वर्ष - 28
अंक - 39
14-09-2019
(प्रस्तावित जलाशय क्षेत्र का दौरा कर लौटे किसान नेताओं के टीम की रिपोर्ट)

बिहार की सोन नहर प्रणाली दुनिया की बहुत ही पुरानी नहर प्रणालियों में से एक है. इसको अंग्रेजों ने किसानों के अंदर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लगातार बढ़ रहे आक्रोश व विद्रोह की भावना को दबाने की नीयत से बनाया था. 1850 के बाद से ही अंग्रेजों के खिलाफ किसानों का आंदोलन फूटना शुरू हो चुका था जिसकी परिणति 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के रूप में हुआ था. 1853 ई. में कर्नल डी.एच.डेकेन्स ने सोन नदी पर इंद्रपुरी बराज बनाने और सोन नहरों के निर्माण की अनुशंसा करते हुए कहा था कि इससे किसानों के भीतर अंग्रेजों के खिलाफ बढ़ रहे असंतोष को दूर किया जा सकता है. इसी परिप्रेक्ष्य में  तत्कालीन भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल ने 1855 में कर्नल डी.एच.डेकेन्स के प्रस्ताव को पास कर दिया. 1861 ई. में सर्वेक्षण कार्य पूरा हुआ और 1868 ई. में सोन नहर प्रणाली बनाने का कार्य प्रारंभ हुआ. 1872 में अंग्रेजों ने डिहरी आन सोन में इंद्रपुरी बराज व सोन नहर प्रणाली का निर्माण शुरू करवाया. 1877 ई. में सोन नहर में पानी छोड़ा गया. इस नहर प्रणाली से आज के बिहार के आठ जिलों- भोजपुर, रोहतास, कैमूर, बक्सर, औरंगाबाद, अरवल, गया और पटना - की 9.96 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होती है.

अपनी ऐतिहासिकता के बावजूद सोन नहर प्रणाली भारतीय शासकों के लिए कोई मायने नहीं रखती. यह आज भीे आधुनिकीकरण की वाट जोह रही है. आजाद भारत में सोन नदी पर बाणसागर और रिहंद जलाशय बने. इन जलाशयों से समझौते के अनुरूप पानी न मिलना भी बिहार के सोन नहरों में जल संकट का बड़ा कारण है. समझौते के मुताबिक बाणसागर जलाशय से एक चौथाई और रिहंद जलाश्य से आधा पानी बिहार को मिलना है. इसके बदले में बिहार सरकार इन जलाशयों के मेंटनेंस का खर्च भी वहन करती है. उत्तर प्रदेश सरकार बिहार के हिस्से का पानी पनबिजली परियोजना पर खर्च करती है. इस वजह से इंद्रपुरी जलाशय को पर्याप्त पानी नही मिल पाता है.

1985 से 1990 के बीच कुछ किसान नेताओं व संगठनों ने सोन नहरों के आधुनिकीकरण और विकास के लिए डैम बनाने का सवाल उठाया. तब बिहार की तत्कालीन कांगेसी सरकार के मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने 1990 में कदवन (वर्तमान झारखंडद्ध डैम का शिलान्यास किया था. परवर्ती राजद और जदयू-भाजपा की सरकारों ने जिनके नेता अपने को किसानों के शुभचिंतक भी कहते रहे हैं, डैम निर्माण की दिशा में कुछ भी नहीं किया. नीतीश कुमार सरकार ने दो-दो बार राज्य का कृषि रोड मैप जारी किया. लेकिन उसमें कदवन डैम और सोन नहरो के लिए कुछ भी नहीं था. हां, सोन नहर प्रणाली से ही नवीनगर के दो थर्मल पावर प्रोेजेक्ट को दो लाख गैलन पानी डायवर्ट जरूर किया जाने लगा. इस बीच मध्य प्रदेश में और उत्तर प्रदेश में सोन नदी पर नए डैम बन जाने की वजह से सोन नहर प्रणाली के लिए घनघोर जल संकट पैदा हो गया. डैम के अभाव में पानी संचयन नहीं होने के कारण सोन नदी बिहार में सिर्फ बरसाती नदी बनकर रह गयी है.

