29 दिसंबर के किसानों के राजभवन मार्च पर भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी के बयान पर पलटवार करते हुए भाकपा(माले) राज्य सचिव का. कुणाल ने कहा कि कल के राजभवन मार्च में शामिल दसियों हजार किसान सुशील मोदी को किसान नहीं दिखते, क्योंकि भाजपा व पूरा संघ गिरोह तो अब खेत-खेती व किसानी काॅरपोरेट घरानों के हवाले कर देना चाहती है. भाजपा के लिए अब खेतों में काम करने वाले लोग किसान नहीं हैं, बल्कि दुनिया के अमीरों में शुमार अंबानी-अडानी ही किसान हैं और वे उनके लिए सारी संवैधानिक नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि दरअसल कल के राजभवन मार्च से भाजपा के इस झूठ की पोल खुल गई कि बिहार में कृषि विरोधी तीनों कानूनों के खिलाफ कोई आंदोलन है ही नहीं. कल दसियों हजार किसानों ने पटना में जुटकर इस बात का ऐलान कर दिया कि आज पंजाब के बड़े फार्मरों से लेकर बिहार के छोटे-मझोले-बटाईदार यानि सब प्रकार के किसान इन तीनों काले कानूनों के खिलाफ एकजुट हो चुके हैं. भाजपा नेताओं का झूठ बेनकाब हो चुका है
अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव व एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप के सदस्य का. राजाराम सिंह ने नीतीश सरकार से मांग की कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों-बटाईदारों के फसलों की सरकारी खरीद की जाए एवं बिहार सरकार केंद्र के तीनों किसान विरोधी कृषि कानूनों से बिहार के किसानों को राहत देने के लिए बिहार विधान सभा में कृषि अध्यादेश पारित करे. उन्होंने प्रदर्शनकारी किसान नेताओं-कार्यकर्ताओं पर से झूठे मुकदमों को हटाने की मांग की. कहा कि किसान महासभा के नेता व घोषी के विधायक रामबली सिंह यादव राज्यपाल से मिलनेवाले संयुक्त शिष्टमंडल में थे, लेकिन उनपर और ऐसे ही अन्य नेताओं व कार्यकर्ताओं पर फर्जी मुकदमे थोप दिए गए हैं.
उन्होंने किसान आंदोलन को बदनाम करने वाले भाजपा नेता सुशील मोदी के बयान की कड़े शब्दों में निंदा की है. मोदी का बयान असल में उनकी काॅरपोरेटपरस्ती और भाजपा की हताशा व डर को प्रदर्शित करता है कि कहीं बिहार का किसान भी कृषि मजदूरों की तरह संघर्ष करने वाली ताकतों के साथ न चल जाए.