वर्ष - 28
अंक - 30
13-07-2019
(रमा नागराजन, टाइम्स ऑफ इंडिया, 20 जून 2019)

जब बिहार के मुजफ्फरपुर में केन्द्र और राज्य की सरकारें एक्यूट इनसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) नामक रोग (जिसे स्थानीय लोग चमकी बुखार कहते हैं) से निपटने की भागदौड़ में लगी हुई हैं, सरकारी आंकड़े बताते हैं कि जिले में सार्वजनिक स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा किस कदर चिंताजनक स्थिति में पड़ा है. स्वास्थ्य मंत्रालय की स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (हेल्थ मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टम या एचएमआईएस) ने बताया है कि जिले में मौजूद 103 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पीएचसी) को और जिले के एकमात्र सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र को मूल्यांकन योग्य ही नहीं पाया गया, यानी उन्हें 5 में से जीरो अंक मिले हैं.

मूल्यांकन करने के एचएमआईएस के मानदंड के अनुसार, किसी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का इस आधार पर मूल्यांकन किया जाता है कि वह चौबीसों घंटे और सप्ताह के सातों दिन खुला रहता है कि नहीं, उसमें कम से कम एक मेडिकल ऑफिसर, दो से ज्यादा नर्स या प्रसव-सहायिका (मिडवाइफ) और एक प्रसूति गृह है या नहीं. जो केन्द्र प्रतिदिन और चौबीसों घंटे नहीं खुले रहते, वहां कम से कम एक मेडिकल आॅफिसर और एक नर्स का रहना जरूरी है. फिर भी जिले के 103 पीएचसी में से 98 केन्द्र इन न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं करते और इसीलिये उनको 2018-19 के मूल्यांकन के दौरान कोई दर्जा नहीं दिया गया.

बाकी बचे पांच प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में से प्रत्येक को जीरो का दर्जा मिला है. मूल्यांकन के मानदंड में तीन अंक बुनियादी ढांचे को दिये जाते हैं और दो सेवाओं के लिये. ये पांच पीएचसी भी उपरोक्त दोनों लिहाज से परीक्षा में बुरी तरह नाकाम रहे हैं.

आधिकारिक नियमों के अनुसार समतल के इलाकों में प्रत्येक 30,000 की आबादी पर एक पीएचसी जरूर होना चाहिये. इस हिसाब से मुजफ्फरपुर में 170 से ज्यादा पीएचसी होने चाहिये क्योंकि इस जिले की आबादी 51 लाख से ऊपर है.

जिले के एकमात्रा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र ;सीएचसीद्ध की स्थिति भी बेहतर नहीं है. 2017-18 में सीएचसी के मूल्यांकन में मुजफ्फरपुर के सीएचसी को “मूल्यांकन योग्य नहीं” माना गया था. इसका कारण यह है कि मूल्यांकन में शामिल होने के लिये जो न्यूनतम मानदंड हैं उनको यह सीएचसी पूरा नहीं करता था.

ये अनिवार्य मानदंड क्या हैं? स्टाफ के हिसाब से सीएचसी में दो या दो से अधिक डाक्टर होने चाहिये, छह या उससे ज्यादा नर्स अथवा एएनएम (आॅक्जिलरी नर्स मिडवाइफ) और कम से कम एक प्रयोगशाला टेक्नीशियन रहना चाहिये. जहां तक बुनियादी ढांचे का सवाल है, तो सीएचसी में एक आॅपरेशन थियेटर होना चाहिये, एक जेनरेटर और महिलाओं एवं पुरुषों के लिये अलग-अलग “सार्वजनिक सुविधाएं” (यानी शौचालय) होने चाहिये.

मुजफ्फरपुर की आबादी के हिसाब से जिले में कम से कम 43 सीएचसी होने चाहिये थे, क्योंकि समतल में 1,20,000 की आबादी पर एक सीएचसी होना चाहिये. इसके बजाय जिले में सिर्फ एक सीएचसी है और उसकी इस कदर खस्ता हालत है कि उसे मूल्यांकन योग्य भी नहीं माना गया.