वर्ष - 28
अंक - 29
06-07-2019

मोदी सरकार सत्ता में वापस आ गई है. गिरोहबंद भीड़-हत्यारे भी अपनी कार्रवाइयों में मशगूल हो गये हैं. पहले की ही तरह गिरोहबंद भीड़-हत्याओं की वीडियोग्राफी की जा रही है ताकि और अधिक लोगों को इस किस्म की वारदात करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके और संभावित शिकारों को और भी साफ तौर पर पता चल जाय कि आगे उनका अंजाम क्या होना है. हत्या करने के लिये बनाये बहानों की तादाद बढ़ती जा रही है – गाय-बैल से सम्बंधित बहाने, अंतरधार्मिक प्रेम और विवाह के बहानों के अलावा चोरी का आरोप, यहां तक कि संदेह अथवा अफवाह भी गिरोहबंद भीड़-हत्या के लिये पर्याप्त बहाना बन सकती है, जैसा कि हमने अभी हाल ही में झारखंड में हुई गिरोहबंद भीड़-हत्या की ताजातरीन घटना में साफ-साफ देखा है. इसमें शायद सबसे चौंका देने वाली बात यह है कि हत्यारे गिरोहों के पास अब कोई अपना नारा भी हो सकता है. उन्होंने “जय श्री राम” नारे में एक साझे युद्धघोष का आविष्कार किया है, जिसको समूचा संघ ब्रिगेड एक स्वर में लगाता है – सड़कों पर उतरे हत्यारे भीड़-गिरोहों से लेकर संसद के अंदर भाजपा के जत्थे तक, सभी इसमें शामिल रहते हैं.

तोड़-फोड़, लूट-पाट और दंगा-फसाद से लेकर गिरोहबंद भीड़-हत्या तक, संघ ब्रिगेड को इस बात पर यकीन है कि नफरत की बुनियाद पर किये गये तमाम किस्म के अपराधों को राम के नाम पर जायज ठहराया जा सकता है. और जब सत्ता में भाजपा मौजूद है तो संघ गिरोह को यह भी यकीन है कि जय श्री राम का नारा किसी भी किस्म की सजा से बचने का सबसे गारंटीशुदा पासवर्ड हो सकता है. उत्तर भारत में आम हिंदू लोगों को, जो पीढ़ियों से राम के नाम का इस्तेमाल सामाजिक अभिवादन के बतौर करते आ रहे हैं, यह बात जानकर सदमा पहुंचेगा कि उसी नाम का इस्तेमाल असहाय लोगों की गिरोहबंद हत्या करने हेतु किया जा रहा है. एक असहाय आदमी को बिजली के खंभे से बांधकर लगातार पीटा जा रहा है और हमला करने वाले लोग जबर्दस्ती उसके मुंह से “जय श्री राम” और “जय हनुमान” का नारा निकलवा रहे हैं – यह वीडियो हर उस भारतीय नागरिक के लिये एक वीभत्स चेतावनी है जो कानून के शासन में तथा विभिन्न समुदाय के लोगों के बीच सद्भावनापूर्ण सहअस्तित्व कायम करने में यकीन रखता है.

इसके बावजूद मोदी सरकार और संघ परिवार झारखंड में गिरोहबंद भीड़ द्वारा हत्या की ताजातरीन घटना को निर्लज्जतापूर्वक एक तुच्छ सी घटना बताने की कोशिश कर रहे हैं. मोदी ने तो यहां तक कह डाला कि तबरेज की हत्या का विरोध करना झारखंड का अपमान करना है, झारखंड राज्य की छवि पर कीचड़ उछालने की कोशिश है. पाठकों को याद होगा कि मोदी ने इसी चालबाजी का इस्तेमाल गुजरात में भी किया था. जब समूची दुनिया गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए जनसंहार की भर्त्सना कर रही थी और पीड़ितों को न्याय तथा जनसंहार रचाने वालों को सजा देने तथा मुख्यमंत्री मोदी और उनकी सरकार से इसकी जवाबदेही लेने की मांग कर रही थी, तब मोदी ने उसको गुजरात-विरोधी षड्यंत्र बताया था और अपनी आलोचना करने वालों को बदनाम करने तथा उन्हें चुप कराने के लिये गुजरात “गौरव” का सहारा लिया था.

