वर्ष - 28
अंक - 29
06-07-2019

18 जून 2019 को केंद्रीय रेल बोर्ड के चेयरमैन विनोद कुमार यादव ने केंद्र सरकार/रेल मंत्रालय के निर्देश पर एक पत्र जारी करते हुए ‘100 डे ऐक्शन प्लान’ को लागू करने की घोषणा की. देश भर की करोड़ों रुपए की मुनाफे में चल रही सात उत्पादन इकाइर्यों का निगमीकरण/निजीकरण करने के फैसले के साथ ही 100 दिन के अंदर रेलवे के अधिकांश विभाग का निजीकरण, शिक्षा भत्ता की समाप्ति, वर्कशाॅप और उत्पादन इकाईयों का निगमीकरण, ग्रुप ‘सी’ व ग्रुप ‘डी’ की सेवा को निरस्त करना, रेलवे काॅलोनी की भूमि की बिक्री और प्राइवेट ट्रेन का परिचालन इस ऐक्शन प्लान की मुख्य बातें हैं. इस योजना को 31 अगस्त 2019 तक पूरा कर लेना है.

पत्र जारी होने की जानकारी होते ही इंडियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन (ऐक्टू) ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया. तुरत ही रेल मंत्रालय और रेलवे बोर्ड सहित सभी जोनल महाप्रबंधकों को पत्र लिखकर निगमीकरण के फैसले को वापस लेने की मांग की गई. साथ ही साथ सभी उत्पादन इकाइयों में कार्यरत फेडरेशन से जुड़ी यूनियनों ने कार्यरत कर्मचारियों के साथ मजबूत एकता बनाकर संघर्ष में उतरने का ऐलान किया, सबसे पहले 24 जून को डीएलडब्ल्यू रेल मजदूर यूनियन (वाराणसी) के बहादुर साथियों ने निगमीकरण के खिलाफ एकजुट होकर शानदार विरोध प्रदर्शन किया. देखते ही देखते फेडरेशन से जुड़ी यूनियनों ने देश के सभी रेल कारखानों में स्थानीय स्तर पर बिखरी ताकतों को एकजुट करते हुए संयुक्त संघर्ष समिति बनाने की पहल की और अगुआई करते हुए संघर्ष के लिए मैदान में उतर गईं.

देश के तमाम रेल कारखानों में कार्यरत कर्मचारियों ने अपना खून-पसीना बहाकर इन उत्पादन इकाइयों को खड़ा किया है और उच्च तकनीकी दक्षता के साथ कठिन परिश्रम करते हुए इन उत्पादन इकाइयों से हजारों रेल इंजन, रेल डिब्बे और अन्य उपकरण इत्यादि बनाकर दुनिया के नक्शे पर बुलंदी तक पहुचाने का काम किया है. वर्ष 2006 में भी तत्कालीन हुकूमत ने कपूरथला के रेल कोच फैक्ट्री के निगमीकरण/निजीकरण करने का निर्णय लिया था. उस समय भी आरसीएफ इम्प्लाइज यूनियन (कपूरथला) के महामंत्री का. सर्वजीत सिंह के नेतृत्व में 70 दिनों तक ऐतिहासिक संघर्ष चलाकर उसके इस घटिया मंसूबे पर पानी फेर दिया था. अब पुनः मौजूदा मोदी सरकार करोड़ों की धन संपदा को अपने चहेते कार्पाेरेट घरानों और पूंजीपतियों को कौड़ियों के भाव देने के लिए तैयार है, अभी कुछ महीने पहले डीएलडब्ल्यू (वाराणसी) के खेल मैदान में खुले मंच से कर्मचारियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि रेलवे और डीएलडब्ल्यू के निजीकरण/निगमीकरण करने की हमारी कोई इच्छा, इरादा और सोच नहीं है.

रेलवे की मान्यता प्राप्त दोनों फेडरेशनें रेलवे कर्मचारियों द्वारा एनपीएस/निजीकरण के खिलाफ उठ रहे स्वभाविक आंदोलन को दबाने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा लगाते हुए सरकार की मजदूर विरोधी, रेलवे विरोधी नीतियों को लागू कराने पर उतारू हैं. मान्यता प्राप्त फेडरेशन नहीं चाहती हैं कि रेल कर्मचारियों के हित में वास्तविक लड़ाई लड़ने वाली वैकल्पिक ताकतें मजबूत हों, ऐसी हालत में इंडियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन ने 1974 के महान रेल हड़ताल की विरासत को आगे बढ़ाते हुए रेलवे के कैटिगोरिकल एसोसिएशन के साथ एकजुटता कायम करते हुए एक वैकल्पिक फेडरेशन के बतौर खड़े होने की ऐतिहासिक चुनौती को स्वीकार किया है और आउटसोर्सिंग/निजीकरण के खिलाफ लड़ने के लिए हर तरह की कुर्बानी देने को तैयार है.

इंडियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन के अध्यक्ष का. मनोज पांडेय और महासचिव का. सर्वजीत सिंह के जोशीले नेतृत्व में इंडियन रेलवे इम्प्लाईज फेडरेशन से जुड़ी उत्पादन इकाईयों आरसीएफ इम्प्लाइज यूनियन (कपूरथला), डीएलडब्ल्यू रेल मजदूर यूनियन (वाराणसी), सीएलडब्ल्यू इम्प्लाइज यूनियन (चितरंजन), डीएमडब्ल्यू इम्प्लाइज यूनियन (पटियाला), आरसीएफ इम्प्लाइज यूनियन (रायबरेली) आदि के साथ ही ओपेन लाइन की तमाम यूनियनों – एनसीआरडब्ल्यू (इलाहाबाद), एनईआरडब्ल्यू (गोरखपुर), ईसीआरईडब्ल्यू (हाजीपुर), ईसीआरईडब्ल्यू (भुवनेश्वर), एसईआरएमडब्ल्यू (कोलकाता), ईआरईयू (कोलकाता), बीआरएमयू (हुबली), एनआरईयू (नई दिल्ली) तथा एनडब्ल्यूआरईयू (जयपुर) ने भी जोनल महाप्रबंधक को पत्र लिखकर निगमीकरण को समाप्त करने की मांग की है तथा उत्पादन के इकाइर्यों के समर्थन में कंधा से कंधा मिलाकर संघर्ष कर रही हैं. ‘रेल बचाओ, देश बचाओ, मिलकर सब लोग अलख जगाओ, जालिम को अहसास कराओ’ और ‘जान दे देंगे लेकिन रेल का निगमीकरण/निजीकरण नहीं होने देंगे’ – आज देश के लाखों रेल कर्मचारियों का संयुक्त नारा बन चुका है.

– कमल उसरी