वर्ष - 28
अंक - 30
13-07-2019

बोकारो में स्टील प्रबंधन के नगर प्रशासन के समक्ष सेंटर आॅफ स्टील वर्कर्स (सीएसडब्ल्यू) के नेतृत्व में विगत 2 जुलाई 2019 को स्टील मजदूरो का प्रदर्शन आयोजित हुआ. बोकारो स्टील मजदूर व कर्मचारियों के यूनियन सीएसडब्ल्यू के नेता देवदीप सिंह दिवाकर, जेएन सिंह, केएन प्रसाद एबं जनबादी मजदूर मोर्चा के एसएन प्रसाद, सीपी सिंह, ब्रजेश कुमार आदि के नेतृत्व में संगठित-असंगठित स्टील मजदूरों ने इस प्रदर्शन के जरिए बोकारो स्टील प्रबंधन के अधिकारियों को मांग पत्र दिया और उन्हें मजदूरों की समस्यायों से अवगत कराया.

स्टील मजदूरों की प्रमुख मांगों में इस्पात मजदूरों का अविलंब वेतन पुनरीक्षण करने, इस्पात उद्योग में काम करने वाले सभी ठेका मजदूरों को भी मौजूदा हालात के अनुरूप स्थायी मजदूरों के बराबर ग्रेड एस-1 का वेतन निर्धारण व भुगतान करने, अवकाशप्राप्त इस्पात कर्मचारियों को स्टील अस्पताल (बीजीएच) से आवश्यक इलाज व दवा की सुविधा देने तथा लाइसेंसी आवास पर प्रति 11 माह के अंतराल पर दस प्रतिशत किराया बढ़ाने का फैसला को वापस लेने की मांगें शामिल थीं.

इस्पात उद्योग में मौजूदा परिस्थिति में ठेका मजदूरों को उत्पादन कार्य मे लगाए बिना उत्पादन संभब नही है. बिडंबना यह है कि ठेका मजदूरो को न सिर्फ बहुत कम मजदूरी दी जाती है, बल्कि स्टील मजदूरों को प्राप्त होनेबाले दूसरी अन्य सुविधाओं से भी वंचित रखा जाता है. जब वे अधिक मजदूरी या सुबिधाओं की मांग करते हैं तो ठेकेदार उनका गेटपास छीन लेता है और बकाया बेतन का भुगतान भी नहीं करता है. बकाया मजदूरी का मांग करनेबाले ठेका मजदूरों को महीनों ठेकेदार के पीछे-पीछे दौड़ना पड़ता है. ठेकेदार के ऐसे अमानबीय व्यवहार के पीछे स्टील प्रबधन की नीतिगत साजिश रहती है. इसी कारण ठेका मजदूरो की उपस्थिति की गारंटी करने के लिए उन्हें बायोमेट्रिक पद्धति के अंतर्गत लाए जाने की भी मांग की गई.

लाइसेंस प्राप्त आवास के मामले में प्रति 11 माह के अंतराल पर 10 प्रतिशत किराया बढ़ाने का मामला भी सिर्फ बोकारो स्टील प्लांट में ही लागू किया गया है. सेल के किसी दूसरी इकाई में यह लागू नहीं है. बोकारो इस्पात नगरी की सड़क हो या मजदूर कर्मचारियो की काॅलोनी – स्ट्रीट राॅड, आवास, पानी टंकी, स्ट्रीट लाईट आदि की दयनीय हालत के लिए भी स्टील प्रबंधन की लापरवाही ही जिम्मेबार है. मरम्मत व उचित देखरेख के अभाव में आये दिन आवास की छत गिरने की घटनाएं भी होते रहती हैं.

इसतरह के सभी कुव्यवस्था और श्रमिको को देय सुविधाओं को लंबित रखने या कटौती करने के मामले में, चाहे वह इनकैशमेन्ट हो, कटौती हो या पेंशन का मामला हो, स्टील प्रबंधन हमेशा ही घाटा होने की आड़ लेता है। पेंशन को मैनेज करनेबाले स्टील प्रबन्धकीय ब्यबस्था ने अभी तक पेंशन स्कीम की कोई रूपरेखा घोषित नहीं की है. इसको भी कंपनी को हुए लाभ-हानि से जोड़कर देखा जाता है.

उत्पादन कार्य मे ठेका मजदूरों को लगाने के पीछे भी यही बहाना है। जितने बड़े पैमाने पर ठेका मजदूरों को उत्पादन कार्य में लगाया जा रहा है, उसी अनुपात में मजदूरों की सभी तरह की सुविधाओं की कटौती भी की जा रही है. सबके पीछे एक ही तर्क है  – घाटा! घाटा के सरकारीकरण के इसी तर्क के साथ मोदी सरकार निजीकरण को बढ़ावा देने पर आमादा है.

निजीकरण-कारपोरेटीकरण बिरोधी जोरदार नारों के साथ मजदूरों का प्रदर्शन जनसभा में बदल गया. वक्ताओं – देवदीप सिंह दिवाकर, जेएन सिंह, केएन प्रसाद, केडी पंडित, लोकनाथ सिंह, एसएन प्रसाद, सीपी सिंह, देवलोचन राम, एसजीके सिन्हा, एससीपी शर्मा, बी मिस्त्री, ब्रजेश कुमार, महेन्द्र प्रसाद, डीएन महतो, बीरेंद्र शर्मा आदि ने उपरोक्त तथ्यों का जोरदार भंडपफोड़ किया एवं नगर प्रशासन को मांगपत्र सौंपा.