 तथ्य यह है कि झारखंड में रघुबर दास की सरकार के शासनकाल में गिरोहबंद भीड़ द्वारा हत्या की एक दर्जन से ज्यादा घटनाएं घटित हो चुकी हैं. इस उन्मादग्रस्त अभियान के शिकार मुसलमान, आदिवासी, दलित, गैर-दलित हिंदू, सभी लोग हो चुके हैं. दो साल पहले इसी राज्य में लोगों को चौंका देने वाली यह घटना सामने आई थी कि गिरोह हत्या के एक आरोपी को जमानत पर जेल से छूटने पर एक केन्द्रीय मंत्री ने माला पहनाई थी. ये मंत्री महोदय बड़े गुरूर के साथ शेखी मार रहे थे कि कैसे उस आरोपी को जमानत दिलाने के लिये उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ी थी. मोदी सरकार ने उनको झिड़कने की कोई कोशिश ही नहीं की. इसके बजाय, मोदी राज के दौरान “शासन" इसी तरह चला कि गिरोहबंद भीड़ द्वारा हत्याएं ही उसका विशिष्ट चारित्रिक लक्षण बन गया, और वही रुझान बेरोकटोक जारी है क्योंकि हत्यारों को नये सिरे से दंडमुक्ति की गारंटी मिल गई है.

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गिरोहबंद भीड़ द्वारा हत्याओं के उन्मत्त नाच का जारी रहना हमें यह भी दर्शाता है कि मोदी सरकार सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के प्रति जरा भी सम्मान नहीं दिखलाती है. ठीक एक वर्ष पहले सर्वोच्च न्यायालय ने गिरोहबंद भीड़ द्वारा हत्याओं के खतरे को रोकने के लिये निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपाय सुझाते हुए विस्तारपूर्वक दिशानिर्देश जारी किये थे. सर्वोच्च न्यायालय ने गिरोहबंद भीड़ द्वारा हत्या की घटनाओं से निपटने के लिये हर जिले में एक नोडल अधिकारी को नियुक्त करने का निर्देश दिया था. उसने ऐसे मुकदमों की सुनवाई करने के लिये छह महीने के अंदर त्वरित फैसला सुनाने वाले विशेष न्यायालय गठित करने का निर्देश दिया था और केन्द्र सरकार से भी कहा था कि वह इस बढ़ते भीषण खतरे से निपटने के लिये विशेष कानून बनाये. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 17 जुलाई 2018 को जारी किये गये इस आदेश के बाद न्यायालय ने 24 सितम्बर को स्पष्ट शब्दों में एक आदेश जारी किया जिसके तहत राज्यों से कहा गया था कि वे एक महीने के अंदर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करके रिपोर्ट दें.

भारत के पुनर्निर्वाचित प्रधानमंत्री की हैसियत से नरेन्द्र मोदी को संसद को और भारत के लोगों को यह बताना चाहिये था कि उनकी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में, उन्हें लागू करने की दिशा में अब तक क्या कदम उठाये हैं. मगर मोदी इस विषय पर साफ तौर पर चुप्पी साधे हुए हैं. वास्तव में गृह मंत्रालय के राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद को यह सूचित किया कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो गिरोहबंद भीड़-हत्या का कोई विशिष्ट आंकड़ा सहेज कर नहीं रखता. केन्द्र सरकार ने गिरोहबंद भीड़ हत्या का मुकाबला करने के नाम पर अभी तक बस इतना ही किया है कि राज्य सरकारों को एक एडवाइजरी (परामर्श-निर्देश) जारी कर दिया है कि वे ऐसी झूठी खबरों (फेक न्यूज) के प्रसारण पर निगाह रखें जिनके फलस्वरूप गिरोहबंद भीड़ हत्या होने की आशंका हो! इस प्रकार जब गिरोहबंद भीड़-हत्या की बात आती है तो केन्द्र सरकार संघवाद की बातें करने लगती है! और तब प्रधानमंत्री झारखंड में गिरोहबंद भीड़ हत्याओं का विरोध करने को झारखंड के खिलाफ अपवाद बताकर झारखंड सरकार के बचाव में कूद पड़ते हैं! जाहिर है कि मोदी सरकार के सत्ता में वापस आने की वजह से गिरोहबंद भीड़ हत्याओं को रोकने और पीड़ितों को न्याय दिलाने की लड़ाई और ज्यादा कठिन हो गई है, मगर भारत की जनता कभी हार नहीं मानेगी. हम जरूर इस जंग को जीतेंगे.