India flag must not fly at half mast for queen Elijabeth

नई दिल्‍ली, 10 सितम्‍बर.
आठ सितंबर को इंडिया गेट पर कर्तव्य पथ का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने "राजपथ" (अंग्रेजी में इसका नाम किंग्सवे था) नाम को गुलामी का प्रतीक बताया था. इसी तरह पिछले सप्ताह आई एन एस विक्रांत को भारतीय नौसेना में शामिल करने के समय प्रधानमंत्री ने भारतीय नौसेना के लिए नया झंडा जारी किया जिसमें अंग्रेजों के समय से चले आ रहे सेंट जॉर्ज के क्रॉस को हटा कर नया चिन्ह लगाया गया है. प्रधानमंत्री कार्यालय ने तब भी बताया कि अपने औपनिवेशिक गुलामी के प्रतीकों को मिटाने की दिशा में यह एक कदम है.

राजपथ का नाम कर्तव्य पथ किया और उसी दिन मोदी सरकार ने उपनिवेशवाद और गुलामी के प्रतीकों के विरुद्ध काम करने के अपने कर्तव्य को भूल कर " दिवंगत गणमान्य व्यक्ति के सम्मान में" भारतीय झंडे को आधा झुकाने की घोषणा कर दी. यहां दिवंगत गणमान्य व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड की रानी एलिजाबेथ द्वितीय है, जिनका पद आज भी पूरी दुनियां में औपनिवेशिक शोषण, गुलामी और लूट का प्रतीक है.

1953 में रानी बनने वाली एलिजाबेथ द्वितीय ने ब्रिटेन पर सबसे लंबे समय तक राज किया. वह औपनिवेशिक दौर की मात्र प्रतीक भर नहीं है बल्कि दुनियां में पचास व 1960 के दशकों के दौरान हुए उपनिवेशवाद विरोधी संघर्षों का ब्रिटेन बर्बरता से दमन करने की सक्रिय भागीदार है.

भारत में 1857 के क्रांतिकारियों के जनसंहार, जलियांवाला बाग नरसंहार, भगत सिंह और अनेकों क्रांतिकारियों की फांसी, भारत छोड़ो आंदोलन और स्वतंत्रता संघर्ष का बर्बर दमन, आदि ऐसे कुछ औपनिवेशिक अपराध हैं जो अंग्रेजी राज के शाही प्रतीक के नीचे किए गए. अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक ने बताया है कि 1765-1938 के बीच अंग्रेजों ने भारत से 4500,000 करोड़ डॉलर ($45 trillion) लूट लिए थे.

इसी अंग्रेजी राज को रानी एलिजाबेथ द्वितीय ने बिना कोई पश्चाताप या अपराधबोध के, या क्षतिपूर्ति की बात किए, आगे बढ़ाया. हमारा राष्ट्रीय झंडा स्वतंत्रता आंदोलन का, हमारे राष्ट्र का प्रतीक है. हम इसे उपनिवेशवाद के केंद्र के सम्मान में कैसे झुका सकते हैं?

भारत ने खुद को ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल से मुक्त लिया, लेकिन दुनिया भर के कई देशों को महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के शासन को लागू करने वाली ब्रिटिश सेना के हाथों हिंसा और नरसंहार का सामना करते हुए अगले पांच दशकों तक संघर्ष जारी रखना पड़ा. उनके ही शासन में 1950 के दशक के दौरान केन्या में मऊ मऊ स्वतंत्रता आंदोलन का क्रूर दमन हुआ जिसमें हजारों लोगों का नरसंहार हुआ. लगभग 20,000 से अधिक लोगों को मार डाला गया और ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों द्वारा बड़ी संख्या में लोगों को कंसन्‍ट्रेशन कैम्‍पों में भेज दिया गया. इन शिविरों में बलात्कार और भीषण यातना से बचे लोग आज भी न्याय की मांग कर रहे हैं.

रानी को आधुनिक ब्रिटेन के ‘चट्टान’ के रूप में चित्रित करके इनके औपनिवेशिक अपराधों को छिपाने और उन अपराधों से उनको अलग करने के लगातार प्रयास होते रहे हैं, लेकिन ब्रिटिश राजशाही के सिंहासन पर मौजूद खून (इस पर चाहे कोई भी बैठे) को धोया नहीं जा सकता, यह दुनिया में सैकड़ों वर्षों के औपनिवेशिक अत्याचारों का प्रतिनिधित्व करता है.

आज हम स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ (‘आजादी का अमृत महोत्सव’) मना रहे हैं जो उपनिवेशवाद के खिलाफ गौरवशाली स्वतंत्रता संग्राम के सम्मान में है. ऐसे समय में रानी के सम्मान में राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुकाने का आदेश हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का अपमान होगा जिन्होंने औपनिवेशिक बंधनों को तोड़ने के लिए अपनी जान की बाजी लगाई. ऐसा करके मोदी सरकार खुद को एक बार फिर औपनिवेशिक शासकों के वफादार उत्तराधिकारी के बतौर पेश कर रही है, जिन्‍हें भगत सिंह ने ‘भूरे साहब’ या ‘भूरे अंग्रेज’ बताते हुए भारत की जनता को सावधान किया था.

 

-भाकपा(माले) केन्‍द्रीय कमेटी