वर्ष - 29
अंक - 30
24-07-2020
 

[ विगत 18 जुलाई 2020 को भाकपा(माले) के महासचिव कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य ने मुख्यतः विहार के पार्टी कार्यकर्ताओं एवं सदस्यों के उद्देश्य से एक वीडियो संदेश दिया. इस सम्बोधन में उन्होंने मुख्य तौर पर बिहार के चुनाव में हमारी तैयारियां, चुनाव में जनता की व्यापक व समान भागीदारी के लिये चुनाव आयोग पर दबाव, डिजिटल कैंपेन व स्मार्टफोन से चुनाव पर रोक, कम मतदाताओं पर अलग-अलग बूथों का निर्माण तथा आगामी 9 अगस्त एवं 13 अगस्त को होने वाले कार्यक्रमों की घोषणा की. यहां उनके सम्बोधन के प्रमुख बिंदुओं को दिया जा रहा है.]

 

चुनाव आयोग को 9 विपक्षी दलों की ओर से 17 जुलाई को ज्ञापन दिया गया. हमारे ज्ञापन की मुख्य बातें थीं – चुनाव आयोग चुनाव के बारे जो संकेत दे रहा है और बिहार में जो कोविड की स्थिति है, उसमें चुनाव में लोगों की भागीदारी कम हो जाएगी. चुनाव की सार्थकता की पहली शर्त है उसमें व्यापक जनभागीदारी हो. बिहार में अक्टूबर-नवंबर में कोविड संक्रमितों की संख्या भयावह स्थिति में पहुंचने की संभावना है. ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग चुनाव में जनता की व्यापक भागीदारी का भरोसा सबको दिलाए.

कोविड संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए चुनाव आयोग का कहना है कि 1000 मतदाताओं पर बूथ का गठन किया जाएगा. लेकिन यह संख्या भी कोई कम नहीं है. हमने मांग उठाई कि 250 मतदाताओं पर एक बूथ का निर्माण हो ताकि सही अर्थों में फिजिकल डिस्टेंसिंग मेंटेन हो सकेे. चुनाव अपने आप में कोविड फैलाने का माध्यम न बन जाए. लोगों को आयोग आश्वस्त करे.

65 वर्ष के लोगों के लिए पोस्टल बैलेट के प्रावधान को रद्द करने की मांग की गई. यह सही नहीं होगा, इससे चुनाव की गुप्त प्रणाली का उल्लंघन होगा. फिलहाल चुनाव आयोग ने इसे स्थगित कर दिया है.

डिजिटल कंपेन की ओर जो इशारा किया गया है, वह बिहार जैसे प्रदेशों में जहां अभी भी स्मार्टफोन व इंटरनेट का प्रतिशत काफी कम है, भला कैसे संभव होगा? जिन पार्टियों के पास बहुत संसाधन है, खासकर भाजपा जिसे कोविड व जनता की समस्या से कोई लेना-देना नहीं है और वे चुनाव प्रचार में लग भी गई हैं, एलईडी का इंतजाम भी कर लिया है, तरह-तरह के बाॅन्ड का इस्तेमाल करती है, जाहिर सी बात है उसी के लिए यह चुनाव मुफीद साबित होगा. कोरोना पीड़ितों के लिए पीएम केयर फंड में पैसा जमा हुआ, लेकिन हमें नहीं पता यह पैसा कहां जा रहा है? क्या इसका इस्तेमाल भी भाजपा चुनाव में ही करेगी? एक तरफ मनी पावर का खेल होगा, तो दूसरी ओर जनबल पर चलने वाली हमारी जैसी पार्टियों के लिए चुनाव काफी मुश्किल हो जाएगा.

बिहार में वैसे ही मतदान प्रतिशत काफी कम होता है. बिहार वह प्रदेश है जहां 1980 तक भूमिहीन-दलित गरीब मतदाता वोट नहीं कर सकते थे. उन्होंने काफी संघर्ष करके यह हक हासिल किया है. डिजिटल चुनाव इस पर प्रभाव डाल सकता है और पूरे चुनाव को मजाक में तब्दील कर दे सकता है.