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पिछले दिनों अखिल भारतीय किसान महासभा ने कदवन डैम निर्माण के लिए किसानों के गोलबंद करने और संघर्ष के जरिए डैम निर्माण का रास्ता तैयार करने के प्रयास शुरू किये हैं. सबसे पहले इस नहर प्रणाली से सींचित होने वाले आठ जिलों के किसान नेताओं की एक बैठक 10 अगस्त को भोजपुर जिला के जगदीशपुर में आयोजित कर आंदोलन की रूपरेखा तैयार की गई. आंदोलन के प्रथम चरण में 27 से 30 अगस्त 2019 को सभी प्रखंड मुख्यालयों पर किसानों का धरना आयोजित कर प्रखंड विकास पदाधिकारियों को मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपा गया. इस दौरान ग्रामीण सभाएं और पर्चा वितरण का कार्य भी चलता रहा.

आंदोलन के दूसरे चरण में डैम के लिए प्रस्तावित स्थल का निरीक्षण करने की योजना थी. इसके तहत 7 सितंबर 2019 की सुबह सोन नहर प्रणाली के प्रभाव क्षेत्र के आठों जिलों से 55 किसान नेता व कार्यकर्ता डेहरीआनसोन (रोहतास) स्थित भाकपा(माले) कार्यालय पर जमा हुए. डैम स्थल निरीक्षण यात्रा का नेतृत्व कर रहे अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव का. राजाराम सिंह ने वहां एक प्रेस कंफ्रेंस को संबोधित कर कहा कि देश और प्रदेश की सरकारें केवल मजदूरों के ही विरोधी नहीं है. बल्कि उन तमाम छोटे-मंझोले किसानों के मुद्दे पर भी संवेदनहीन हैं जो खेती-किसानी पर निर्भर हैं. शाहाबाद और मगध क्षेत्र के तमाम जिलों के किसानों को सूखे का डर सताने लगा है. कई इलाकों में पानी के अभाव में रोपनी कार्य नहीं हो सकी है. जलाशय के अभाव में गत वर्ष सोन नदी से 11 लाख क्यूसेक पानी बहा दिया गया. साथ ही 4500 मेगावाट बिजली उत्पादन करने वाली नवीनगर के दोनों थर्मल पावर ईकाइयों को भी लाखों गैलन पानी सोन नदी से ही चाहिए. नतीजतन, यह पूरा क्षेत्र सिंचाई के लिए नहरों में पानी के अभाव से ही नहीं बल्कि पीने के पानी के संकट से भी जूझ रहा है. इंद्रपूरी जलाशय (डैम) का निर्माण कार्य डबल इंजन की सरकार की उपेक्षा झेल रही है. सरकार समय-समय पर केवल आश्वासन परोसती रहती है. अखिल भारतीय किसान महासभा जलाशय निर्माण के लिए लड़ाई लड़ेगी.

इसके बाद किसान नेताओं से भरे हुए 9 गाड़ियों का काफिला डेहरीआनसोन से 100 किमी तथा इंद्रपुरी बराज से 80 किमी दूर रोहतास जिला के नौहट्टा प्रखंड, जहां चुटिया बाजार से आगे मटियांव गांव अवस्थित है, के लिए चला. मटियांव में ही बांध बनाकर डैम निर्माण की योजना प्रस्तावित है. इस रास्ते में कल्याणपुर में बंजारी सीमेंट फैक्टरी के मजदूरों ने का. अनिल सिंह के नेतृत्व में किसानों के इस काफिले का फुल-मालाओं से स्वागत किया. चाय-नास्ते के बाद काफिला आगे बढ़ा. चुटिया बाजार के किसान विनोद सिंह ने काफिले में शामिल किसान नेताओं को दोपहर का भोजन कराया और किसान काफिले में शामिल हुए. किसान काफिला जब मटियांव गांव में पहुंचा तो वहां पहले से ही स्थानीय प्रशासन के लोग व ग्रामीण इकट्ठा थे. मटियांव गांव रोहतास जिला के नौहट्टा प्रखंड के यदुनाथपुर पंचायत में है. जो उत्तर प्रदेश और झारखंड के सीमा पर अवस्थित है. मटियांव गांव सोन नदी के पश्चिमी-उत्तरी तट पर और कदवन सोन नदी के उसी के सामने दूसरे तट पर अवस्थित है. कदवन गढ़वा जिला (झारखंड) के केतार प्रखंड में है.

