वर्ष - 28
अंक - 28
29-06-2019
कामरेडो,

मोदी सरकार फिर सत्ता में वापस आ गई है. चुनाव के खत्म होने तक जिन तथ्यों को छिपाया गया था, उन्हें अब सरकार ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया है. अब हम जानते हैं कि भारत में वृद्धि की दर वास्तव में कितनी गिर गई थी, और कैसे बेरोजगारी पिछले पांच दशकों की अवधि के सबसे बदतर आंकड़े पर पहुंच गई थी. अब हम यह भी जानते हैं कि बालाकोट आॅपरेशन के बाद बडगाम में दुर्घटनाग्रस्त भारतीय वायुसेना के उस हेलिकाॅप्टर को, जिसके गिरने की वजह से भारतीय वायुसेना के छह अधिकारी मारे गये थे, वास्तव में भारतीय वायुसेना के ही एक मिसाइल ने मार गिराया था.

हम यह भी जानते हैं कि मोदी के सत्ता में आने के बाद से नीति सम्बन्धी नई-नई घोषणाएं शुरू हो चुकी हैं. नीति आयोग ने सिफारिश की है कि सार्वजनिक क्षेत्र की लगभग 50 इकाइयों (पीएसयू) को बंद कर दिया जायेगा या फिर निजी क्षेत्र को सौंप दिया जायेगा, और मजदूरों के अधिकारों में कटौती करने के लिये श्रम कानूनों को नये सिरे से लिखा जायेगा. रेलवे की योजना है कि लुभावने रेल मार्गों को अडानी-अम्बानी कारपोरेट क्लब के हाथों सौंप दिया जाये. मसविदा शिक्षा नीति कहती है कि प्रत्येक गैर-हिंदी भाषी राज्य पर हिंदी भाषा थोप दी जायेगी. और सरकार “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के नाम पर, लोकतंत्र एवं संघवाद को तबाह करने के लिये चुनाव प्रणाली को भी बदल देने को आमादा है, और हर स्तर पर सारे चुनावों को एक ही साथ कराने की प्रथा लाद देना चाहती है.

ऐसी परिस्थिति में हम वामपंथी कार्यकर्ताओं को एक बार फिर बिना देर किये सड़कों पर उतर जाना होगा. हम अपने लोकतंत्र को, अपने देश की संघीय प्रणाली को, हमारे अस्तित्व रक्षा के अधिकार को मोदी सरकार या अन्य किसी सरकार के हाथों कत्तई नहीं सौंप सकते और यकीनन हम सौंपेंगे भी नहीं.

पश्चिम बंगाल की वामपंथी कतारों एवं लोकतंत्र-पसंद, प्रगतिशील जनता से भाकपा(माले) की हार्दिक अपील पश्चिम बंगाल में हमारे सामने आज एक और महत्वपूर्ण प्रश्न सामने आ खड़ा हुआ है. राज्य की सामाजिक-सांस्कृतिक जलवायु और राजनीतिक रंग-रूप बड़ी तेजी से बदल रहे हैं भाजपा, जो समूचे देश में जनता की एकता, शांति, और सम्मान के साथ अस्तित्व रक्षा के अधिकार पर हमला कर रही है, वह पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र की पुनर्बहाली के लिये लड़ने वाला जिहादी बनकर राज्य की जनता को धोखे में डालने की कोशिश कर रही है.

चैतन्य और लालन फकीर का बंगाल, राममोहन और विद्यासागर का बंगाल, रवीन्द्रनाथ और नजरुल का बंगाल, सूर्य सेन, बाघा जतीन और सुभाष चन्द्र बोस का बंगाल आज विराट संकट का सामना कर रहा है, अपने समाज, संस्कृति और राजनीति पर चौतरफा हमले का सामना कर रहा है.

