वर्ष - 28
अंक - 15
30-03-2019

क्राइस्टचर्च, न्यूजीलैंड में एक गोरे वर्चस्ववादी आतंकी द्वारा वहां की दो मस्जिदों में इबादत कर रहे 50 लोगों की भयावह हत्या ने पूरी दुनिया की जनता को मर्माहत, शोकाकुल और क्षुब्ध कर दिया है. इससे यह भी संपुष्ट हुआ है कि श्वेत वर्चस्ववादियों का वैश्विक नेटवर्क अब एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी खतरा बन गया है µ यह और भी अपराधपूर्ण इसलिए है, क्योंकि इन लोगों को अमेरिकी सरकार तथा अन्य धुर-दक्षिणपंथी सत्ताओं की ओर से न केवल प्रेरणा मिल रही है, बल्कि उनका गुप्त समर्थन भी हासिल हो रहा है.

दुनिया भर में आपातकालीन प्रदर्शन और प्रतिवाद आयोजित किए गए, जहां वक्ताओं ने उन निस्सहाय लोगों के जनसंहार पर दुख और पीड़ा जाहिर की. मृतकों में अनेक लोग ऐसे थे जो यु( और क्रूरता से बचने के लिए न्यूजीलैंड चले गए थे. जिन लोगों की जान गई वे दुनिया भर से आए मुस्लिम थे µ पांच लोग भारत के थे, और शेष लोग इजिप्ट, फिलिस्तीन, बंग्लादेश और अन्यत्र से आए हुए थे. वे सभी उम्र के थे - एक महिला थी जो व्हीलचेयर पर बैठे अपने शौहर को ढंके हुई थी, एक स्नेही वृद्ध थे जिन्होंने खुद मौत का शिकार बनने के पहले कई लोगों को बचाया था, और कई बच्चे थे तीन से चार वर्ष की उम्र के.

इनके प्रति शोक-संवेदना जाहिर करने के साथ-साथ, हर जगह कॉरपोरेट मीडिया के खिलाफ आक्रोश भी फूट पड़ा - अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिसका एक प्रतिनिधि उदाहरण ऑस्ट्रेलियाई मीडिया सरदार रूपर्ट मरडक के स्वामित्व वाला ‘न्यूजकॉर्प’ है. इस कॉरपोरेट मीडिया ने अपने दैनंदिन की इस्लामभीति (इस्लामोफोबिया) और नस्लवाद की जहरीली खुराकों से धुर-दक्षिणपंथ का पालन-पोषण किया है और उसके संदेशों को फैलाया है. क्राइस्टचर्च घटना के बाद भी वह उसी रफ्तार में हताहतों के लिए नहीं, बल्कि उस हत्यारे के लिए संवेदना जता रहा है - उसे एक ‘देवपुत्र’ बता रहा है जो स्कूली दिनों में काफी प्रताड़ित हुआ था. ब्रिटेन में बीबीसी ने श्वेत वर्चस्ववादी ग्रुप ‘जेनरेशन आइडेंटिटी’ को इस जनसंहार के बाद अपने न्यूजनाइट कार्यक्रम में बुलाया और उसे अपना विश्व-दृष्टिकोण पेश करने की इजाजत दी.

बेशक, अंतरराष्ट्रीय कॉरपोरेट मीडिया साम्राज्यवाद तथा वैश्विक पूंजी की तरफदारी में और उसके सुर में सुर मिलाकर ही बोलता है. यह मीडिया तथाकथित ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ जो अफगानिस्तान और इराक में अमेरिकी हमलों का बहाना बना, और उसके बाद ‘शासन परिवर्तन’ की जुगाली का भी ध्वजावाहक बना, जिसके जरिए लीबिया और अभी हाल में सीरिया में किए गए हस्तक्षेपों को न्यायोचित बताने की कोशिश की जा रही है. इन नए औपनिवेशिक युद्ध ने अनगिनत मुस्लिम महिलाओं, पुरुषों और बच्चों की जान ली है, उनके देशों को तबाह और बर्बाद किया है - वहां की आधारभूत संरचनाओं को ध्वस्त कर शहरों को मिट्टी में मिला दिया है. कहने की जरूरत नहीं कि ये युद्ध इसलिए लड़े गए ताकि वैश्विक पूंजी इन देशों के संसाधनों को लूट सके. इसी के साथ, इन लोगों ने इस्लामभीति का वैश्विक विमर्श भी रचा है जिसमें मुसलमानों को आतंकवादियों की छवि प्रदान की जाती है - जब कि अब इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि अमेरिका और इसके संश्रयकारियों ने ही अलकायदा से लेकर आइएसआइएस जैसे आतंकी समूहों को बनाया है और उन्हें वित्तीय सहायता दी है - या फिर, इस विमर्श में एक मुस्लिम की छवि अति-यौन कुंठा ग्रस्त क्रूर पुरुष के बतौर गढ़ी जाती है जिसके चंगुल से मुस्लिम महिलाओं को गोरे साम्राज्यवादी लोग मुक्त कराते हैं.