हमारी पहलकदमी की मांग पर चुनाव आयोग ने राय मांगी है. लेकिन चुनाव आयोग ने सिर्फ मान्यताप्राप्त राजनीतिक दलों से राय मांगी है. अभी सभी पार्टियों, सिविल सोसाइटी व आम लोगों से भी राय लेने की जरूरत है. कोविड के दौर में बिहार में यह पहला चुनाव होगा. इसलिए इसकी गारंटी करनी होगी कि वह महज औपचारिक बनकर न रह जाए.

नीतीश जी व सुशील मोदी जी, जिन्हें कोविड से कोई परेशानी नही हैं, वर्चुअल रैलियों में लग गए हैं. आज बिहार में आम लोगों की बात छोड़ दीजिए, बडे़ लोगों का इलाज नहीं हो रहा है. भाजपा दफ्तर में कोविड संक्रमण हुआ, सीएम आवास संक्रमित हुआ. फिर भी इन लोगों को केवल कुर्सी की चिंता है. आम लोगों को इन्होंने मरने-खपने के लिए छोड़ दिया है.

भाकपा - माले महासचिव कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य Comrade Dipankar

Posted by Communist Party of India -Marxist Leninist- Liberation CPIML on Saturday, 18 July 2020

 

डिजिटल तरीके का विरोध करने पर भाजपा-जदयू कह रहीं है कि विपक्षी की पार्टियां डरी हुई हैं. हम उन्हें आश्वस्त कर देना चाहते हैं कि वे मुगालते में न रहें. बिहार की जनता तो इस नाकारा सरकार से अविलंब छुटकारा चाह रही है और वह जल्द से जल्द चुनाव चाहती है. बिहार में जो पिछला चुनाव हुआ था, यदि नीतीश जी एनडीए में रहते तो बिलकुल हार गए होते. चुनाव जीतकर उन्होंने बिहार की जनता को धोखा दिया. वे फिर से भाजपा की गोद में चले गए. जनादेश व लोकतंत्र के साथ विश्वासघात किया. यह चुनाव इन गद्दारों को सबक सिखाने का मौका है.

लाॅकडाउन ने पूरे देश को संकट में डाला है, लेकिन सबसे ज्यादा बिहार को पीड़ा पहुंची है. हजारों किलोमीटर चलते हुए जो प्रवासी मजदूर बिहार पहुंचे, उनकी पीड़ा से सरकार को कोई मतलब नहीं है. प्रवासी मजदूरों ने जो पीड़ा झेली वह पूरे बिहार की पीड़ा है. इसका कोई जवाब नहीं है, इन लोगों के पास क्योंकि वे खुद पीड़ा पहुंचाने वाले हैं.

इस पीड़ा पर पर्दा डालने के लिए ये लोग बिहार रेजीमेंट की बात करते हैं. लेकिन मोदी जी ने खुद कह दिया कि किसी तरह की घुसपैठ नहीं हुई, तब चीन के साथ झड़प क्यों हुई, 20 लोग मारे क्यों गए? यदि ये लोग ये समझ रहे हैं कि बिहारी रेजीमेंट का नाम लेकर जनता के आक्रोश से बच जायेंगे, तो ऐसा नहीं होने वाला है.

चीन के साथ फिलहाल समझौता हुआ है, दोनों तरफ की सेना पीछे हट रही है. लेकिन कुल मिलाकर नुकसान भारत को ही उठाना पड़ा है. सरकार को इसका जवाब देना होगा.