जब अमित शाह के रोड शो ने कोलकाता की सड़कों पर हुड़दंग मचाई थी, विद्यासागर की मूर्ति को तोड़ दिया था, तभी हम इस संकट के चेहरे को स्पष्ट रूप से देख सके थे. चुनाव के बाद राजनीतिक आतंकवाद का यह नया चेहरा और उसका विनाश का तांडव रोज-ब-रोज और ज्यादा प्रत्यक्ष होता जा रहा है. असम और त्रिपुरा की जनता तो अब काफी अरसे से इसका चेहरा देखती आ रही है. राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) और नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) के नाम पर असम के लाखों लोग अपनी नागरिकता खोने के खतरे का सामना कर रहे हैं. इस साल चुनाव में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने उसी चीज के बीज पश्चिम बंगाल में भी बो दिये हैं. फिर भी, इस वर्ष के चुनाव में भाजपा पश्चिम बंगाल में दूसरे नम्बर की सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरी है और यह हम सबके लिये गहरी चिंता का विषय है.

हमारे लिये इससे बड़ी शर्म की बात यह है कि जहां भाजपा का वोट प्रतिशत राज्य में लगभग 24 प्रतिशत बढ़ गया, वहीं वामपंथ का वोट प्रतिशत लगभग 23 प्रतिशत गिर गया, और इन वोटों का बड़ा हिस्सा वामपंथ से दूर हटकर भाजपा के पाले में चला गया है. आज देश की सबसे बड़ी दक्षिणपंथी और लोकतंत्र-विरोधी शक्ति उस वामपंथी जनाधार को हड़प लेने पर आमादा है, जिस जनाधार का निर्माण तेभागा और खाद्य आंदोलनों के जमाने से कदम-ब-कदम आगे बढ़ाते, अनगिनत शहीदों के बलिदान तथा दसियों लाख लोगों के अनथक प्रयासों एवं संघर्षों के जरिये किया गया था.

सिद्धार्थ शंकर रे की पुलिस भी वामपंथ का दमन नहीं कर सकी थी; तृणमूल के जमाने में कुशासन और आतंक के खिलाफ भी वामपंथ सड़कों पर उतर आया था और उसने अपनी आवाज उठाई थी, मगर आज उसी वामपंथ का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के झूठ और जहरीले साम्प्रदायिक प्रचार अभियान के सामने दिशाहीन हो गया है.

पश्चिम बंगाल और भारत में वामपंथी राजनीति ने दिशा के इससे ज्यादा गहरे संकट का पहले कभी मुकाबला नहीं किया था. वामपंथ के पक्षधर कुछेक दोस्त कहते हैं कि तृणमूल के कुशासन से निपटने का इसके अलावा और क्या रास्ता हो सकता है? भाजपा से तो हम बाद में लड़ ले सकते हैं, फिलहाल अभी हमें तो तृणमूल से छुटकारा पाने के लिये भाजपा का इस्तेमाल कर लेना चाहिये: यह तो कांटे से कांटा निकालने वाली बात है. मगर इस परिस्थति को अगर हम खुली आंखों से देखेंगे और उस पर ठंडे दिमाग से विचार करेंगे तो देख सकते हैं कि वास्तव में भाजपा ही कांटा निकालने के लिये कांटे का इस्तेमाल कर रही है.

भाजपा ने अपने इर्द-गिर्द कुख्यात भ्रष्टाचारियों और जाने-माने अपराधी गुंडा सरगनों को इकट्ठा कर लिया है, जिनमें से कई तो कल तक खुद तृणमूल कांग्रेस के ही साथ थे. उनकी मदद लेकर भाजपा पूरी बेताबी से सत्ता पर कब्जा करने को उतारू है. दल-बदल, पार्टी कार्यालयों पर बलपूर्वक कब्जा, छात्र एवं मजदूरों की यूनियनों पर बलपूर्वक कब्जा – यह माॅडल किसी भी सूरत में लोकतंत्र को फिर से बहाल करने का भला कैसे कोई मौका दे सकता है?

