर्दों में गिने जाते थे. उन्होंने जन संस्कृति मंच के एक राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन भी किया था. उनकी फिल्म ‘बाजार’ एक क्लासिक फिल्म मानी जाती है और नाटक ‘भगतसिंह की वापसी’ उनके वैचारिक मकसद की बानगी है.
सागर सरहदी का वास्तविक नाम गंगासागर तलवार था. उनका जन्म 11 मई 1933 को पाकिस्तान के एटबाबाद के पास बफा गांव में हुआ था. विभाजन की त्रासदी को झेलते हुए उनका परिवार भारत पहुंचा था. वे ताउम्र इसके असर में रहे और विभाजनकारी ताकतों की खिलाफत करते रहे.
वे उर्दू के मशहूर कहानीकार और नाटककार थे. उनकी उर्दू कहानियों का संग्रह हिंदी में ‘जीव जानवर’ शीर्षक से प्रकाशित है. एक दर्शक के बतौर फिल्मों के प्रति जबर्दस्त दीवानगी फिल्मों से उनके जुड़ाव की वजह बनी. पहली बार एक संवाद लेखक के रूप में उन्होंने बासु चटर्जी की फिल्म ‘अनुभव’ के संवाद लिखे. जब ‘कभी-कभी’ फिल्म में काम मिला, तब उनकी आर्थिक स्थिति कुछ सुधरी. लेकिन उन्होंने अपने जीवन में पुस्तकों के अध्ययन, सामान्य लोगों की तरह जीने और उनके जीवन के करीब होने को हमेशा अहमियत दी. फिल्में बनाईं, मगर व्यवसाय को अहमियत नहीं दी जबकि यथार्थवादी परंपरा को समृद्ध करने वाली उनकी फिल्म ‘बाजार’ व्यावसायिक दृष्टि से भी काफी सफल रही. अपनी समझ के अनुरूप सार्थक फिल्में लिखना और बनाना उन्होंने नही छोड़ा. दूसरा आदमी, लोरी, कोहबर, चौसर उनकी ऐसी ही फिल्में हैं.
सागर सरहदी अपने को जन्मजात नाटककार मानते थे. ‘भगत सिंह की वापसी’, ‘तन्हाई’ और ‘राजदरबार’ उनके चर्चित नाटक हैं. विभाजन की पीड़ा पर उनकी कहानी ‘राखा’ पर ‘नूरी’ जैसी लोकप्रिय फिल्म बनी थी.