वर्ष - 28
अंक - 30
13-07-2019

मामले पर एक नजर आज से करीब दस साल पहले 3 सितंबर 2009 को खभैनी गांव निवासी विजय यादव की हत्या अपराधियों ने कर दी थी. उनकी हत्या किन लोगों ने की, यह बात सबको मालूम थी. लेकिन एक साजिश के तहत इस मामले में भाकपा(माले) के जिला कमेटी सदस्य व पंचायत के लोकप्रिय मुखिया का. गणेश यादव तथा भाकपा(माले) कार्यकर्ता व समर्थक का. अनिल ठाकुर, बादशाह प्रसाद, सुरेश साव, देवलखन रजक एवं शिक्षक भीष्म नारायण यादव को अभियुक्त बनाया गया. इतना ही नहीं, विरोधी राजनीतिज्ञों ने गांव के लोगों को उकसाया भी और निर्दोष ग्रामीण परमानंद ठाकुर की हत्या करवा दी.

तथ्य यह भी है कि विजय यादव के असली हत्यारों और स्थानीय पुलिस-प्रशासन ने साठगांठ कर उनके परिजनों को बरगला दिया और इस हत्याकांड के जांच की दिशा भटका दी. इस मामले में दर्ज किए गए द्वेषपूर्ण एफआइआर के आधार पर ही, ताकि पुलिस को असली मुजरिम को ढूंढ़ने की जहमत उठानी ही न पड़े, यह मामला आगे बढ़ता रहा और जैसा कि अक्सर होता रहा है – निर्दाेष तो जेल चले जाते हैं और अपराधी साफ-साफ बच निकलते हैं – विगत 3 जुलाई 2019 को जहानाबाद सेशन कोर्ट-6 ने इस मामले में का. गणेश यादव समेत सभी 6 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुना दी है.

भाकपा(माले) से राजनीतिक विद्वेष रखनेवाली सामंती ताकतों ने मृतक के परिजनों को अपना राजनीतिक मोहरा बना लिया. पुलिस ने भी घटना, गवाह और प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों का विश्लेषण सही तरीके से नहीं किया. इस कारण से न्यायालय के इस फैसले पर सवाल भी उठने लगे हैं और ज्यादातर वकीलों का मानना था कि फैसला देनेवाले ने न्याय के साथ पारदर्शिता नहीं बरती है और ऐसी एकतरफा सोच से गरीबों को न्याय मिलना मुश्किल है. ऐसे मामलों में राज्य मशीनरी व न्यायालय भी अपराधी के ही श्रेणी में खड़े हो जाते हैं. अपराधी ने जहां एक परिवार को असहाय/अनाथ बनाया तो वे निर्दाेष को सजा देकर कई परिवारों के साथ वैसा ही करते हैं.

खभैनी पंचायत और का. गणेश यादव

अरवल जिले का खभैनी पंचायत भाकपा(माले) के सघन कामकाज का क्षेत्र रहा है. अस्सी के दशक से ही यहां जमीन, मजदूरी और मान-सम्मान के सवाल पर गरीबों ने कई लड़ाईयां लड़कर सामंती ताकतों को परास्त किया है. का. गणेश यादव इन संघर्षों के बीच से ही पैदा हुए एक लोकप्रिय जननेता हैं. गरीबों के साथ गहरे लगाव, उनके संघर्षों की अगुआई और ईमानदारी से जनसेवा के कार्यों में गहरी रूचि को देखते हुए भाकपा(माले) ने 2001 में उन्हें इस पंचायत से मुखिया का प्रत्याशी बनाया. वे जीते और तब से ही 2016 तक, लगातार तीन चुनावों में जीत हासिल किए, 2016 में इस पंचायत का मुखिया पद आरक्षित (एससी) हो गया. लोगों ने यहां से भाकपा(माले) नेता व प्रत्याशी का. विजय पासवान को ही नया मुखिया चुना. का. गणेश अभी भाकपा(माले) कीे जिला स्थाई समिति के सदस्य भी हैं.