बंगाल की वामपंथी चेतना और अंतःकरण यकीनन इस संकट के सामने घुटने नहीं टेक सकता; वह दक्षिणपंथ के द्वारा खुद को हड़प लिये जाने नहीं दे सकता. जो दोस्त कह रहे हैं कि ‘कांटा निकालने के लिये कांटे का इस्तेमाल करो’, उनसे क्या हम कह सकते हैं कि वे खुद अपने आप पर बारीकी से नजर डालें. ‘कांटे से कांटा निकालने’ के नाम पर क्या आप खुद ही उसी कांटे में नहीं फंस रहे हैं? यह तो अपनी अस्तित्व रक्षा की कोई रणनीति नहीं है, यह तो सिर्फ राजनीतिक रूप से आत्महत्या करना है. पश्चिम बंगाल, जिसने कभी समूचे देश में वामपंथी और लोकतांत्रिक खेमे को मजबूत किया था, वह अब खुद ही वामपंथी कतारों को राजनीतिक आत्महत्या के अमंगलकारी खतरे की चेतावनी दे रहा है.

हम वामपंथी लोग कर्ज के बोझ तले पिस रहे किसानों से कहते हैं कि आत्महत्या मत करो, आओ, हम सब मिलकर लड़ाई करें. हम बंद कारखानों के मजदूरों से, जो अपना रोजगार खो बैठे हैं, बेरोजगार युवकों से, हिंसा का सामना कर रही महिलाओं से, कहते हैं – परिस्थिति के दबाव तले टूटो नहीं, हम तुम्हारे साथ हैं. आज हमें उसी संदेश को खुद याद करने और वामपंथी आंदोलन पर उसका इस्तेमाल करने की जरूरत है. वामपंथ को यह शोभा नहीं देता कि अपने उसूलों का परित्याग कर दे, आत्मसमर्पण कर दे और आत्महत्या कर ले. वामपंथी होने का मतलब है अपनी जमीन पर, अपनी स्थितियों पर डटकर खड़े रहना और लड़ाई जारी रखना वामपंथी होने का मतलब है अंत तक डटकर दृढ़तापूर्वक लड़ाई जारी रखना. और इतिहास हमें बताता है कि जो लोग अंत तक लड़ते रहते हैं वही विजय हासिल करते हैं.

हम उन वामपंथी दोस्तों से, जिन्होंने इस बार के चुनाव में यह भयानक गलती की है, अपील करते हैं – कृपया अपनी गलती को महसूस कीजिये और उसको सुधार लीजिये. वामपंथ के रास्ते पर वापस आइये. और जो वामपंथी दोस्त इस खतरे के खिलाफ डटकर खड़े रहे, उनसे हम कहते हैं: कामरेड, वामपंथ की पताका को और भी मजबूती से पकड़े रहें.

हम भाकपा(माले) धारा के वामपंथी पश्चिम बंगाल में अपनी जमीन पर, अपने उसूलों पर डटकर खड़े रहे – हमने बहुतेरी लड़ाइयां लड़ीं, इन संघर्षों के दौरान बहुतेरी गलतियां भी कीं, और कई बार धक्कों का भी शिकार हुए. पिछले संसदीय चुनाव के दौरान हमने अपनी पार्टी स्थापना के पचासवें वर्ष में प्रवेश किया. इसी साल हमारी पार्टी के संस्थापक महासचिव कामरेड चारु मजुमदार का भी जन्म शताब्दी वर्ष है.

पश्चिम बंगाल में जब सिद्धार्थ शंकर रे का आतंक का राज अपने चरम शिखर पर था, उन दिनों लिखे अपने अंतिम लेख में कामरेड चारु मजुमदार ने भाकपा(माले) के कार्यकर्ताओं से कहा था कि वे वामपंथी-लोकतांत्रिक शक्तियों की व्यापकतम एकता के निर्माण पर अपना ध्यान केन्द्रित करें. उन्होंने हमें याद दिलाया था कि कम्युनिस्ट पार्टी के लिये जनता का हित ही सर्वोपरि होता है, उन्होंने हमसे कहा था कि हम जनता की गहराई में बने रहें और धक्के पर जीत हासिल करें, उन्होंने हमें गहन अंधकार के बीच भी रोशनी की किरण खोजने की प्रेरणा दी थी आज पचास वर्षों बाद, बिल्कुल भिन्न स्थितियों में, वामपंथी फिर एक बार वैसी ही संकटपूर्ण घड़ी का सामना कर रहे हैं. हमें ‘कांटे से कांटा निकालने’ की गुमराह करने वाली “चालाकीभरी” धारणा के रास्ते का, इस आत्मसमर्पण और आत्महत्या के रास्ते का – परित्याग करना होगा – और एक बार फिर वामपंथी विकल्प को शक्तिशाली बनाना होगा इसके लिये हमारे पास अपनी पिछली गलतियों से सबक लेने का साहस होना चाहिये और वर्तमान चुनौतियों का सामना करने का संकल्प होना चाहिये. समस्त वामपंथी कार्यकर्ताओं, लोकतांत्रिक एवं प्रगतिशील जनता से हमारी हार्दिक अपील है – भाजपा के विषवृक्ष को बंगाल की मिट्टी में कत्तई जड़ जमाने और बढ़ने नहीं दें.

