नई दिल्ली, 20 मार्च
सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता और जन बुद्धिजीवी गौतम नौलखा और आनंद तेलतुंबडे़ को अंतरिम जमानत देने से इंकार कर दिया है। यह काफी निराशजनक और परेशान करने वाला निर्णय है। इस अपील को खारिज करने का मतलब है कि दोनों को अगले तीन हफ्ते के भीतर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना होगा।
संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रताओं और न्याय के रक्षक के रूप में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका खतरे में है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई को रिटायर होने के चार महीने बाद ही राष्ट्रपति ने राज्य सभा में मनोनीत कर दिया। इससे तमाम संवेदनशील मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर सवाल खड़ा हो गया है। रंजन गोगोई के नेतृत्व में ऐसे कई मामलों में निर्णय दिये गये जो मौजूदा सरकार के पक्ष में थे। ऐसा लगता है सरकार ने बदले में पुरस्कार स्वरूप उन्हें राज्य सभा की सदस्यता दी है।
भीमा कोरेगांव मामला भारत के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने का अभूतपूर्व मामला है। ऐसे पर्याप्त संकेत हैं कि आरोपित लोगों के कम्प्यूटर में या तो 'सबूत' बाद में डाले गये। केवल सरकार के पास मौजूद मैलवेयर या जासूसी करने वाले सॉफ्टवेयर भी आरोपितों के कम्प्यूटर में थे।
भाकपा (माले) गौतम नौलखा और आनंद तेलतुंबड़े के साथ एकजुटता का इजहार करती है। लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उनका समर्पण पूरी दुनिया के लिए प्रेरणादायी है। हम भीमा कोरेगांव मामले में लगाये गये फर्जी आरोपों को वापस लेने और इस मामले में यूएपीए के तहत गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग करते हैं।
- भाकपा माले केन्द्रीय कमेटी द्वारा जारी