आपातकाल दिवस पर विशेष : किस्सा आपात काल का, किस्सा आज का!

“यह एक व्यक्ति का शासन है, बाकी सब कठपुतलियां हैं. जनता और सरकार के ऊपर और नीचे के अफसर मूक और लकवाग्रस्त हो गए हैं.” इन पंक्तियों को पढ़ कर यह आज की जैसी बात मालूम पड़ती है. लेकिन यह उस आपातकाल की बात है, जो 1975 में 26 जून को इस देश पर थोप दी गयी थी. और यह इकलौता वाक्य नहीं है, जो आज के जैसा प्रतीत होता है. प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर की आपातकाल पर लिखी पुस्तक “द जजमेंट : इनसाइड स्टोरी ऑफ इमरजेंसी” को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि आज के हालात का ही ब्यौरा है, बस कुछ पात्र बदल दिये गए हैं. बदले हुए पात्रों को भी वर्तमान किरदारों से मिलता-जुलता पा सकते हैं.

लैंड जेहाद का नारा उछालने वालों की अपनी जमीन पर प्रश्नचिन्ह!

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा के अन्य नेतागण जोर-शोर से लैंड जेहाद का नारा उछाल रहे हैं. साफ दिखाई दे रहा है कि इस नारे के पीछे, मंशा प्रदेश की जमीनों बचाना या अवैध अतिक्रमण रोकना नहीं बल्कि चुनावी जमीन मजबूत करने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना है! मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति जब सांप्रदायिक शब्दावली का जोरशोर से इस्तेमाल करने लगता है तो वह इस बात का सूचक होता है कि पदारूढ़ व्यक्ति को संविधान, कानून, न्याय जैसे शब्दों से ज्यादा सरोकार नहीं है!

विपक्षी एकता का भाकपा-माले का आह्वान लेने लगा अब ठोस शक्ल

- कुमार परवेज

पूरे देश की निगाह 23 जून को पटना में होने वाली विपक्षी दलों की बैठक पर है. अब तक की जानकारी के अनुसार विपक्ष की लगभग 18 पार्टियों ने बैठक में अपनी भागीदारी पर सहमति दे दी है. भाजपा राज में विगत 9 सालों से जारी तबाही-बर्बादी से मुक्ति के लिए भाकपा(माले) ने दो कार्यभारों को बहुत पहले सूत्रबद्ध किया था – (1). पूरे देश में चल रहे सभी छोटे-बड़े आंदोलनों को मोदी के फासीवादी शासन के खिलाफ एक व्यापक, संगठित व एकताबद्ध आंदोलन में तब्दील कर देना और (2). गैर भाजपा-गैर एनडीए दलों की व्यापक एकता का निर्माण करना.

भीषण दुर्घटना, जिसकी चेतावनी को अनदेखा किया गया!

ओडिसा के बालासोर में हुआ रेल हादसा भीषण है, भयावह है. एक ट्रेन पटरी से उतरी, उसके डिब्बे दूसरी पटरी पर जा रही ट्रेन से टकराए और सामने से आ रही मालगाड़ी भी इन दोनों से भिड़ गयी. नतीजा 288 से अधिक मौतें और 900 के करीब लोग घायल.

पूंजीवाद लोगों को मारता है –1

एनसीआरबी द्वारा प्रकाशित आंकड़े (2021) आत्महत्या की खतरनाक ढंग से बढ़ती प्रवृत्ति को दिखा रहे हैं. मरने वालों में सबसे अधिक तादाद दैनिक मजदूरी कमाने वालों की है. कृषि क्षेत्र में खेत मजदूर सबसे ज्यादा मर रहे हैं. छात्रों का स्थान छठा है, जबकि गृहणियां दूसरे स्थान पर हैं. मौत को गले लगाने वालों की सूची में बेरोजगारों का नंबर दूसरा है. 64.2 प्रतिशत आत्महत्या करने वाले लोगों की आमदनी 1 लाख रुपये सालाना से कम है, जबकि 31.6 प्रतिशत लोगों की सालाना आय एक से पांच लाख रुपये के बीच है. क्या हमें इस बात पर हैरत हो रही है कि पूंजीवाद लोगों को मार रहा है ?

नुक्ता-ए-नजर : अटल उत्कृष्ट स्कूलों के परीक्षा परिणाम की दशा कर्नाटक चुनाव परिणाम जैसी!

उत्तराखंड में अटल उत्कृष्ट स्कूलों के परीक्षा परिणाम का मसला कुछ-कुछ कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणाम जैसा हो गया. कर्नाटक में विधानसभा चुनाव भाजपा जीती होती तो मोदी जी का चमत्कार, उनकी लहर के रूप में इसकी चर्चा होती. लेकिन हार हुई तो सब जगह नड्डा जी का चेहरा दिखाया जा रहा है.

आरएसएस: देश तोड़ने और लूटने वाले सब उनके अपने हैं

- इन्द्रेश मैखुरी

आरएसएस का दावा है कि वह एक राष्ट्रवादी सांस्कृतिक संगठन है. उसकी राजनीतिक पार्टी होने के कारण भाजपा भी राष्ट्रवादी होने का दम भरती है. 2014 में सत्ता में आने के बाद तो आरएसएस-भाजपा, राष्ट्रवाद का सर्टिफिकेट देने वाली स्वयंभू एजेंसी हो गयी हैं. वे जिसको चाहे राष्ट्रवादी घोषित कर दें और जिसको मर्जी उसे राष्ट्रविरोधी यानि एंटी नेशनल घोषित कर दें!

हिंदू राष्ट्र को समझना और उसे खारिज करना

– आकाश भट्टाचार्य

[एनसीईआरटी सिलेबस में बदलाव पर टिप्पणी]

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधन और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने इतिहास पाठ्यपुस्तक के ‘थीम्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री - पार्ट 2’ से ‘किंग्स एंड क्रोनिकल्स : मुगल दरबार (16वीं और 17वीं शताब्दी)’ वाले अध्याय को हटा दिया है. यह बदलाव काफी दुखद है क्योंकि मुगल प्रशासकीय एकीकरण ने भारत के भौगोलिक और सांस्कृतिक नक्शा – जैसा कि आज हमारे सामने है – को शक्ल देने में मुख्य भूमिका निभाई थी.