वर्ष - 29
अंक - 36
22-08-2020

आइसा की इलाहाबाद इकाई ने 12 अगस्त 2020 को ‘नई शिक्षा नीति 2020’ के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतिरोध दिवस के तहत लाॅकडाउन व कोरोना संक्रमण के दौर में 171, कर्नलगंज स्थित इलाहाबाद जिला कार्यालय पर पोस्टर व तख्तियों पर नारे के साथ प्रतिरोध किया. इस मौके पर 12 अगस्त 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन व रैली निकालते वक्त ब्रिटिश पुलिस की गोली से शहीद हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र शहीद लाल पद्मधर को भी याद किया गया.

आइसा के राज्य अध्यक्ष शैलेश पासवान ने शहीद लाल पद्मधर को याद करते हुए कहा कि सत्ता को हमेशा आंदोलनकारी छात्र-युवाओं से खतरा रहा है और आज की मोदी सरकार भी अंग्रेजों के रास्ते पर चलते हुए देश बेचने का काम कर रही है. मोदी सरकार शिक्षा का भगवाकरण करने के अवसर के रूप में लाॅकडाउन का दुरुपयोग कर रही है और रोज-ब-रोज लोकतंत्रविरोधी, जनविरोधी नीतियां ला रही है. नई शिक्षा नीति भी इसी का हिस्सा है. नई शिक्षा नीति 2020 के तहत 10वीं बोर्ड को खत्म करके 9वीं क्लास से 12वीं तक 4 साल तक एक ही स्कूल में बच्चों को पढ़ने के लिए मजबूर कर दिया गया है और साथ ही, एमपिल खत्म कर शोध की गुणवत्ता को नष्ट किया जाएगा.

3 वर्ष के स्नातक कोर्स को 4 साल का कर दिया गया है जिसमें 1 साल पर सर्टिफिकेट, दो साल पर डिप्लोमा और 4 साल पर डिग्री का प्रावधान है. यह प्रावधान छात्रों को उच्च शिक्षा की पढ़ाई बीच में ही छोड़ने को प्रेरित करता है और दो वर्ष के परास्नातक कोर्स को एक वर्ष करके शिक्षा की गुणवत्ता को नष्ट करता है.

सरकार ‘नई शिक्षा नीति 2020’ के तहत बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने की जिम्मेदारी से अपना पीछा छुड़ा रही है और इसका बोझ वह अभिभावकों के कंधों पर ही थोप रही है. प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) नीति के तहत सरकार अब सरकारी स्कूल-काॅलेजों व विश्वविद्यालयों को पूंजीपतियों के हाथ में आसानी से बेच सकेगी. इससे शिक्षा का बाजारीकरण का धंधा तेज होगा और अभिभावकों का शोषण होगा. साथ ही साथ, यह नीति शिक्षा में सामाजिक न्याय के लिए संविधान प्रदत्त आरक्षण के अधिकार को खत्म करती है. ‘नई शिक्षा नीति 2020’ सम्मानजक, सुरक्षित व नियमित रोजगार के अवसर की संभावना को मिटा देती है.

नई शिक्षा नीति 2020 विश्व व्यापार संगठन के साथ समझौते, यानी सस्ते मजदूर उत्पादन के एजेंडे, को आगे बढ़ाती है. प्रगतिशील, तार्किक, वैज्ञानिक सोच और बुद्धिजीवी छात्रों के बजाय सस्ते मजदूर उत्पादन करने के लिए शिक्षण संस्थानों को फैक्ट्री बनाने की दिशा में यह नीति लायी गयी है.

आइसा राज्य अध्यक्ष ने आगे बताया कि एमएचआरडी के बदले शिक्षा मंत्रालय बनाकर शिक्षण संस्थाओं को अधिकार देने के विकेंद्रीकरण की नीति के बजाय उन संस्थाओं के अधिकार सीमित किये जा रहे हैं. यूजीसी को खत्म करके ‘हायर एजुकेशन कमिशन ऑप इंडिया’ बनाया जा रहा है जो कि विश्वविद्यालयों को यूजीसी की तरह अनुदान नहीं देगा. यह शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता की आड़ में छात्रों से महंगी फीस वसूली कर शोषण करने का अधिकार देगा.

ठीक इसी तरह हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी का गठन सिर्फ टाॅप 10 शिक्षण संस्थानों को वित्तपोषित करने के नाम पर लोन देने के लिए किया गया है. इससे विश्वविद्यालयों में कोर्सेज महंगे होंगें और पहले से उच्च शिक्षा से वंचित हाशिये के समाज के छात्रों को वहां तक पहुंचने से रोक दिया जाएगा. विशेषकर आदिवासी, दलित व मुस्लिम समुदाय को शिक्षा की पहुंच से और दूर किया जा रहा है और उन्हें क्षेत्रीय सांस्कृतिक परम्परागत कर्म को बढ़ावा देने के लिए ‘स्किल (कुशल)’ शब्द के कुटिल चाल में पुरानी गुलामी में धकेलने की योजना है.

कुल मिलाकर यह नई शिक्षा नीति आने वाली छात्र पीढ़ियों को बहिष्करण, शोषण और शिक्षा के बाजारीकरण की जाल में फंसाने की नीति है. आइसा ऐसी हर जनविरोधी, शिक्षाविरोधी नीति के खिलाप मजबूती से आंदोलन खड़ा करेगा. आइसा ‘समान शिक्षा प्रणाली’ लागू कराने के लिए प्रतिबद्ध है. इस प्रतिरोध प्रदर्शन में प्रदीप ओबामा, शक्ति रजवार व अनिरुद्ध समेत अन्य कई छात्र शामिल रहे.

– अनिरुद्ध शर्मा