बंगाल की मिट्टी में, बंगाल के पानी में, बंगाल की जलवायु में प्रगतिशील और तर्कवादी धाराएं उपजी और शक्तिशाली हुई हैं – उसको खतरे में डालने की इजाजत कत्तई न दें. “सबार ऊपरे मानुष सत्य” – मानवता सर्वोपरि है – यह कथन (15वीं सदी के बंगाली कवि चंडीदास का कथन) कई सदियों से बंगाल के हृदय में बसता आ रहा है इन्सानियत की इस सरजमीं पर लूट-खसोट, साम्प्रदायिक फूटपरस्ती, नफरत और गुंडागर्दी को पनाह न लेने दीजिये.

समूचे देश का लोकतंत्र आज भाजपा के हाथों खतरे में पड़ गया है. संविधान खतरे में है, कानून का शासन भी खतरे में है. स्वतंत्रता संग्राम के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच जाने के दौर में जो शक्तियां ब्रिटिश शासन से गठजोड़ करने और साम्प्रदायिक नफरत फैलाने में व्यस्त थीं; वही ताकतें आज संघर्ष के बल पर हासिल की गई महिलाओं की स्वतंत्रता, दलितों और आदिवासियों की आजादी को छीनकर उन्हें वापस धकेलने की कोशिश में लगी हैं. कारपोरेट एजेन्ट और साम्प्रदायिक फूटपरस्ती और नफरत के सौदागर अब पश्चिम बंगाल में सत्ता को हथियाना चाहते हैं, इसके लिये वे लोकतंत्र और विकास के लिये पश्चिम बंगाल के वंचितों और उत्पीड़ित लोगों की आकांक्षाओं का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं. आज आरएसएस, भाजपा और बजरंग दल के गुंडा गिरोह बंगाल की धरती – स्वतंत्रता संग्राम के गढ़, ज्ञान-विज्ञान, कला-साहित्य, वाद-विवाद, तर्कबुद्धि और स्वतंत्र चिंतन के हृदय और आत्मा – को छाती फुलाकर रौंद रहे हैं. ऐसी ताकतें पश्चिम बंगाल को और भी बड़े विनाश के अलावा और क्या उपहार दे सकती हैं?

तृणमूल कांग्रेस का कुशासन और ममता बनर्जी का निरंकुश माॅडल यकीनन भाजपा के लिये इस राज्य में घुसपैठ करने की जगह बना दे रहा है. सभी वामपंथियों का कर्तव्य है कि भाजपा के बढ़ते खतरे और तृणमूल कांग्रेस के कुशासन की पीड़ा के खिलाफ सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रतिरोध की दीवार खड़ी करें और उसे मजबूत बनायें, और एक बार फिर पश्चिम बंगाल के लोगों के सामने वामपंथी विकल्प को मजबूती से पेश करें. आइये, हम इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये उठ खड़े हों और समूचे देश को वह करके दिखा दें जिसका उद्घोष कवि सुकांत ने अपने अविस्मरणीय शब्दों में किया था – “बांग्लार माटि दुर्जय घांटि” – बंगाल की धरती अपराजेय है.

– दीपंकर भट्टाचार्य
महासचिव, भाकपा(माले)