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मटियांव और कदवन गांवों के बीच की दूरी 5 किमी है. इसमें 1.5 किमी सोन का पाट है. यह डैम निर्माण के लिए सबसे उपयुक्त जगह है. दोनों गांवों से लगी हुई सोन के दोनों तरफ 35 से 40 किमी की दूरी तक समानांतर ऊंची पहाड़ियां हैं. इसलिए सिर्फ दो तरफ ही दीवाल बनानी पड़ेगी और कम लागत में ही डैम बन जााएगा. डैम के दोनो तरफ पहाड़ को जोड़ने वाले बांध की ऊंचाई 173 मीटर होगी. बिहार के 5, झारखंड के 16 और उत्तर प्रदेश के 20 गांव इस डैम के डूब क्षेत्र में आयेंगे. इस जलाशय में 68. 916 वर्ग किमी क्षेत्र में पानी का जमाव होगा. इतने बड़े क्षेत्र में पानी के जमाव के लिए 17, 425 वर्ग हेक्टेयर भूमि का, जिसमें वन विभाग की 2, 061 हेक्टेयर भूमि भी शामिल है, अधिग्रहण करना होगा. इस योजना में करीब 10 हजार करोड़ रु. की लागत आएगी. इससे 450 मेगावाट बिजली के उत्पादन के साथ ही सोन कमांड के आठों जिलों में खेतों को सालों भर पानी मिलता रहेगा. इसे बहुउदेशीय परियोजना के रूप में विकसित किया जा सकेगा.

उत्तर प्रदेश से सटे हुए गांवों नवाडीह, मटियांव, बेलदूरियां के किसानों – गोपाल यादव, रामलगन चौधरी, रघुनाथ साह, शैलेंद्र सिंह आदि – ने किसान नेताओं से कहा कि भौगोलिक स्थिति के अनुसार यहां डैम बनना चाहिए. लेकिन उन्होंने जमीन, घर, पेड़ व पुनर्वास हेतु समुचित मुआवजे की बात भी रखी. लोगों ने पिछले दिनों डैम के लिए सरकारी सर्वेक्षण की बातें बताईं. उन्होंने किसान नेताओं को सर्वेक्षण के लिए दिए गए चिन्हों को भी दिखाया. बिहार के अंतिम गांव वेलदुरिया और उत्तर प्रदेश के राबर्ट्सगंज जिले के वसुहारी गांव (पोखरिया थाना) तक बेहद टूटी-फूटी सड़क से होकर किसान नेताओं ने अपनी यात्रा पूरी की और डैम क्षेत्र के भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक स्थितियों की विस्तार से जानकारी ली.

डैम निर्माण में उत्तरप्रदेश के सोनभद्र व झारखंड के गढ़वा जिले के कुछ क्षेत्रों में जल जमाव बनेगा. नदी किनारे बसे छोटे-छोटे गांवों को पुनर्वासित करना पड़ेगा. उत्तरप्रदेश के कुछ लोग इस डैम के निर्माण का जरूर विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे पर्यावरण को हानि होगी और ओबरा (उप्र) स्थित विद्युत इकाइयों में जलापूर्ति में बाधा उत्पन्न होगी. हालांकि उनका संदेह बिल्कुल ही निराधार है. बांध की ऊंचाई कम करने पर भी सरकार के साथ एक सहमति बन चुकी है.

आंदोलन का अगला चरण

इन्द्रपुरी जलाशय के निर्माण के लिए सितंबर माह तक ग्राम सभायें आयोजित कर ग्राम कमेटियां बनायी जायेंगी और व्यापक किसानों को इस आंदोलन के साथ जोड़ा जायेगा. इसी दौरान गांव-गांव में दिवाल लेखन कर इन्द्रपुरी जलाशय निर्माण की मांग का प्रचार किया जायेगा. अक्टुबर माह में ग्राम कमेटी के सदस्यों को लेकर प्रखंड स्तर पर किसान सम्मेलन होंगे. इस स्थल निरीक्षण यात्रा में अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य अध्यक्ष का. विशेश्वर प्रसाद यादव, राज्य सचिव का. रामाधार सिंह, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का. शिव सागर शर्मा, राज्य उपाध्यक्ष व पूर्व विधायक चंद्रदीप सिंह, पूर्व विधायक अरूण सिंह, विधायक सुदामा प्रसाद, भाकपा(माले) के अरवल जिला सचिव का. महानंद, अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य सहसचिव राजेंद्र पटेल, उमेश सिंह, जनार्दन प्रसाद व कामता प्रसाद सिंह व ऐक्टू के नेता अशोक सिंह आदि शामिल थे.

– राजेन्द्र पटेल/उमेश सिंह