पूरे बिहार में बेदखली का अभियान चल रहा है. हरियाली के नाम पर बेदखली हो रही है. यह नीतीश जी ने दिखलाया कि कैसे हरियाली के नाम पर भी गरीबों को उजाड़ा जा सकता है. बिहार में बेदखली है और लोगों को कश्मीर व 370 दिखाया जा रहा है. दरभंगा के किसी अधिकारी को डोमिसाइल का सर्टिफिकेट मिला है. इसे लेकर कश्मीर की जनता में काफी विरोध है. जनता को आप भ्रम में नहीं डाल सकते, बिहार के लोगों को यह जवाब देना होगा कि बड़े पैमाने पर भूमिहीनता क्यों है? भूमि आयोग की सिफारिश लागू होने से सभी को जमीन मिल सकती थी, लेकिन नीतीश सरकार ने ऐसा नहीं किया. कश्मीर की जमीन दिखलाकर जनता को गुमराह नहीं कर सकते.

आज 15 (वर्ष) बनाम 15 (वर्ष) की चर्चा हो रही है. लालू जी का आखिरी दौर बिहार को बिलकुल परेशान करने वाला था. आज नीतीश जी के इस आखिरी पड़ाव में बिहार उससे भी बुरी स्थिति में पहुंच गया है. जनता इंतजार कर रही है कि इस सरकार से कैसे छुटकारा मिले.

लोगों को न्याय के नाम पर अन्याय मिला. बिहार में अपराधियों का तांडव है. लगातार हत्याएं हो रही हैं, जनसंहार हो रहे हैं, बलात्कार हो रहे हैं, हमारी बेटियों के साथ अन्याय हो रहा है. विकास का मतलब संगठित भ्रष्टाचार हो गया है. इसका ताजा उदाहरण सतर घाट पुल है, जिसमें बेशर्मी से सरकार कह रही है कि उसमें तो केवल एप्रोच पुल टूटा है. सृजन घोटाला से लेकर हर जगह भ्रष्टाचार का बोलबाला है. इसके खिलाफ स्कीम वर्कर, ग्रामीण मजदूर, किसान, प्रवासी मजदूर, शिक्षक सभी लोग लड़ रहे हैं. महादलित, अतिपिछड़ा, विकास आदि नीतीश कुमार के सभी जुमले धराशायी हो गए हैं और आज बिहार में सामंती-अपराधी गठजोड़ का नंगा नाच चल रहा है.

चुनाव जब भी हो, बिहार की जनता ऐसी बेकार व घमंडी-जनविरोधी सरकार, जिसे कभी नहीं देखा था, पूरी तरह से सता से बाहर कर देने के लिए तैयार बैठी है.

हेल्थ सिस्टम बिहार में नहीं है. आज स्वास्थ्य में पब्लिक सेक्टर की मजबूत स्थिति की जरूरत है. हमारी मांग है कि पूरे देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी निगरानी लगानी होगी. शिक्षा व स्वास्थ्य मुनाफाखोरी के व्यवसाय नहीं हैं.

रेलवे के निजीकरण ने बड़े पैमाने पर नौकरियों को छीन लिया. जब नौकरी ही नहीं है तो यह आरक्षण पर भी हमला है.

9 अगस्त को पूरे देश में किसानों की कर्जा मुक्ति, पूरा दाम किसान विरोधी अध्यादेशों को रद्द करने, डीजल का रेट घटाने, बिजली बिल 2020 वापस लेने, मनरेगा में 200 दिन काम की गारंटी करने आदि मांगों पर 9 अगस्त को किसान मुक्ति दिवस मनाया जाएगा.

सरकार ने विगत 8 साल में बड़े लोगों का 1 लाख 23 हजार करोड़ माफ किया है. इनका 9000 करोड़ से भी कम रिकवर है. लेकिन गरीबों, किसानों, माइक्रो फायनांस संस्थाओं द्वारा गरीबों को दिए गए कर्ज सरकार माफ नहीं कर ही है. 13 अगस्त को छोटे कर्जदार अपने कर्जों की वापसी की मांग पर आवाज उठायेंगे.