वर्ष - 29
अंक - 42
10-10-2020


जातिगत क्रूर अत्याचार पर ऐपवा का बयान

एक 19 साल की दलित लड़की के साथ वर्चस्वशाली ठाकुर जाति के चार व्यक्तियों ने सामुहिक बलात्कार किया, जिससे बुरी तरह से घायल लड़की ने 30 सितंबर को दम तोड़ दिया. उस लड़की ने अपने बयान में कहा है कि संदीप, रवि, लवकुश, रामू ने उस पर हमला कर गला घोंट कर मारने का प्रयास किया – जिससे उसकी जीभ बुरी तरह से कट गयी और रीढ़ की हड्डी में प्रफैक्चर हो गया.

मीडिया और सोशल मीडिया में पीड़िता पर हुए भयावह शारीरिक अत्याचार पर बात की जा रही है, पर यह बात नहीं की जा रही है कि किस तरह से पीड़िता और उसके परिजनों व समुदाय के लोगों पर यूपी पुलिस-प्रशासन ने योगी-मोदी के शासनकाल काल में शह पाये जातीय श्रेष्ठता के दंभ से चूर प्रभुत्वशाली मनुवादी ताकतों से सांठगांठ कर कदम-कदम पर जुल्म ढाये.

हाथरस  पुलिस स्टेशन के फर्श पर दर्द से पीड़िता कराहती रही, पर उसका तुरंत मेडिकल जांच नहीं करवाया गया. उल्टे, पुलिस ने यह दावा किया कि वह आरोपियों को ‘फंसाने’ के लिए दर्द का बहाना बना रही है.

लगभग एक सप्ताह तक पीड़िता को पर्याप्त चिकित्सा से वंचित रखा गया

पीड़िता और उसके परिवार को मौत और गम की इस घड़ी में अंतिम संस्कार करने के अधिकार से भी वंचित कर देना मानवीय गरिमा को कलंकित करने वाला है. हाथरस पुलिस और जिला प्रशासन ने हताश पीड़ित परिवार की अपील को खारिज कर दिया कि उन्हें अंतिम में एक बार अपनी बेटी की लाश को घर ले जाने की अनुमति दी जाए ताकि अपने समुदाय के रीति-रिवाज से अंतिम रस्म निभाई जा सके. पर, पुलिस अधिकारियों ने परिवार को कहा कि जो उनके रीति-रिवाज थे, वे बदल गए हैं व अब समुदाय में प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुरूप दाह-संस्कार किया जाएगा. फिर पीड़िता के परिवार को अपने ही घर में पुलिस-प्रशासन ने अवैध रूप से बन्दी बना कर आनन-फानन में लड़की की लाश को जला कर अंतिम संस्कार कर दिया. यूपी सरकार और उसकी मशीनरी द्वारा एक दलित परिवार को अपनी बेटी के अंतिम रस्म-अदायगी के अधिकार से भी वंचित कर देने से जातीय श्रेष्ठता के मनुवादी राज की बू आती है.

अपराधियों की जाति और जातीय (द्विज) श्रेष्ठता की मनुवादी विचारधारा साझा करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इस मामले पर पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं. उन्होंने एक सहकर्मी के पिता के निधन पर शोक व्यक्त कर कहा कि ‘पिता के गुजर जाने का दुःख असाध्य है’. लेकिन ठाकुर मुख्यमंत्री ठाकुर पुरुषों द्वारा दलित लड़की की क्रूरतापूर्वक हत्या कर दिए जाने पर उस परिवार के अकल्पनीय दुख के प्रति संवेदना के दो शब्द कहने से भी सावधानी पूर्वक बच रहे हैं.

प्रधानमंत्री भी पूरे शर्मनाक प्रकरण पर चुप हैं

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने हाल ही में एक ‘दुराचारी’ योजना की घोषणा की है जिसके तहत बलात्कार के आरोपी व्यक्तियों की तस्वीरों को पूरे यूपी में सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाएगा. यह सर्वविदित है कि पूरे भारत में बलात्कार की लगभग आधी शिकायतें लड़की के माता-पिता द्वारा मर्जी के खिलाफ अंतरजातीय/अंतर-सामुदायिक रिश्ता बनाने पर दर्ज करवा कर इसका अपराधीकरण किया जाता है. इसलिए यह योजना दलित, ओबीसी और उन मुस्लिम पुरुषों को अपमानित और कलंकित करने का एक बहाना होगी जो उच्च और वर्चस्वशाली (द्विज) जातियों की महिलाओं के साथ रिश्ता रखते हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध को रोकना तो दूर, यह योजना वास्तव में महिलाओं की स्वायत्तता और उनके अपनी मर्जी से साथी चुनने के अधिकार के खिलाफ है.

अनुसूचित जातियों पर 2009 और 2018 के बीच पीओए अधिनियम के तहत अपराध के 51,824 मामले दर्ज हुए, उत्तर प्रदेश कुल अपराधों के 22.38% के साथ इस श्रेणी में पहले स्थान पर है. अनुसूचित जातियों के सदस्यों के खिलाफ किए गए सभी अपराधों में से सबसे अधिक दलित महिलाओं के खिलाफ हैं – यह 2016 में नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो का अभी तक का नवीनतम अधिकारिक आंकड़ा है. हाल के महीनों में, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में महिलाओं, बच्चों और दलित महिलाओं पर यौन उत्पीड़न के घटनाओं की बाढ़ आ गयी है. यह कोई रहस्य नहीं है कि यूपी में योगी राज ने जातीय श्रेष्ठता का वर्चस्व स्थापित करने वाली मनुवादी ताकतों की विचारधारा को प्रश्रय देकर उन्हें दलित जातियों के प्रति अपराध करने के लिए उकसाया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस बात को 2009 में एक कुख्यात लेख में विधानसभाओं व संसद में महिलाओं के आरक्षण का विरोध करते हुए मनुस्मृति को उद्धृत करते हुए कहा था कि महिलाओं को हमेशा पुरुषों के अधीन होना चाहिये.

हाथरस पीड़िता के लिए न्याय की मांग है कि बलात्कारियों को सजा दी जाए.  हम यह भी मांग करते हैं कि पीड़िता के  माता-पिता और परिवार की अनुमति व उपस्थिति के बगैर उन्हें अवैध रूप से घर में बन्दी बना कर आधी रात में गुप्त तरीके से लड़की की लाश को जलाने वाले पुलिस-प्रसाशन के वरीय अधिकारियों पर जाति-अत्याचार अधिनियम (पीओए एक्ट) के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए व अविलंब गिरफ्तार किया जाए.

आज उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा हिरासत में हत्या (फर्जी मुठभेड़) एक बदनाम दस्तूर बन गया है. ऐसे में हम चेतावनी देते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस इस घटना के खिलाफ हो रहे प्रतिरोध आंदोलन को दबाने और फर्जी मुठभेड़ में अपराधियों को खत्म कर  इस अपराध में अपनी संलिप्तता को छुपाने की कोशिश न करे.

ऐपवा पीड़ित परिवार को न्याय और समर्थन दिलाने हेतु हरसंभव प्रयास करेगी. ऐपवा उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार से न्याय देने और पूरी जवाबदेही की मांग करती है.

ऐपवा राष्ट्रीय कार्यकारिणी द्वारा जारी