हाल के वर्षों में हमने नवउदारवादी फासिस्ट सत्ताओं के धागे को निर्मित होते देखा है, जिसके रहनुमाओं में ‘मुस्लिम प्रतिबंध’ का एलान करने वाले ट्रंप (अमेरिकी राष्ट्रपति), फिलिस्तीनियों की रोजाना हो रही हत्याओं को चाव से देखने वाले इजरायल के नेतान्याहू, शरणार्थियों के प्रति सनकभरी नफरत पालने वाले हंगरी के ओरबन, और इनके साथ नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं. इन सब में बढ़ती वैश्विक इस्लामभीति के साथ घृणा की विशिष्ट विचारधाराएं भी घुली-मिली हैं. ये सब के सब फासिस्ट हमलावर सैनिकों और क्राइस्टचर्च आतंकी सरीखे अर्ध-स्वायत्त जनसंहारियों को समर्थन देते हैं और उन्हें बड़े जतन से पालते-पोसते हैं.

इंग्लैंड की टेरेसा में जैसे अन्य नेता इनके ठीक पीछे खड़े हैं. टेरेसा की सरकार ने तथाकथित ‘प्रतिकूल पर्यावरण’ नीति लागू की है जो खुद ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ में बर्बाद हुए देशों से  आए प्रवासियों व शरणार्थियों की जिंदगी पर बुरा असर डाल रही है ; और इधर हाल ही में यह सरकार उन मुस्लिमों की नागरिकता ही छीन रही है जो ब्रिटेन में ही जन्मे हैं और वहीं अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं. क्राइस्टचर्च आतंकी का पितृदेश ऑस्टेलिया अपनी हिंसक इस्लामभीति और नस्लवाद के चलते बदनाम है जहां शरणार्थियों को अत्यंत भयावह स्थिति में खुले समुद्र में निर्मित कैदखानों के अंदर रखा जाता है.

और हालांकि न्यूजीलैंड में कई लोगों को यकीन ही नहीं हो रहा है कि उनके अपेक्षाकृत उदार देश में ऐसे हमले भी हो सकते हैं ; फिर भी सच्चाई यह है कि वहां भी धुरदक्षिणपंथी ठगों ने मुसलमानों पर हमले किए हैं, और माओरि कार्यकर्ता हमें स्मरण कराते हैं कि वह देश भी श्वेत नस्लवादी उपनिवेशी विचारधाराओं में डूबा हुआ है. इस सब के बावजूद, न्यूजीलैंड की प्रधान मंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने इस जनसंहार के जवाब में मजबूत नेतृत्व प्रदर्शित किया है ; उन्होंने सबसे पहले उन हताहतों के प्रति सच्ची संवेदना और एकजुटता जताई जो उनकी ‘वे सब हमारे हैं’ वाली उक्ति में जाहिर होती है, और फिर उन्होंने बंदूक कानून को बदलने के लिए निर्णायक कार्रवाई की और नस्लवाद तथा दक्षिणपंथी उग्रवाद के खिलाफ वैश्विक संघर्ष का आह्वान किया.

क्राइस्टचर्च घटना के प्रति जेसिंडा अर्डर्न का यह जवाब विशेषतः भारत में काफी प्रशंसित हुआ है, जहां पुलवामा में आतंकी हमले में सीआरपीएफ जवानों के मारे जाने की हालिया घटना समेत ऐसे हमलों की अन्य दुखद घटनाओं पर भारतीय सरकारों की प्रतिक्रियाएं उसके ठीक विपरीत रही हैं. मोदी ने दरहकीकत पुलवामा हमले की सर्वप्रमुख वजह, यानी सुरक्षा तंत्र में मौजूद भारी खामियों की कभी कोई जिम्मेवारी नहीं ली और न ही उन्होंने ऐसी कोई अनुकरणीय नेतृत्वकारी गुणवत्ता प्रदर्शित की, जैसा कि हमने क्राइस्टचर्च हादसे के बाद न्यूजीलैंड की प्रधान मंत्री की जवाबी कार्रवाइयों में देखा. भारतीयों के भी मारे जाने के बावजूद क्राइस्टचर्च हमले की भर्त्सना करने में मोदी की उदासीनता भी बिलकुल साफ दिखी जो दुनिया भर में होने वाले आतंकी हमलों के बारे में व्यक्तिगत रूप से ट्वीट करने में प्रदर्शित उनकी स्वाभाविक फुर्ती के ठीक विपरीत है. लेकिन तब, हम जानते हैं कि मोदी सरकार से क्या उम्मीद की जा सकती हैं, क्योंकि हमें अच्छी तरह याद है कि गुजरात के मुख्य मंत्री के बतौर मोदी व्यक्तिगत रूप से भारतीय इतिहास में बड़े पैमाने की मुस्लिम-विरोधी हिंसा की सर्वाधिक भयावह घटनाओं में से एक को गुजरात में होते हुए देखते रहे थे. और, हम यह भी जानते हैं कि मई 2014 के बाद भारत के प्रधान मंत्री के बतौर अपने शासन काल में उन्होंने मुस्लिम समुदाय, दलितों व अन्य विरोधी आवाजों के खिलाफ कैसे नफरत और हिंसा को प्रणालीगत ढंग से पाला-पोसा और बढ़ावा दिया है, तथा मुसलमानों व विवेकपूर्ण व्यक्तियों के खिलाफ आतंकवाद के अपराधियों को सजा से बच निकलने में मदद की है.