वर्ष - 29
अंक - 30
24-07-2020

लगभग ढाई महीने के लाॅकडाउन के बाद केंद्र सरकार ने लाॅकडाउन को खोलने की प्रक्रिया का एलान किया. देश के अधिकांश हिस्सों की तरह दिल्ली में भी सरकारों ने ‘अनलाॅक’ की घोषणा कर दी.

लाॅकडाउन लगाने का घोषित मकसद था कोरोना वायरस के फैलाव को रोकना. बिना किसी योजना के लगाया गया यह लाॅकडाउन इस वायरस के फैलाव को रोकने में बुरी तरह नाकाम रहा, लेकिन इसने मजदूरों, गरीबों, झुग्गी-झोपड़ी वासियों और छात्रों को भारी मुसीबतों में धकेल दिया. अर्थतंत्र को चलाने वाले और आवश्यक सेवाएं प्रदान करने वाले शहरों के मजदूरों को लाॅकडाउन में गुजारे के लिए जरूरी भोजन और पैसे के अभाव में छोड़ दिया गया. छात्रों को ऑनलाइन क्लास में शामिल होने और अपने कमरे का किराया चुकाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा.

कोरोना वायरस के बढ़ते फैलाव के बीच ही केंद्र और दिल्ली की राज्य सरकारों ने ‘अनलाॅक’ की घोषणा कर दी. ऐसे ही माहौल में प्रधान मंत्री ने ‘आत्मनिर्भर’ का जुमला उछाल दिया, और दिल्ली के मुख्य मंत्री ने दिल्ली की जनता से साफसाफ कहा कि वे कोरोना के साथ जीना सीख लें. दोनों का मतलब हुआ कि आम लोगों को इस लाॅकडाउन के चलते हुई बर्बादी से खुद ही निपटना होगा.

अनलाॅक की प्रक्रिया से दिल्ली की जनता के लिए इस विनाशकारी लाॅकडाउन के असर में कोई भी फर्क नहीं पड़ा है. यहां के मजदूरों के सामने भूखमरी की स्थिति बड़े पैमाने पर बनी हुई है. दिल्ली सरकार लाॅकडाउन के दौरान शुरू की गई भोजन/राहत योजना से पांव खींचने का मन बना रही है. यहां के झुग्गी-झोपड़ी वासियों के लिए अपनी आजीविका फिर से हासिल करने की संभावना अभी जरा भी नहीं दिख रही है और वे दो जून की रोटी के लिए अभी भी जूझ रहे हैं.

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दिल्ली में कोरोना के नए मामले रोज-ब-रोज बढ़ते जा रहे हैं. हमने देखा है कि निजी अस्पतालों ने किस तरह कोरोना मरीजों के इलाज के लिए भारी फीस वसूलना शुरू कर दिया. जब निजी अस्पतालों द्वारा इस लूट का खुलासा हुआ तो सरकार ने हमें बताया कि निजी अस्पतालों में इलाज काी कीमत की हदबंदी कर दी गई है. लेकिन अगर आप इन निर्धारित कीमतों की दर देखें, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि कीमत की हदबंदी के नाम पर मजाक किया गया है. दिल्ली सरकार के साथ-साथ भारत के गृह मंत्री भी इस हदबंदी का श्रेय लेने का दावा कर रहे हैं; लेकिन दोनों में से कोई भी सरकारी अस्पतालों में बुनियादी ढांचे के घोर अभाव के मद्देनजर निजी अस्पतालों को सरकारी नियंत्रण में लेने की बात नहीं कह रहे हैं.

लाॅकडाउन के बाद मजदूरों की छंटनी और वेतन कटौतीि बेरोकटोक जारी है. मजदूर और छात्र मकानमालिकों के हाथों भारी परेशानी झेल रहे हैं, क्योंकि वे लाॅकडाउन की क्षतिपूर्ति के लिए किराया बढ़ाकर मांग रहे हैं.

जहां दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार, दोनों ने दिल्ली की जनता को इस भारी मुसीबत से निपटने के लिए अकेला छोड़ दिया है, वहीं इस राज्य के गरीब, मजदूर, झुग्गीवासी और छात्र नागरिकों को उनके बुनियादी अधिकार और जीविका के साधन मुहैया कराने की जिम्मेवारी से पीछे हट जाने के लिए इन दोनों सरकारों को जवाबदेह ठहरा रहे हैं.

30 जून को प्रधान मंत्री ने ‘प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना’ को 20 नवंबर तक बढ़ाने की घोषणा की है. इस घोषणा को सरकार के बड़े पैकेज के बतौर प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन इसका असर काफी सीमित होगा. दसियों लाख ऐसे गरीब हैं जिनके पास राशन कार्ड तक नहीं है. ऐसी कल्याण योजनाओं के लाभुक बनने के लिए राशन कार्ड की अनिवार्यता से ये दसियों लाख लोग इसके दायरे से बाहर रह जाएंगे. इसका एकमात्र समाधान है सबके लिए पीडीएस मुहैया कराना, जिसे करने में सरकार नाकाम रह गई है. लाॅकडाउन के दौरान हमने यह भी देखा कि दिल्ली सरकार की ई-राशन कार्ड योजना किस तरह विफल हो गई, क्योंकि अधिकांश गरीब लोग ई-राशन कार्ड के लिए खुद का पंजीकरण नहीं करा सके. मदद करने के बजाय इस योजना ने उन्हें और ज्यादा बाहर निकाल दिया.

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वामपंथी पार्टियों के संयुक्त आह्वान पर भाकपा(माले) कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के विभिन्न स्थानों पर शारीरिक दूरी मानदंड का अनुपालन करते हुए प्रतिवाद प्रदर्शन आयोजित किए. इस प्रतिवाद कार्यक्रम में दिल्ली के मजदूर, झुग्गीवासी, छात्र, नौजवान और महिलाएं शामिल हुए. ये प्रतिवाद प्रदर्शन वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र, नरेला, वसंत विहार, कलकाजी, नजफगढ़, कोंडली, झिलमिल काॅलोनी, जामिया, शाहदरा और जेएनयू में आयोजित किए गए.

प्रतिवादकारियों की मांगें थीं:
1. सबके लिए पीडीएस – दिल्ली सरकार उन सभी लोगों को राशन कार्ड मुहैरूा कराए जो पीडीएस के दायरे से बाहर हैं.
2. सबके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा, निजी अस्पतालों की मुनाफाखोरी पर रोक लगाओ. इसके लिए सरकार निजी अस्पतालों को अपने हाथों में ले.
3. मजदूरों की छंटनी पर रोक लगाओ.
4. छात्रों और मजदूरों के लिए मकान किराया माफ करो.
5. शहरी रोजगार गारंटी कानून लागू करो.
6. 10 हजार रुपया प्रति माह की दर से लाॅकडाउन बेरोजगारी भत्ता दो.