भाकपा(माले) को परास्त करने की साजिश

अरवल जिले और खासकर खभैनी पंचायत में भाकपा(माले) को कमजोर करने के लिए सामंती ताकतों और शासक वर्ग के सरगनों ने पहले भी कई तरह के हथकंडे अपनाए. रणवीर सेना के दौर में ब्रह्मेश्वर मुखिया समेत उसके कई सरगनों को बुलाकर गरीबों को डराने-धमकाने की कोशिशें हुई. उन्हें जनसंहार का भय दिखाया गया. सवर्ण सामंती ताकतों ने दबंग पिछड़ी जातियों के कुलकों से नापाक एकता बनाकर उन्हें झूठे मुकदमें में फंसाकर जेल भिजवाया. लेकिन का. गणेश यादव और भाकपा(माले) की लोकप्रियता के सामने उनकी एक न चली. भाकपा(माले) लगातार खभैनी पंचायत में मुखिया और पंचायत समिति सदस्य के पदों पर जीतते रही.

सामंती ताकतों, पुलिस-प्रशासन और न्यायालय की दुरभिसंधि का मुख्य लक्ष्य इस पंचायत व इलाके में भाकपा(माले) व गरीबों की ताकत को कमजोर करना और उन्हें परास्त कर देना था. इस मामले में मृतक, हत्या की घटना, गवाहों के बयान और मुजरिम बनाये गए लोगों की अलग-अलग कहानी है. घटना के हर पहलू को बारीकी से जांच हो तो स्पष्ट हो जाएगा कि मुजरिम ठहराये गए लोगों का इस घटना से कोई लेना-देना नहीं रहा है. राजनीतिक विद्वेष रखने वाली अपराधी सामंती ताकतों ने मृतक विजय यादव की हत्या की घटना के आड़ में भाकपा(माले) पर निशाना साधा है. उन्हें केस में फंसाने व सजा दिलाने खभैनी पंचायत में गरीबों की दावेदारी खत्म नहीं हो जाएगी. उनका दांव इस बार भी विफल रहेगा.

न्याय के लिए संघर्ष: सजा के खिलाफ आंदोलन

फैसले के दिन जहानाबाद कोर्ट में खभैनी पंचायत के कई नेता-कार्यकर्ता व समर्थक गरीब लोग भारी संख्या में मौजूद थे. उन्हें यह उम्मीद थी कि उनके ‘मुखिया’ व ‘साथियों’ को न्याय मिलेगा. लेकिन वे न्यायालय के असली वर्ग चरित्र को भी समझते हैं. वे जानते हैं कि गरीबों को सजा देते वक्त वह कितना कठोर हो जाता है. इस फैसले सेे न्यायालय पर उनका बचा-खुचा भरोसा भी उठ गया है.

गरीबों के पक्ष में आवाज उठानेवालों का दमन-उत्पीड़न और ‘न्याय का संहार’ नीतीश-मोदी सरकार की लाक्षणिक विशेषता बन चुकी है. लेकिन, गरीबों की आवाज न कभी दबी है और न दबेगी. का. शाह चांद, का. उपेन्द्र बिंद, का. मंजू देवी और का. गणेश यादव ने जनता के मुखिया की जो परंपरा कायम की है, वह हमेशा आगे बढ़ती रहेगी.

सजा के खिलाफ विगत 6 जुलाई 2019 को अरवल में भाकपा(माले) के जिला कार्यालय से एनएच 189 व एनएच 110 से होकर प्रतिवाद मार्च निकाला गया. प्रतिवाद मार्च में अपने हाथों में झंडा, बैनर व तख्तियां लिये भारी तादाद में महिलाओं व युवाओं ने हिस्सा लिया. जिला सचिव का. महानंद व अन्य माले नेताओं के नेतृत्व में आक्रोशपूर्ण नारा लगाते हुए सभी प्रखंड परिसर पहुंचे जहां का. उपेन्द्र पासवान की अध्यक्षता में सभा आयोजित की गई. सभा को माले राज्य कमेटी के सदस्य का. जितेन्द्र यादव और का. मधेश्वर प्रसाद, का. देवमंदिर सिंह, का. रामकुमार सिन्हा, का. विजय पासवान, का. राजेश्वर यादव आदि नेताओं ने भी संबोधित किया.